॥ कालीदास कृत प्रत्यङ्गिरा मालामन्त्र ॥
Pratyangira Mala Mantra

प्रत्यंगिरा यन्त्र

॥ ॐ नमः शिवाये ॥
॥ श्री भैरव उवाच ॥
” निवसति करवीरे सर्वदाया श्मशाने विनत-जन हिताय प्रेत-रूढे महेशो हि मकर
हिम-शुभ्रां पञ्च-वक्त्राम्-माद्यांदिशतु-दश-भुजाया सा श्रियं सिद्धि-लक्ष्मीः ॥
ऐं ख्फ्रे जय जय जगदम्ब प्रणत-हरिहर हिरण्य-गर्भ ।
प्रमुख सुर-मुकुट-मन्दार माला-परिमलदति पटल वाचाल चरण पुण्डलीकेषु ।
पुण्डरीकाक्ष प्रमुख-कर-कम्बु , विमल-मन्दाकिनी-शरदेन्दु ॥
कुन्दार-विन्द-संदोह सुन्दर-शरीर-प्रभे जय-जय महा-कालि-काल-नाशिनि ।
समय-चक्रे मेलापकाशिनि सिद्धि-गण-योगिनी वीर-विद्याधरी-जन-
निकर-मुनिकुरुम्बिनी तुम्बिनी कदम्ब किं नरवाराध्यमाने करालो ॥
विधाने सिद्धि-लक्ष्मी-प्रदे विरुपाक्ष चक्षु-संविसे वा नन्द-रस-दायिके ।
त्रिभुवन-नायिके स्फुरदनर्घमणिमुक्त-बली कलाप-मध्यस्थिता ॥
चक्षुत्रवाभरण झण-झणायमान-तरु-वल्लरी वहल-प्रभा-पटल-पालीकृत ।
सकल दिग्मण्डल-गण्डस्थ-लोल्लसित रवि-शशि-कुण्डले पीत ॥
कठिन-कुच-कलश युगलान्तनुवालकुलित नर-मुण्डावली मण्डिते ।
चण्डि-रुधिर-पान-प्रमत्ते प्रेत-कलोत्ताल वेताल-कर-तालिका ॥
ताण्डवनताडवा प्रमुखा नट डाकिनी चक्रचक्रमन चकितविताय ।
चमत्कारं विस्फुरित पिशाच प्रलय-चित्कार-ध्वनि ।
मुखरकनवीर-श्मशानाधिधिवासिनी रुद्र-स्कन्धाधिरुढे ॥
षडाधार-मध्यार-बिन्द मन्दिरोदरांकुचनोन्नित प्रसुतजगा ममनायमान ।
कुल-कुण्डलनी-शक्ति-प्रभा प्रदीपिका सख मनास-वलेरिगमदाकाश ॥
शशि-मण्डलामृत धारा पयोनिधि गमनमानसैरुदित हसैरखिल ।
साधकैरवि विभाव्यते मात्रिका-चक्र संभाविते मृगाङ्क कुंकुमागुरु ॥
मृग-मदाङ्ग-राग-परिमल्ल-वासिता वास-मणि-मण्डपे खण्डिन्दु
मण्डितोरुजटा-जलाप-कलित करवीरोदार-करहार कनक केतकी ॥
नवमालिका ततालिका मदयन्तिका माधवी विविध-गन्ध-बन्धुरगन्धवाह
वहदरुणसवनाचले ध्यानाकार-चकित-त्रिनयनाचले ॐ जय जय जगत
जननि जय जय ॥
ख्फ्रें जय जय ऐं नवाक्षरी नवत्यधिकदिशताक्षर
मन्त्रमालाधिदैवते कालिकात्यायिनि कापालिनि नर-रुधिर-वशापिशित
परिपूर्ण-कपाल करवाल त्रिशूल खट्वाङग
घण्टा-मुण्ड-पाशाङ्कुश-वराभय-शोभित करेसु करे वद्धवीरासने ।
सिद्घेश्वरि सिद्ध विद्याधरांरगेन्द्र का ध्यायमानाङ्घिलये
शाम्भवावेश-विभवे देव-देवि महादेवि अनाख्ये उमाख्ये
सदापूर्णिमारख्ये लसत्तारकाख्ये अकाराक्षरोदोस्फुरदम्बराकारे
महा-व्योम्नि व्योम-वामेश्वरी कुङ्डिके क्षेचरी गोचरी दिक्वरि शाम्बरी
शक्ति चक्र-क्रियेच्छा-ज्ञान-रुप-गुणातीत नित्योमृते नित्य-भोग-प्रदे सन्ध्या
नवशान-समये लास्य-विलासे टटमहानट जटा-जूटापगारि रसदलङ्कार
सकल-काव्य-कला-कलाप वहलधीत्रिगुण प्रबन्ध विविध-बन्धु सुन्दर
कविता सिद्धिदे ऋद्धिदे बुद्धिदे ज्ञानदे मानदे सारदे षोडशाक्षराधिरुढ़
सकल सिद्धि-चतुर्वर्ग-फल-विधायिनि प्रणत-जन-हित-कारिणि
जय जय जगदम्ब-प्रत्यङ्गिरे ख्फ्रें ऐं ॐ मम सकलदुरितानपनुद
अपनुद जय जय प्रत्यङ्गिरे जय जय जय हे ऐं ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ख्फ्रें ॐ ॥”

प्रत्यंगिरा देवी

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