March 22, 2025 | aspundir | Leave a comment कृषिसूक्त अथर्ववेद के तीसरे काण्ड का १७वाँ सूक्त ‘कृषिसूक्त’ है। इस सूक्त के ऋषि ‘विश्वामित्र’ तथा देवता ‘सीता’ हैं। इसमें मन्त्रद्रष्टा ऋषि ने कृषि को सौभाग्य बढ़ाने वाला बताया है। कृषि एक उत्तम उद्योग है। कृषि से ही मानव-जाति का कल्याण होता है। प्राणों के रक्षक अन्न की उत्पत्ति कृषि से ही होती है। ऋतु की अनुकूलता, भूमि की अवस्था तथा कठोर श्रम कृषि कार्य के लिये आवश्यक है। हल से जोती गयी भूमि को वृष्टि के देव इन्द्र उत्तम वर्षा से सींचें (‘इन्द्रः सीतां नि गृह्णातु’) तथा सूर्य अपनी उत्तम किरणों से उसकी रक्षा करें (‘तां पूषाभिरक्षतु ‘) – यही कामना ऋषि ने की है। सीरा युञ्जन्ति कवयो युगा वि तन्वते पृथक् । धीरा देवेषु सुम्नयौ ॥ १ ॥ युनक्त सीरा वि युगा तनोत कृते योनौ वपतेह बीजम् । विराजः श्नुष्टिः सभरा असन्नो नेदीय इत्सृण्यः पक्वमा यवन् ॥ २ ॥ लाङ्गलं पवीरवत्सुशीमं सोमसत्सरु । उदिद्वपतु गामविं प्रस्थावद् रथवाहनं पीबरीं च प्रफर्व्यम् ॥ ३ ॥ इन्द्रः सीतां नि गृह्णातु तां पूषाभि रक्षतु । सा नः पयस्वती दुहामुत्तरामुत्तरां समाम् ॥ ४ ॥ देवों में विश्वास करने वाले विज्ञजन विशेष सुख प्राप्त करने के लिये (भूमिको ) हलों से जोतते हैं और (बैलों के कन्धों पर रखे जाने वाले) जुओं को अलग करके रखते हैं ॥ १ ॥ जुओं को फैलाकर हलों से जोड़ो और (भूमि को ) जोतो। अच्छी प्रकार भूमि तैयार करके उसमें बीज बोओ। इससे अन्न की उपज होगी, खूब धान्य पैदा होगा और पकने के बाद (अन्न) प्राप्त होगा ॥ २ ॥ हल में लोहे का कठोर फाल लगा हो, पकड़ने के लिये लकड़ी की मूठ हो, ताकि हल चलाते समय आराम रहे। यह हल ही गौ-बैल, भेड़-बकरी, घोड़ा- घोड़ी, स्त्री-पुरुष आदि को उत्तम घास और धान्यादि देकर पुष्ट करता है ॥ ३ ॥ इन्द्र वर्षा द्वारा हल से जोती गयी भूमि को सींचें और धान्य के पोषक सूर्य उसकी रक्षा करें। यह भूमि हमें प्रतिवर्ष उत्तम रस से युक्त धान्य देती रहे ॥ ४ ॥ शुनं सुफाला वि तुदन्तु भूमिं शुनं कीनाशा अनु यन्तु वाहान् । शुनासीरा हविषा तोशमाना सुपिप्पला ओषधीः कर्तमस्मै ॥ ५ ॥ शुनं वाहाः शुनं नरः शुनं कृषतु लाङ्गलम् । शुनं वरत्रा बध्यन्तां शुनमष्ट्रामुदिङ्गय ॥ ६ ॥ शुनासीरेह स्म मे जुषेथाम् । यद्दिवि चक्रथुः पयस्तेनेमामुप सिञ्चतम् ॥ ७ ॥ सीते वन्दामहे त्वर्वाची सुभगे भव । यथा नः सुमना असो यथा नः सुफला भुवः ॥ ८ ॥ घृतेन सीता मधुना समक्ता विश्वैर्देवैरनुमता मरुद्भिः । सा नः सीते पयसाभ्याववृत्स्वोर्जस्वती घृतवत् पिन्वमाना ॥ ९ ॥ [ अथर्व० ३ । १७ ] हल के सुन्दर फाल भूमि की खुदाई करें, किसान बैलों के पीछे चलें । हमारे हवन से प्रसन्न हुए वायु एवं सूर्य इस कृषि से उत्तम फल वाली रसयुक्त ओषधियाँ दें ॥ ५ ॥ बैल सुख से रहें, सब मनुष्य आनन्दित हों, उत्तम हल चलाकर आनन्द से कृषि की जाय। रस्सियाँ जहाँ जैसी बाँधनी चाहिये, वैसी बाँधी जायँ और आवश्यकता होने पर चाबुक ऊपर उठाया जाय ॥ ६ ॥ वायु और सूर्य मेरे हवन को स्वीकार करें और जो जल आकाशमण्डल में है, उसकी वृष्टि से इस पृथिवी को सिंचित करें ॥ ७ ॥ भूमि भाग्य देने वाली है, इसलिये हम इसका आदर करते हैं। यह भूमि हमें उत्तम धान्य देती रहे ॥ ८ ॥ जब भूमि घी और शहद से योग्य रीति से सिंचित होती है और जल, वायु आदि देवों की अनुकूलता उसको मिलती है, तब वह हमें उत्तम मधुर रसयुक्त धान्य और फल देती रहे ॥ ९ ॥ Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe