August 14, 2015 | aspundir | Leave a comment गुरु गोरखनाथ का सरभंगा (जञ्जीरा) मन्त्र “ॐ गुरुजी में सरभंगी सबका संगी, दूध-मास का इक-रणगी, अमर में एक तमर दरसे, तमर में एक झाँई, झाँई में परछाई दरसे, वहाँ दरसे मेरा साँई। मूल चक्र सर-भंग आसन, कुण सर-भंग से न्यारा है, वाँहि मेरा श्याम विराजे। ब्रह्म तन्त से न्यारा है, औघड़ का चेला-फिरुँ अकेला, कभी न शीश नावाऊँगा, पुत्र-पूर परत्रन्तर पूरुँ, ना कोई भ्रान्त ल्लावूँगा, अजर-बजर का गोला गेरूँ परवत पहाड़ उठाऊँगा, नाभी डंका करो सनेवा, राखो पूर्ण बरसता मेवा, जोगी जुग से न्यारा है, जुग से कुदरत है न्यारी, सिद्धाँ की मुँछयाँ पकड़ो, गाड़ देओ धरणी माँही, बावन भैरुँ, चौंसठ जोगन, उलटा चक्र चलावे वाणी, पेडू में अटके नाड़ा, ना कोई माँगे हजरत भाड़ा, मैं भटियारी आग लगा दियूँ, चोरी चकारी बीज मारी, सात राँड दासी म्हारी, वाना-धारी कर उपकारी, कर उपकार चल्यावूँगा, सीवो दावो ताप तिजारी, तोडूँ तीजी ताली, खट-चक्र का जड़ दूँ ताला, कदेई ना निकले गोरख बाला, डाकिनी शाकिनी, भूताँ जा का करस्यूँ जूता, राजा पकडूँ, हाकिम का मुँह कर दूँ काला, नौ गज पाछे ठेलूँगा, कुँएं पर चादर घालूँ गहरा, मण्ड मसाणा, धुनी धुकाऊँ नगर बुलाऊँ डेरा। यह सरभंग का देह, आप ही कर्ता, आपकी देह, सरभंग का जाप सम्पूर्ण सही, सन्त की गद्दी बैठ के गुरु गोरखनाथ जी कही।” विधिः- किसी एकान्त स्थान में धूनी जलाकर उसमें एक चिमटा गाड़ दें। उस धूनी में एक रोटी पकाकर पहले उसे चिमटे पर रखें। इसके बाद किसी काले कुत्ते को खिला दें। धूनी के पास ही पूर्व तरफ मुख करके आसन बिछाकर बैठ जाएँ तथा २१ बार उक्त मन्त्र का जप करें। उक्त क्रिया २१ दिन तक करने से मन्त्र सिद्ध हो जाता है। सिद्ध होने पर ३ काली मिर्चों पर मन्त्र को सात बार पढ़कर किसी ज्वर-ग्रस्त रोगी को दिया जाए, तो आरोग्य-लाभ होता है। भूत-प्रेत, डाकिनी, शाकिनी, नजर झपाटा होने पर सात बार मन्त्र से झाड़ने पर लाभ मिलता है। कचहरी में जाना हो, तो मन्त्र का ३ बार जप करके जाएँ। इससे वहाँ का कार्य सिद्ध होगा। Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe