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॥ तुम्बुरू शिव ॥
(शारदा तिलक)

एकाक्षर मंत्र: –
( मंत्रोद्धार) क्षकारोमाग्नि पवनवामकर्णार्द्ध चन्द्रवान ।
क्ष्+म्+र्+यूँ = क्ष्म्र्यूँ
विनियोग – अस्य मंत्रस्य काश्यप ऋषिः, अनुष्टप् छंदः, तुम्बुरू शिव देवता, रं बीजं, ॐ शक्तिं सर्वसमृद्धि हेतुवे जपे विनियोगः ।

षड़ङ्गन्यासः – षड् दीर्धभाजा बीजेन षड़ङ्गानिप्रकल्पयेत् ।
अर्थात बीज मंत्र के षड् दीर्घो से न्यास करें यथा – (१) क्ष्म्र्यां (२) क्ष्म्र्यीं (३) क्ष्म्र्यूं (४) क्ष्म्र्यें (५) क्ष्म्र्यौं (६) क्ष्म्र्यः ।

इसके बाद जया, विजया, अजिता एवं अपराजिता देवियों के बीज मंत्रों का उल्लेख है ।
क्षकाररहितं बीजं क्रमाज्जभसहान्वितम् ।
चत्वारि देवीबीजानि देव्योज्ञेया इमाः क्रमात् ॥

अर्थात् बीज मंत्र में क्ष को क्रमश: ज, भ, स, ह, से अन्वित करें यथा –
ज्म्र्यूँ, भ्म्रयूँ, श्म्रयूँ, ह्म्रयूँ इन चार बीज मंत्रो व चारों अगुंलियों में न्यास कर मूलमंत्र क्ष्म्रयूँ दोनों के करतल पृष्ठ का व्यापक न्यास करना चाहिये ।
क्ष्म्रयूँ एवं चारों देवियों के बीज मंत्रों से पाद, नाभि, हृदय कण्ठ व मूर्धा में न्यास कर । मूलमंत्र से पाद पर्यन्त व्यापक न्यास करना चाहिये ।
पुनः क्ष्म्रयूँ एवं देवियों के चारों बीज मंत्रो से मूर्धा, मुख, हृदय, नाभि एवं गुह्य में क्रमशः न्यास करना चाहिये ।
ध्यानम्
रक्ताभमिन्दुसकलाभरणं त्रिनेत्रं
खट्वाङ्गपाशसृणि शुभ्र(शूल)कपाल हस्तम् ।
वेदाननं चिपिटनासमनर्धभूषं
रक्ताङ्गराग कुसुमांशुकमीशमीडे ॥

रक्त वर्ण की कान्ति से युक्त चन्द्र खण्ड के आभूषण को धारण करने वाले त्रिनेत्र, हाथो में खट्वाङ्ग, पाश, अंकुश तथा शुभ्र कपाल लिये हुये, चार मुखों से युक्त चिपटी नाक वाले बहुमूल्य भूषणों से भूषित, रक्तवर्ण का अङ्गराग, रक्तवर्ण का पुष्प तथा रक्त वर्ण का वस्त्र धारण करने वाले तुम्बुरु सदाशिव की मैं स्तुति करता हूँ ॥

॥ यन्त्रार्चनम् ॥
भद्रपीठ पर धर्मादिपीठ देवता की स्थापना करे फिर सर्वतोभद्रमंडल (भद्रपीठ) पर पीठ शक्तियों का पूजन करे यथा – ॐ वामायै नमः, ॐ ज्येष्ठायै नमः, ॐ रौद्रयै नमः, ॐ इच्छायै नमः, ॐ ज्वालारूपिण्यै नमः ।
इसके बाद भद्रपीठ पर यन्त्र को शुद्ध करके रखें एवं अर्चन करें । यन्त्र मध्य में प्रधानदेव का आवाहन करें ।
प्रथमावरणम् – षट्कोण में न्यास मन्त्रों से षडङ्ग शक्तियों का आवाहन करें ।
द्वितीयावरणम् – (अष्टदल में पूर्वादि चार दिशाओं में) यथा जयायै नमः, विजयायै नमः, अजितायै नमः, अपराजितायै नमः से पूजन करें ।
ये सभी देवियाँ रक्तवर्णा है एवं रक्त अनुलेपन वाली है, अरुणवर्ण के वस्त्र एवं पुष्पों से आढ्य है । मुख में ताम्बूल है, वीणा वादन करने वाली है मद तथा मन्मथ (कामदेव) से पीड़ित है ।
ईशानादि चारों दलों में – ॐ शं दुर्भगायै नमः, ॐ षं सुभगायै नमः, ॐ मं कराल्यै नमः, ॐ हं मोहिन्यै नमः से पूजन करें ।
तृतीयावरणम् – चतुर्द्वार युक्त परिधि (भूपूर) में – पूर्वादिक्रम से इन्द्रादि दिक्पालों का पूजन करें ।
चतुर्थावरणम् – भूपूर में इन्द्रादि देवों के वज्रादि आयुधों का पूजन करें ।
पुरश्चरण में १ लाख जप कर घृताक्त हविष्य से दशांश होम करें ।
प्रयोग – त्रिकोण के मध्य में बीज मन्त्र का ध्यान करके जप करने से बुद्धिमान होवे एवं ज्वरादि महारोग नष्ट हो जाते हैं ।
हृदयरोग, कामला, श्वास-कास में इससे अभिमन्त्रित जल के पीने से रोग नष्ट हो जाते है ।
नवकोष्ठक बनाकर उनके मध्य में नवकलश बनायें । मध्यकलश में प्रधान देव ‘तुम्बुरूशिव’ का एवं अष्टदल में यन्त्र पूजा में अष्टदल की देवियों का जो उल्लेख है उनका आवाहन कर पूजन कर नवकलशों के जल से पतिव्रता स्त्री का अभिषिंचन करें तो नारी अवश्य ही पुत्र सुख को प्राप्त करती है चाहे वह वन्ध्या ही क्यों न हो ।
इस मन्त्र के प्रभाव से एवं अभिषेक के प्रभाव से भूत कृत्याद्रोह शांत होते हैं । संपदा प्राप्त होती है ।

 

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