August 6, 2015 | aspundir | Leave a comment पीर विरहना का मन्त्र प्रयोग “पीर विरहना, फूल विरहना, घुंघु करे। सवा सेर का तोसा खाए, अस्सी कोस का धावा करे। सात सै कुतक आगे चले, सात सै कुतक पीछे चले। छप्पन सै छूरी चले। बावन से वीर चलें, जिनमें गठ गजना का पीर चले। और की ध्वजा उखाड़ता चले, अपनी ध्वजा टेकता चले। सोते को जगावता चले, बैठे को उठाता चले। हाथों में हाथकडी गेरे, पैरों में परे बेडी गेरे। हलाल माही दीठ करे, मुरदार माही पीठ करे। कलवान नवी कूँ याद करे। ॐ ॐ ॐ नमः ठः ठः स्वाहा।” विधिः- ‘ग्रहण’ की रात्रि से प्रयोगारम्भ करे। नित्य १०८ बार जपे। चमेली के पुष्प चढ़ाए। हलवे का सवा सेर भोग लगाए। ४० दिनों में पीर विरहना उपस्थित होगा। उस समय डरे नहीं, जो काम उससे कहा जाएगा, वह काम वह कर देगा। आपके समक्ष उपस्थित रहेगा। वह आपकी सहायता सदा के लिये करता रहेगा। विशेषः- १॰ पीर की साधना में पाक-साफ रहना अनिवार्य है। २॰ अशुभ कार्य हेतु उक्त प्रयोग कदापि न करे। पाठान्तर “पीर विरहना, फूल विरहना, धुँ धुँ करे। सवा सेर का तोसा खाए, अस्सी कोस का धावा करे। सात सै कुतक आगे चले, सात सै कुतक पीछे चले। जिसमें गठ गजना का पीर चले और ध्वजा टेकता चले। सोते को जगावता चले, बैठे को उडावता चले। हाथों में हथकडी गेरे, पैरों में बेडी गेरे। माही पाठ करे, मुरदार माँही पीठ करे। कलबोन नवी कूँ याद करे। ॐ ॐ ॐ नमः हूँ ठः ठः स्वाहा।” विधिः- ‘ग्रहण’ की रात्रि से प्रयोगारम्भ करे। नित्य १०८ बार जप करते समय चमेली के १०८ पुष्प चढ़ाए। आटे का सवा सेर का हलवा भोग लगाए। ४० दिनों में पीर विरहना उपस्थित होगा। उस समय डरे नहीं, जो काम उससे कहा जाएगा, वह काम वह कर देगा। आपके समक्ष उपस्थित रहेगा। वह आपकी सहायता सदा के लिये करता रहेगा। Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe