September 10, 2019 | Leave a comment ॥ पुराणोक्त पितृस्तोत्र ॥ मनोकामनाओं की पूर्ति करते है । यहाँ मार्कण्डेय पुराण (04/1-13) में वर्णित चमत्कारी पितस्तोत्र दिया जा रहा है । इसका नियमित पाठ करना चाहिए । ॥ रुचिरुवाच ॥ (सप्तार्चिस्तपम्) अमूर्त्तानां च मूर्त्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम् ॥ नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम् । इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा ॥ सप्तर्षीणां तथान्येषां तान्नमस्यामि कामदान् । मन्वादीनां मुनींद्राणां (च नेतारः) सूर्य्याचन्द्रमसोस्तथा ॥ तान्नमस्याम्यहं सर्वान् पितरश्चार्णवेषु च (पितरनप्युदधावपि) । नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा ॥ द्यावापृथिव्योश्च तथा नमस्यामि कृतांजलिः । प्रजापतेः कश्यपाय सामाय वरुणाय च । देवर्षीणां ग्रहाणां च सर्वलोकनमस्कृतान् ॥ योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृतांजलिः । नमो गणेभ्यःसप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु ॥ स्वायम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे । सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा ॥ नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम् । अग्निरूपांस्तथैवान्यान्नमस्यामि पितृनहम् ॥ अग्निसोममयं विश्वं यत एतदशेषतः । ये च तेजसि ये चैते सोमसूर्य्याग्निमूर्त्तयः ॥ जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिणः । तेभ्योऽखिलेभ्यो योगिभ्यः पितृभ्यो यतमान सः । नमोनमो नमस्तेऽस्तु प्रसीदन्तु स्वधाभुजः ॥ रूचि बोले – जो सबके द्वारा पूजित, अमूर्त, अत्यन्त तेजस्वी, ध्यानी तथा दिव्यदृष्टि सम्पन्न हैं, उन पितरों को मैं सदा नमस्कार करता हूँ। जो इन्द्र आदि देवताओं, दक्ष, मारीच, सप्तर्षियों तथा दूसरों के भी नेता हैं, कामना की पूर्ति करने वाले उन पितरो को मैं प्रणाम करता हूँ। जो मनु आदि राजर्षियों, मुनिश्वरों तथा सूर्य और चन्द्रमा के भी नायक हैं, उन समस्त पितरों को मैं जल और समुद्र में भी नमस्कार करता हूँ। नक्षत्रों, ग्रहों, वायु, अग्नि, आकाश और द्युलोक तथा पृथ्वी के भी जो नेता हैं, उन पितरों को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ। जो देवर्षियों के जन्मदाता, समस्त लोकों द्वारा वन्दित तथा सदा अक्षय फल के दाता हैं, उन पितरों को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ। प्रजापति, कश्यप, सोम, वरूण तथा योगेश्वरों के रूप में स्थित पितरों को सदा हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ। सातों लोकों में स्थित सात पितृगणों को नमस्कार है। मैं योगदृष्टिसम्पन्न स्वयम्भू ब्रह्माजी को प्रणाम करता हूँ। चन्द्रमा के आधार पर प्रतिष्ठित तथा योगमूर्तिधारी पितृगणों को मैं प्रणाम करता हूँ। साथ ही सम्पूर्ण जगत् के पिता सोम को नमस्कार करता हूँ। अग्निस्वरूप अन्य पितरों को मैं प्रणाम करता हूँ, क्योंकि यह सम्पूर्ण जगत् अग्नि और सोममय है। जो पितर तेज में स्थित हैं, जो ये चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं तथा जो जगत्स्वरूप एवं ब्रह्मस्वरूप हैं, उन सम्पूर्ण योगी पितरो को मैं एकाग्रचित्त होकर प्रणाम करता हूँ। उन्हें बारम्बार नमस्कार है। वे स्वधाभोजी पितर मुझपर प्रसन्न हों। Related