December 28, 2018 | aspundir | Leave a comment ॥ बृहत्साम ॥ भगवान् श्रीकृष्ण ने वेदों में सामवेदको अपनी विभूति बताया है – ‘वेदानां सामवेदोऽस्मि’ (गीता १०।२२) । सामवेद में अनेक मनोहारी गीत हैं, जिन्हें ‘साम’ कहा जाता है। यथा – रथन्तरसाम, वार्षसाम, बृहत्साम, सेतुसाम, वीङ्कसाम, कल्माषसाम, आज्यदोहसाम, ज्येष्ठसाम इत्यादि। इनका गायन एक विशिष्ट परम्परागत वैदिक पद्धति से किया जाता है, जो अत्यन्त मनोहारी होता है। गीता में भगवान् ने स्वयं को सामों में बृहत्साम कहा है – बृहत्सम तथा साम्नाम्’ (गीता १०।३५)। सामवेद में सबसे श्रेष्ठ होने के कारण इस ‘बृहत्साम को भगवान् ने अपनी विभूति बताया है। यह सामवेद के उत्तरार्चिक में अध्याय ३ के अन्तर्गत है। इस साम के देवता इन्द्र, द्रष्टा-ऋषि शयु बार्हस्पत्य तथा छन्द बार्हत-प्रगाथ (विषमा बृहती, समा सतोबृहती) है। अतिरात्रयाग में यह एक पृष्ठस्तोत्र है। किसी भी मन्त्र को सामगान में गान के उपयुक्त करने के लिये आठ प्रकार के विकारों का प्रयोग किया जाता है, परंतु वह विस्तृत-विषय है, अतः यहाँ मात्र बृहत्साम के मूल मन्त्रों को भावार्थसहित प्रस्तुत है – त्वमिद्धि हवामहे सातौ वाजस्य कारवः । त्वां वृत्रेष्विन्द्र सत्पतिं नरस्त्वां काष्ठास्वर्वतः ॥ १ ॥ हे इन्द्ररूप परमेश्वर! हम स्तोता अन्नवृद्धिके लिये आपका ही आह्वान करते हैं। विवेकशील मनुष्य भी शत्रुओंकी शत्रुतासे आक्रान्त होनेपर जब सब प्रयत्न करके भी हारने लगते हैं, तो आपको ही पुकारते हैं ॥ १ ॥ स त्वं नश्चित्र वज्रहस्त धृष्णुया महस्तवानो अद्रिवः । गामश्वं रथ्यमिन्द्र सं किर सत्रा वाजं न जिग्युषे ॥ २ ॥ हे अतुल पराक्रमी, हाथमें विचित्र वज्र धारण करनेवाले, स्वयंके तेजसे प्रकाशित इन्द्ररूप परमेश्वर ! आप हमें गोधन, रथके योग्य कुशल अश्व, अन्न तथा ऐश्वर्य प्रदान करें ॥ २ ॥ Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe