October 2, 2019 | aspundir | Leave a comment ॥ ब्रह्मचारिणी ॥ हेमवती पार्वती ने शिव को ही अपना पति मानने हेतु कठोर तपस्या की एवं प्रतिज्ञा की यदि मैं शिव को प्रसन्न करने में असफल रही तो ब्रह्मचारिणी रहूंगी । पिता ने उसे उस समय समझाया कि उ-मा अर्थात् उसे मत कर इसी से उनका नाम उमा हो गया । उमेति चपले पुत्रि त्वयोक्ता तनया ततः । उमेति नाम तेनास्या भुवनेषु भविष्यति ॥ कालिका पुराण में ब्रह्मचारिणी होने के लिये लिखा है – विनापि शंभुं रुद्राणी भक्तस्तु परिचिन्तयेत् । उमा मन्त्र हेतु पार्वती का बीज मन्त्र कहा है । पादिः समाप्ति साहितः फडन्ती नान्त एव च । एकाक्षरस्त्र्यक्षरश्च उमा मंत्र इति स्मृत ॥ १. एकाक्षर मन्त्र – पां ॥ २.त्र्यक्षर मन्त्र – पार्वती ॥ ३. षडक्षर मन्त्र – उं उमायै नमः ॥ ४. ॐ ब्रां ब्रीं बूं ब्रह्मचारिण्यै नमः ॥ ॥ द्विभुजा ध्यानम् – (कालिका पुराणे) ॥ द्विभुजां स्वर्ण गौरांगी पद्मचामर धारिणीम् । व्याघ्रचर्म स्थिते पद्मे पद्मासन गता सदा ॥ पद्म का रंग नील तथा चामर का श्वेत वर्ण कहा गया है । ॥ चतुर्भुजा ध्यानम् ॥ दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू । देवी प्रसीदस्तु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ॥ ॥ यन्त्रार्चनम् ॥ यन्त्र रचना – बिन्दु, त्रिकोण, षट्कोण, अष्टदल एवं भूपुर बनायें । ॐ मं मण्डूकादि पीठ देवतायै नमः से पीठ पूजा कर देवी का ध्यान मन्त्र से आवाहन करें । प्रथमावरणम् – (त्रिकोणे) ॐ सत्त्वाय नमः। ॐ रजसे नमः। ॐ तमसे नमः। द्वितीयावरणम् – (षट्कोणे) ॐ हृदय शक्तये नमः। ॐ शिर शक्तये नमः। ॐ शिखा शक्तये नमः। ॐ कवच शक्तये नमः। ॐ नेत्र शक्तये नमः । ॐ अस्त्र शक्तये नमः। तृतीयावरणम् – (अष्टदले) कालिका पुराणे ॐ जयायै नमः। ॐ विजयायै नमः । ॐ मातङ्ग्यै नमः। ॐ ललितायै नमः। ॐ नारायण्यै नमः। ॐ सावित्र्यै नमः। ॐ स्वधायै नमः। ॐ स्वाहायै नमः। पुनः असिताङ्ग भैरव, रुरुभैरव, चण्डभैरव, क्रोधभैरव, कपालभैरव, उन्मत्तभैरव, भीषणभैरव, संहारभैरव का पूजन करें । चतुर्थावरणम् – (भूपुरे चतुर्दारे) पूर्वे – गं गणेशाय नमः। दक्षिणे – वं वटुकाय नमः। पश्चिमे – यां योगिन्यै नमः। उत्तरे – क्षा क्षेत्रपालाय नमः। पञ्चमावरण हेतु भूपुर में इन्द्रादि दिक्पालों का एवं षष्ठमावरण में उनके अस्त्रों का पूजन करें । देवि की पूजा अर्चना कर मन्त्र का अनुष्ठान करें । किंशुक पुष्पों को अर्पण करें आसन व पूजा द्रव्यों की कुशा से शुद्धि करें । Related