ब्रह्मवैवर्तपुराण-श्रीकृष्णजन्मखण्ड-अध्याय 117
॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥
॥ ॐ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः ॥
(उत्तरार्द्ध)
एक सौ सत्रहवाँ अध्याय
गणेश-शिव-संवाद

श्रीनारायण कहते हैं — नारद! इसी समय गणेश ने शिवजी के स्थान पर जाकर उन महेश्वर को नमस्कार किया और बाण-अनिरुद्ध का युद्ध, सुभद्रा का वध, स्कन्द और अनिरुद्ध का युद्ध तथा अनिरुद्ध का प्रबल पराक्रम – यह सारा वृत्तान्त क्रमशः पृथक्-पृथक् कह सुनाया। गणेश का कथन सुनकर भगवान् शंकर हँस पड़े और कोमल वाणी द्वारा परम गुप्त एवं वेदसम्मत वचन बोले ।

श्रीमहादेवजी ने कहा — महाभाग गणेश्वर ! मेरा वचन, जो हितकारक, तथ्य, नीति का साररूप तथा परिणाम में सुखदायक है, उसे श्रवण करो । असंख्य विश्वों का समुदाय, कृष्णकुमार प्रद्युम्न, अनिरुद्ध तथा जो कार्य और कारणों का कारण है, वह सब कुछ श्रीकृष्ण को ही जानो । गणेश्वर ! ब्रह्मा से लेकर तृणपर्यन्त सारा जगत् सनातन भगवान् श्रीकृष्ण का स्वरूप है – इसे सत्य समझो ।

गणेशब्रह्मेशसुरेशशेषाः सुराश्च सर्वे मनवो मुनीन्द्राः । सरस्वतीश्रीगिरिजादिकाश्च नमन्ति देव्यः प्रणमामि तं विभुम् ॥

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

जो गोलोक में दो भुजाधारी, शान्त, राधा के प्रियतम, मनोहर रूपवाले, शिशुरूप, गोप-वेषधारी, परिपूर्णतम प्रभु हैं; गोपियों, गोपसमुदायों तथा कामधेनुओं से घिरे रहते हैं; पवित्र रमणीय वृन्दावन के रासमण्डल में जो हाथ में मुरली लिये विचरते रहते हैं; ब्रह्मा, शिव, शेष जिनकी वन्दना करते हैं; जो शैलराज शतशृङ्गपर वट की शान्त छाया में तथा भाण्डीर के निकट विरजा नदी के निर्मल तट पर स्थित गोष्ठ में विहार करते हैं; जिनके शरीर का वर्ण नूतन जलधर के समान श्याम है, पीताम्बर द्वारा जिनकी उसी प्रकार शोभा होती है, जैसे मेघों की नयी घटा बिजली से सुशोभित होती है । उस सबका गोलोकस्थित रासमण्डल में आविर्भाव होता है । रमणीय गोकुल तथा पुण्य वृन्दावन में जितने जीव हैं, वे सभी उस परम पुरुष की अंशकलाएँ हैं; किंतु श्रीकृष्ण स्वयं भगवान् हैं । परिपूर्णतम काम ब्रह्मशाप के कारण अपने को भूल गया है। अनिरुद्ध उसी काम के पुत्र हैं, जो महान् बल-पराक्रम से सम्पन्न हैं । इस अत्यन्त भयंकर महायुद्ध में मैंने ही स्कन्द को भेजा है । इस संग्राम में बाण मर चुका था; परंतु उस स्कन्द ने ही उसे बचा लिया है। गणेश्वर ! युद्ध में स्कन्द और अनिरुद्ध की समानता तो है, किंतु आठों भैरव, एकादश रुद्र, आठ वसु, इन्द्र आदि ये देवगण, द्वादश आदित्य, सभी दैत्यराज, देवताओं के अग्रणी स्कन्द तथा गणसहित बाण- ये सभी संग्राम में अनिरुद्ध को पराजित नहीं कर सकते। अनिरुद्ध स्वयं ब्रह्मा, प्रद्युम्न कामदेव, बलदेव स्वयं शेषनाग और श्रीकृष्ण प्रकृति से परे हैं। गणेश्वर ! इस प्रकार यह सारा रहस्य मैंने तुम्हें बता दिया। तुम तो स्वयं ही शुभस्वरूप और विघ्नों का विनाश करने वाले हो; अतः बाण की रक्षा करो। श्रीहरि अस्त्रश्रेष्ठ सुदर्शन को, जो अमोघ और करोड़ों सूर्यों के समान कान्तिमान् है, लेकर शीघ्र ही आयेंगे ।  (अध्याय ११७)

॥ इति श्रीब्रह्मवैवर्ते महापुराणे श्रीकृष्णजन्मखण्डे उत्तरार्धे नारायणनारदसंवाद बाणयुद्धे शिवलम्बोदरसंवाद सप्तदशाधिकशाततमोऽध्यायः ॥ ११७ ॥

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