March 1, 2025 | aspundir | Leave a comment ब्रह्मवैवर्तपुराण-श्रीकृष्णजन्मखण्ड-अध्याय 53 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः ॥ तिरपनवाँ अध्याय श्रीकृष्ण द्वारा श्रीराधा का शृङ्गार, गोपियों द्वारा उनकी सेवा नारदजी ने पूछा — पूर्णमासी बीत जाने पर जगदीश्वर श्रीकृष्ण ने क्या किया? उस समय उनकी कौन-सी रहस्यलीला हुई ? यह बताने की कृपा करें । श्रीनारायण ने कहा — रासमण्डल में रासलीला सम्पन्न करके स्वयं रासेश्वर श्यामसुन्दर रासेश्वरी राधा के साथ यमुनातट पर गये, वहाँ स्नान एवं निर्मल जल का पान करके उन्होंने कालिन्दी के स्वच्छ सलिल में गोपाङ्गनाओं के साथ जलक्रीड़ा की । तदनन्तर भगवान् श्रीकृष्ण राधिकाजी के साथ भाण्डीर वन में चले गये । इधर प्रेमविह्वला गोपियाँ अपने-अपने घरों को लौट गयीं। उस समय श्यामसुन्दर श्रीराधा के साथ मालतीकानन, वासन्तीकानन, चन्दनकानन तथा चम्पककानन आदि मनोहर वनों में क्रीड़ा करते रहे। फिर पद्मवन में रात को शयन किया। ॐ नमो भगवते वासुदेवाय प्रातः काल उन्होंने देखा, प्रियाजी फूलों की शय्या पर सो रही हैं । शरत्कालिक चन्द्रमा की शोभा को तिरस्कृत करने वाले उनके सुन्दर मुख पर पसीने की बूँदें दिखायी दे रही हैं। सिन्दूर लुप्त हो गया है, कज्जल मिट गया है, अधरों की लाली भी लुप्तप्राय हो गयी है और कपोलों की पत्र – रचना मिट गयी है। उनकी वेणी खुल गयी है, नेत्रकमल बंद हैं और रत्नों के बने हुए दो बहुमूल्य कुण्डलों से उनके मुखमण्डल की अपूर्व शोभा हो रही है । दन्तपंक्ति से सुशोभित मुख मानो गजमुक्ता से अलंकृत एवं उद्दीप्त है । प्रियाजी को इस अवस्था में देख भक्तवत्सल माधव ने अग्निशुद्ध महीन वस्त्र से उनके मुख को बड़े प्रेम और भक्तिभाव से पोंछा । फिर केशों को सँवारकर उनकी चोटी बाँध दी। उस चोटी में माधवी और मालती के फूलों की माला लगा दी, जिससे उसकी शोभा बहुत बढ़ गयी । वह चोटी रत्नयुक्त रेशमी डोरों से बँधी थी। उसकी आकृति सुन्दर, वक्र, मनोहर और अत्यन्त गोल थी । कुन्द के फूलों से भी उसका शृङ्गार किया गया था । वेणी बाँधने के पश्चात् श्यामसुन्दर ने प्रियाजी के भाल- देश में सिन्दूर का तिलक लगाया। उसके नीचे उज्ज्वल चन्दन का शृङ्गार किया । फिर कस्तूरी की बेंदी से उनके ललाट की शोभा बढ़ायी । तत्पश्चात् दोनों कपोलों पर चित्र विचित्र पत्र – रचना की। नेत्रकमलों में भक्तिभाव से काजल लगाया, जिससे उनका सौन्दर्य खिल उठा। फिर बड़े अनुराग से राधा के अधरों में लाली लगायी। कान में दो अत्यन्त निर्मल आभूषण पहनाये । गले में बहुमूल्य रत्नों का हार पहनाया, जो उनके वक्षःस्थल को उद्भासित कर रहा था। वह हार मणियों की लड़ियों से प्रकाशित हो रहा था । तदनन्तर बहुमूल्य, दिव्य, अग्निशुद्ध तथा सब प्रकार के रत्नों से अलंकृत वस्त्र पहनाया, जो कस्तूरी और कुंकुम से अभिषिक्त था । दोनों चरणों में रत्ननिर्मित मञ्जीर पहनाये और पैरों की अँगुलियों एवं नखों में भक्तिभाव से महावर लगाया । जो तीनों लोकों के सत्पुरुषों द्वारा सेव्य हैं; उन श्यामसुन्दर ने अपनी सेव्यरूपा प्राणवल्लभा की सेवा की । तदनन्तर सेवकोचित भक्ति से श्वेत चँवर डुलाया। यह कैसी अद्भुत बात है । इसके बाद समस्त भावों के जानकारों में श्रेष्ठ बोधकला के ज्ञाता एवं विलास-शास्त्र के मर्मज्ञ श्रीहरि ने अपनी प्राणवल्लभा को जगाया और अपने वक्ष:स्थल में उनके लिये स्थान दिया । इस प्रकार श्रीराधा को जगाकर श्रीकृष्ण ने उन्हें भाँति-भाँति के पुष्पमाला, आभूषण तथा कौस्तुभमणि आदि के द्वारा सुसज्जित किया । रत्नपात्र में भोजन और जल प्रस्तुत किये। इसी समय चरण – चिह्नों को पहचानती हुई श्रीराधा की सुप्रतिष्ठित सहचरी सुशीला आदि छत्तीस गोपियाँ अन्यान्य बहुसंख्यक गोपाङ्गनाओं के साथ वहाँ आ पहुँचीं । किन्हीं के हाथ में चन्दन था और किन्हीं के हाथ में कस्तूरी । कोई चँवर लिये आयी थी और कोई माला । कोई सिन्दूर, कोई कंघी, कोई आलता (महावर) और कोई वस्त्र लिये हुए थी। कोई अपने हाथ में दर्पण, कोई पुष्पपात्र, कोई क्रीड़ाकमल, कोई फूलों के गजरे, कोई मधुपात्र, कोई आभूषण, कोई करताल, कोई मृदंग, कोई स्वर – यन्त्र और कोई वीणा लिये आयी थीं । जो छत्तीस राग-रागिनियाँ गोपी का रूप धारण करके गोलोक से राधा के साथ भारतवर्ष में आयी थीं, वे सब वहाँ उपस्थित हुईं। कई गोपियाँ वहाँ आकर नाचने और गाने लगीं तथा कोई श्वेत चँवर डुलाकर राधा की सेवा करने लगीं । महामुने! कुछ गोपियाँ प्रसन्नता-पूर्वक देवी राधा के पैर दबाने लगीं । एक ने उन्हें चबाने के लिये पान का बीड़ा दिया। इस प्रकार पवित्र वृन्दावन में श्रीराधा के वक्षःस्थल में विराजमान भगवान् श्यामसुन्दर कौतूहलपूर्वक गोपियों के साथ वहाँ से प्रस्थित हुए। वत्स ! इस प्रकार मैंने श्रीहरि की रासक्रीड़ा का वर्णन किया। वे भगवान् श्रीकृष्ण स्वेच्छामय रूपधारी, परिपूर्णतम परमात्मा, निर्गुण, स्वतन्त्र, प्रकृति से भी परे, सर्वसमर्थ और ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव आदि के भी परमेश्वर हैं । इस प्रकार श्रीकृष्ण जन्म का रहस्य, मन को प्रिय लगने वाली उनकी बाललीला तथा किशोर-लीला का भी वर्णन किया गया। अब तुम और क्या सुनना चाहते हो ? (अध्याय ५३) ॥ इति श्रीब्रह्मवैवर्त्ते महापुराणे श्रीकृष्णजन्मखण्डे नारायणनारदसंवादे श्रीकृष्णरासक्रीडावर्णनं नाम त्रिपञ्चाशत्तमोऽध्यायः ॥ ५३ ॥ ॥ हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥ Content is available only for registered users. Please login or register Please follow and like us: Related