January 4, 2019 | aspundir | Leave a comment भविष्यपुराण – उत्तरपर्व – अध्याय ४८ ॐ श्रीपरमात्मने नमः श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय भविष्यपुराण (उत्तरपर्व) अध्याय ४८ कल्याण-सप्तमी-व्रत की विधि महराज युधिष्ठिर ने कहा — भगवन् ! यदि इस संसार-सागर से पार उतारनेवाला तथा स्वर्ग, आरोग्य एवं सुखप्रदायक कोई व्रत हो तो उसे आप बतलाने की कृपा करें । भगवान् श्रीकृष्ण बोले — राजन् ! जिस शुक्ला सप्तमी को आदित्यवार हो, उसे विजया-सप्तमी या कल्याण-सप्तमी कहते हैं । यह तिथि महापुण्यमयी है । इस दिन प्रातःकाल गोदुग्ध-युक्त जल से स्नानकर शुक्ल वस्त्र धारण कर अक्षतों से अति सुन्दर एक कर्णिका-युक्त अष्ट-दल-कमल बनाये तथा पूर्वादि आठों दलों में क्रमशः पूर्व दिशा में ‘ॐ तपनाय नमः,’ अग्निकोण में ‘ॐ मार्तण्डाय नमः’, दक्षिण दिशा में ‘ॐ दिवाकराय नमः’, नैर्ऋत्यकोण में ‘ॐ विधात्रे नमः’, पश्चिम दिशा में ‘ॐ वरुणाय नमः’, वायव्यकोण में ‘ॐ भास्कराय नमः’, उत्तर दिशा में ‘ॐ विकर्तनाय नम:’ तथा ईशानकोण में ‘ॐ रवये नम:’ — इस प्रकार से नाम-मन्त्रों द्वारा कर्णिकाओं में सभी उपचारों से पूजन करे । शुक्ल वस्त्र, फल, भक्ष्य पदार्थ, धूप, पुष्पमाला, गुड़ और लवण से नमस्कारान्त इन नाम-मन्त्रों से वेदी के ऊपर पूजा करे । इसके बाद व्याहृति-होम कर यथाशक्ति ब्राह्मण भोजन कराये । गुरु को सुवर्ण सहित तिलपात्र-दान करे । दूसरे दिन प्रातः उठकर नित्य-क्रिया से निवृत्त हो ब्राह्मणों के साथ घृत एवं पायस से बने पदार्थों का भोजन करे । इस प्रकार एक वर्ष तक भगवान् सूर्य का पूजन एवं व्रत कर उद्यापन करे । जल, कलश, घृतपात्र, सुवर्ण, वस्त्र, आभूषण और सवत्सा गौ ब्राह्मण को दे । इतनी शक्ति न हो तो गोदान करे । जो इस कल्याण-सप्तमी-व्रत को करता है अथवा माहात्म्य को पढ़ता या सुनता है, वह सभी पापों से मुक्त होकर सूर्यलोक में निवास करता है । (अध्याय ४८) Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe