January 6, 2019 | aspundir | Leave a comment भविष्यपुराण – उत्तरपर्व – अध्याय ६६ ॐ श्रीपरमात्मने नमः श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय भविष्यपुराण (उत्तरपर्व) अध्याय ६६ अरण्यद्वादशी-व्रत का विधान और फल महाराज युधिष्ठिर ने कहा — श्रीकृष्णचन्द्र ! आप अरण्यद्वादशी-व्रत का विधान बतलायें । भगवान् श्रीकृष्ण बोले — कौन्तेय ! प्राचीन काल में जिस व्रत को रामचन्द्रजी की आज्ञा से वन में सीताजी ने किया था और अनेक प्रकार के भक्ष्य-भोज्य आदि से मुनिपत्नियों को संतुष्ट किया था, उस अरण्यद्वादशी-व्रत का विधान मैं बतलाता हूँ, आप प्रीतिपूर्वक सुनें । इस व्रत में मार्गशीर्ष मास की शुक्ला एकादशी को प्रातः स्नानकर भगवान् जनार्दन की भक्तिपूर्वक गन्ध, पुष्पादि उपचारों से पूजा करनी चाहिये और उपवास रखना चाहिये । रात्रि जागरण करना चाहिये । दूसरे दिन स्नान आदि करके वेदज्ञ ब्राह्मणों को उपवन में ले जाकर प्रायः फल आदि भोजन कराना चाहिये । अनन्तर पञ्चगव्य का प्राशन कर स्वयं भी भोजन करना चाहिये । इस विधि से एक वर्ष तक व्रत करे । श्रावण, कार्तिक, माघ तथा चैत्र मास में वृक्षादि से सुशोभित किसी सुन्दर वन में अरण्यवासियों, मुनियों तथा ब्राह्मणों को पूर्व या उत्तरमुख आसन पर बैठाकर मण्डूक, घृतपूर, खण्डवेष्टक, शाक, व्यञ्जन, अपूप, मोदक तथा सोहालक आदि अनेक प्रकार के पक्वान्न, फल तथा विभिन्न भोज्य पदार्थों से संतुष्ट करे और दक्षिणा प्रदान करे । कर्पूर, इलायची, कस्तूरी आदि से सुगन्धित पानक आम, इमली आदि के कच्चे फलों को भूनकर बनाया जानेवाला कुछ खट-मीठा पेय पदार्थ। पना। पन्ना। पिलाना चाहिये । वन में रहनेवाले मुनिगण एवं उनकी पत्नियों, एक दण्डी अथवा त्रिदण्दी और गृहस्थ आदि अन्य ब्राह्मणों को भी भोजन कराना चाहिये । वासुदेव, जनार्दन, दामोदर, मधुसूदन, पद्मनाभ, विष्णु, गोवर्धन, त्रिविक्रम, श्रीधर, हृषीकेश, पुण्डरीकाक्ष तथा वराह — इन बारह नामों से नमस्कारपूर्वक एक-एक ब्राह्मण को भोजन कराकर वस्त्र और दक्षिणा देकर ‘विष्णुर्मे प्रीयताम्’ यह वाक्य कहकर अपने मित्र, सम्बन्धी और बान्धवों के साथ स्वयं भी भोजन करे । इस प्रकार से जो अरण्यद्वादशी-व्रत करता है, वह अपने परिवार के साथ दिव्य विमान में बैठकर भगवान् के धाम श्वेतद्वीप में निवास करता है । वह वहाँ प्रलयपर्यन्त निवासकर मुक्ति प्राप्त करता है । यदि कोई स्त्री भी इस व्रत का आचरण करती हैं तो वह भी संसार के सभी सुखों का उपभोग कर भगवान् की कृपा से पतिलोक को प्राप्त करती है । (अध्याय ६६) Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe