December 25, 2018 | Leave a comment भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ७ ॐ श्रीपरमात्मने नमः श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय भविष्यपुराण (प्रतिसर्गपर्व — द्वितीय भाग) अध्याय – ७ समान-वर्ण में विवाह-सम्बन्ध का औचित्य (त्रिलोकसुन्दरी की कथा) सूत जी बोले— उस समय वह वैताल प्रसन्न होकर राजा से एक उत्तम गाथा का वर्णन करने लगा । चम्पापुरी में चम्प नामक राजा, जो बलवान एवं धनुर्धारी था, राज कर रहा था । उसकी प्रधान रानी का नाम सुलोचना था । उनके त्रिलोक-सुन्दरी नामक एक कन्या उत्पन्न हुई, चन्द्र के समान जिसका मुख, धनुष की भाँति भौहें, मृग के समान नेत्र एवं कोकिल की भाँति वाणी थी । नृप उस परम सुन्दरी कोमलाङ्गी को प्राप्त करने के लिए जब देवगण इच्छुक थे, तो मनुष्यों को क्या कहा जा सकता है। उसका स्वयम्बर हुआ, जिसमें पृथिवी के ख्यातिप्राप्त अनेक राजवृन्द उसके लिए लालायित होकर आये थे । देवश्रेष्ठ इन्द्र, यम, कुबेर, और वरुणदेव भी मनुष्य वेष में उसकी प्राप्ति के लिए वहाँ उपस्थित थे । एक ने चम्पकेश से कहा — राजन् ! मेरी बात सुनो ! समस्त शास्त्रों में निपुण, रूपवान्, एवं सौन्दर्यपूर्ण मैं हूँ, मेरा नाम इन्द्रदत्त है । ऐसा जानकर मुझे अपनी कन्या प्रदान कीजिये । दूसरे ने कहा — मेरा नाम धर्मदत्त है, मैं मनोहर एवं धनुर्वेद में कुशल हूँ अतः मुझे अपनी कन्या देने की कृपा कीजिये । तीसरे ने कहा — राजन् ! मुझ धनपाल के लिए जो समस्त जीवों की भाषा का ज्ञाता, और गुणी है, शीघ्र अपनी कन्या अर्पित करके सुख का अनुभव कीजिये । चौथे ने कहा — राजन् ! मैं समस्त कला का विद्वान् हूँ, तथा प्रतिदिन पाँच रत्न की प्राप्ति के लिए उद्योग करता हूँ । उन्हें प्राप्तकर पहले रत्न को पुण्यार्थ दूसरे को हवन के निमित्त, तीसरा अपने लिए, चौथा पत्नी के लिए और पाँचवा क्लीब के भोजनार्थ प्रदान करता हूँ । अतः मुझ जैसे पुरुष को आप अपनी कन्या प्रदान करें। ऐसी बातें सुनकर राजा मोहित हो गया । उस समय उस धर्मात्मा ने अपनी कन्या से कहा— पुत्री ! मैं तुम्हें किसे अर्पित करूँ ? वह देवी उस समय उनकी बात सुनकर दैवयोग से लज्जा के कारण अपने उस धार्मिक पिता को कुछ उत्तर न दे सकी । इतना कहकर उस वैताल ने हँसकर राजा से कहा — रूप, और यौवन सम्पन्न वह कन्या किसके योग्य हुई ? सूत जी बोले— ऐसा कहने पर राजा ने वैताल से कहा — वह रूपवती कन्या धर्मदत्त के योग्य हुई क्योंकि वह सम्पूर्ण शास्त्र में निपुण और जन्मना ब्राह्मण जाति का था । वह भाषावेत्ता तथा अपने धन धान्य की वृद्धि करने वाला वैश्य, कला-निपुण वह शूद्र, और धनुर्वेदी वह राजा क्षत्रिय था । अतः वैताल ! कन्या सदैव अपनी जाति के योग्य होती है । इसीलिए शीलसम्पन्न उस धर्मदत्त के साथ उस कन्या का विवाह संस्कार किया गया । (अध्याय ७) See Also :- 1. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २१६ 2. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व प्रथम – अध्याय १९ से २१ 3. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व द्वितीय – अध्याय १९ से २१ 4. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व तृतीय – अध्याय २० 5. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व प्रथम – अध्याय ७ 6. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय १ 7. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय २ 8. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ३ 9. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ४ 10. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ५ 11. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ६ Related