भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ५४
ॐ श्रीपरमात्मने नमः
श्रीगणेशाय नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
भविष्यपुराण
(ब्राह्मपर्व)
अध्याय – ५४
भगवान् सूर्य की महिमा, विभिन्न ऋतुओं में उनके अलग-अलग वर्ण तथा उनके फल

भगवान् रुद्र ने कहा – ब्रह्मन् ! आपने भगवान् सूर्यनारायण के माहात्म्य का वर्णन किया, जिसके सुनने से हमें बहुत आनन्द मिला, कृपाकर आप उनके माहात्म्य का और वर्णन करें।
om, ॐ
ब्रह्माजी बोले – हे रुद्र ! इस सचराचर त्रैलोक्य के मूल भगवान् सूर्यनारायण ही हैं । देवता, असुर, मानव आदि इन्हीं से उत्पन्न हैं । इन्द्र, चन्द्र, रुद्र, ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव आदि जितनर भी देवता हैं, सबमें इन्हीं का तेज व्याप्त है । अग्निमें विधिपूर्वक दी हुई आहुति सूर्यभगवान् को ही प्राप्त होती है । भगवान् सूर्य से ही वृष्टि होती है, वृष्टि से अन्नादि उत्पन्न होते हैं और यही अन्न प्राणियों का जीवन है । इन्हींसे जगत् की उत्पति होती है और अन्त में इन्हीं में सारी सृष्टि विलीन हो जाती है । ध्यान करने वाले इन्हीं का ध्यान करते हैं तथा ये मोक्ष की इच्छा रखने वालों के लिये मोक्षस्वरूप हैं । यदि सूर्य भगवान् न हों तो क्षण, मुहूर्त, दिन, रात्रि, पक्ष, मास, ऋतु, अयन, वर्ष तथा युग आदि काल-विभाग हो ही नहीं और काल विभाग न होने से जगत् का कोई व्यवहार भी नहीं चल सकता । ऋतुओं का विभाग न हो तो फिर फल-फूल, खेती, ओषधियाँ आदि कैसे उत्पन्न हो सकती हैं ? और इनकी उत्पत्ति के बिना प्राणियों का जीवन भी कैसे रह सकता है ? इससे यह स्पष्ट है कि इस (चराचरात्मक) विश्व के मूलभूत कारण भगवान् सूर्यनारायण ही हैं। सूर्यभगवान् वसन्त-ऋतु में कपिलवर्ण, ग्रीष्म में तप्त सुवर्ण के समान, वर्षा में श्वेत, शरद्-ऋतु में पाण्डुवर्ण, हेमन्त में ताम्रवर्ण और शिशिर-ऋतु में रक्तवर्ण के होते हैं। इन वर्णों का अलग-अलग फल है । रुद्र ! उसे आप सुनें ।

यदि सूर्यभगवान् (असमय में) कृष्णवर्ण के हों तो संसार में भय होता है, ताम्रवर्ण के हों तो सेनापति का नाश होता है, पीतवर्ण के हों तो राजकुमार की मृत्यु, श्वेतवर्ण के हों तो राजपुरोहित का ध्वंस और चित्र अथवा धूम्रवर्णके होने से चोर और शस्त्र का भय होता है, परंतु ऐसा वर्ण होने के अनन्तर यदि वृष्टि हो जाती है तो अनिष्ट फल नहीं होते (इस विषयका वृहद् वर्णन ‘बृहत्संहिता’ की भट्टोत्पली टीका आदि में है। विशेष जानकारी के लिये उन्हें देखा जा सकता है। )।
(अध्याय ५४)

See Also :-

1. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १-२

2. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय 3

3. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ४

4. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ५

5. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ६

6. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ७

7. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ८-९

8. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १०-१५

9. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १६

10. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १७

11. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १८

12. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १९

13. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २०

14. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २१

15. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २२

16. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २३

17. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २४ से २६

18. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २७

19. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २८

20. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २९ से ३०

21. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३१

22. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३२

23. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३३

24. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३४

25. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३५

26. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३६ से ३८

27. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३९

28. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ४० से ४५

29. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ४६

30. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ४७

31. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ४८

32. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ४९

33. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ५० से ५१

34. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ५२ से ५३

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.