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भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ७१
ॐ श्रीपरमात्मने नमः
श्रीगणेशाय नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
भविष्यपुराण
(ब्राह्मपर्व)
अध्याय – ७१
ब्रह्मा द्वारा कहा गया भगवान् सूर्य का नाम-स्त्रोत्र

ब्रह्माजी बोले – याज्ञवल्क्य ! भगवान् सूर्य जिन नामों के स्तवन से प्रसन्न होते हैं, मैं उनका वर्णन कर रहा हूँ –

नमः सूर्याय नित्याय रवयेऽर्काय भानवे ।
भास्कराय मतङ्गाय मार्तण्डाय विवस्वते ॥

नित्य, रवि, अर्क, भानु, भास्कर, मतङ्ग, मार्तण्ड तथा विवस्वान् नामों से युक्त भगवान् सूर्य को मेरा नमस्कार है ।om, ॐअदित्यायादिदेवाय नमस्ते रश्मिमालिने ।
दिवाकाराय दीप्ताय अग्नये मिहिराय च ॥

आदिदेव,रश्मिमाली, दिवाकर, दीप्त, अग्नि तथा मिहिर नामक भगवान् आदित्य को मेरा नमस्कार है ।
प्रभाकराय मित्राय नमस्तेऽदितिसम्भव ।
नमो गोपतये नित्यं दिशां च पतये नमः ॥

हे अदिति के पुत्र भगवान् सूर्य ! आप प्रभाकर, मित्र, गोपति (किरणों के स्वामी) तथा दिक्पति नाम वाले हैं, आपको मेरा नित्य नमस्कार है ।
नमो धात्रे विधात्रे च अर्यम्णे वरुणाय च ।
पूष्णे भगाय मित्राय पर्जन्यायांशवे नमः ॥

धाता, विधाता अर्यमा, वरुण पूषा, भग, मित्र, पर्जन्य, अंशुमान् नाम वाले भगवान् सूर्य को मेरा प्रणाम है ।नमो हितकृते नित्यं धर्माय तपनाय च ।
हरये हरिताश्वाय विश्वस्य पतये नमः ॥

हितकृत (संसारका कल्याण करनेवाले), धर्म, तपन, हरि, हरिताश्व (हरे रंगके अश्वों वाले), विश्वपति भगवान् सूर्य को नित्य मेरा नमस्कार है ।
विष्णवे ब्रह्मणे नित्यं त्र्यम्बकाय तथात्मने ।
नमस्ते सप्तलोकेश नमस्ते सप्तसप्तये ॥

विष्णु, ब्रह्रा, त्र्यम्बक (शिव), आत्मस्वरूप, सप्तसप्ती, हे सप्तलोकेश ! आपको मेरा नमस्कार है ।
एकस्मै हि नमस्तुभ्यमेकचक्ररथाय च ।
ज्योतिषां पतये नित्यं सर्वप्राणभृते नमः ॥

अद्वितीय, एकचक्ररथ (जिनके रथमें एक ही चक्र है), ज्योतिष्पति, हे सर्वप्राणभृत् ! (सभी प्राणियों का भरण-पोषण करनेवाले) आपको मेरा नित्य नमस्कार है ।हिताय सर्वभूतानां शिवायार्तिहराय च ।
नमः पद्मप्रबोधाय नमो वेदादिमूर्तये ॥

समस्त प्राणिजगत् का हित करनेवाले, शिव (कल्याणकारी) और आर्तिहर (दुःखविनाशी), पद्मप्रबोध (कमलों को विकसित करनेवाले), वेदादिमूर्ति भगवान् सूर्य को नमस्कार है ।
काधिजाय नमस्तुभ्यं नमस्तारासुताय च ।
भीमजाय नमस्तुभ्यं पावकाय च वै नमः ॥

प्रजापतियों के स्वामी महर्षि कश्यप के पुत्र ! आपको नमस्कार है । भीमपुत्र तथा पावक नामवाले तारासुत ! आपको नमस्कार है, नमस्कार है ।
धिषणाय नमो नित्यं नमः कृष्णाय नित्पदा ।
नमोऽस्त्वदितिपुत्राय नमो लक्ष्याय नित्यशः ॥

धिषण, कृष्ण, अदितिपुत्र तथा लक्ष्य नामवाले भगवान् सूर्य को बार-बार नमस्कार है ।

ब्रह्माजीने कहा – याज्ञवल्क्य ! जो मनुष्य सायंकाल और प्रातःकाल इन नामों का पवित्र होकर पाठ करता है, वह मेरे समान ही मनोवाञ्छित फलों को प्राप्त करता है । इस नाम-स्तोत्र से सूर्य की आराधना करने पर उनके अनुग्रह से धर्म, अर्थ, काम, आरोग्य, राज्य तथा विजय की प्राप्ति होती है । यदि मनुष्य बन्धन में हो तो इसके पाठ से बन्धन-मुक्त हो जाता है । इसके जप करने से सभी पापों से छुटकारा मिल जाता है । यह जो सूर्य-स्तोत्र मैंने कहा है, वह अत्यन्त रहस्यमय है ।
(अध्याय ७१)

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