January 2, 2016 | aspundir | Leave a comment शत्रु-मोहन मन्त्र – मन्त्रः- ”चन्द्र-शत्रु राहू पर, विष्णु का चले चक्र । भागे भयभीत शत्रु, देखे जब चन्द्र वक्र । दोहाई कामाक्षा देवी की, फूँक-फूँक मोहन-मन्त्र । मोह-मोह शत्रु मोह, सत्य तन्त्र-मन्त्र-यन्त्र ।। तुझे शङ्कर की आन, सत-गुरु का कहना मान । ॐ नम: कामाक्षाय अं कं बं टं तं पं वं शं हीं क्रीं श्रीं फट् स्वाहा ।।” विधि : ‘चन्द्र – ग्रहण’ या ‘सूर्य – ग्रहण’ के समय किसी बारहों मास बहने वाली नदी के किनारे, कमर भर जल में पूर्व की ओर मुख करके खड़ा हो जाए । जब तक ग्रहण लगा रहे, श्री कामाक्षा देवी का ध्यान करते हुए उक्त मन्त्र का पाठ करता रहे । ग्रहण का ‘मोक्ष’ होने पर सात डुबकियाँ लगाकर स्नान करे । आठवीं डुबकी लगाकर नदी के जल के भीतर की मिट्टी बाहर निकाले । उस मिट्टी को अपने पास सुरक्षित रखे । जब किसी शत्नु को सम्मोहित करना हो, तब स्नानादि से निपट कर उक्त मन्त्र को १०८ बार पढ़ कर उसी मिट्टी का चन्दन ललाट (मस्तक) पर लगाए और शत्नु के पास जाए । शत्रु इस प्रकार सम्मोहित हो जायगा कि शत्रुता छोड़कर उस दिन से उसका सच्चा मित्र बन जाएगा । Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe