शिवमहापुराण — उमासंहिता — अध्याय 04
॥ श्रीगणेशाय नमः ॥
॥ श्रीसाम्बसदाशिवाय नमः ॥
श्रीशिवमहापुराण
उमासंहिता
चौथा अध्याय
शिवकी मायाका प्रभाव

मुनिगण बोले – हे तात! हे तात! हे महाभाग ! हे महामते ! आप धन्य हैं; क्योंकि आपने परम भक्ति प्रदान करनेवाली यह अद्भुत शिवकथा सुनायी है ॥ १ ॥ [ हे सूतजी ! ] व्यासदेवके प्रश्नके अनुसार पुनः शिवकी कथा कहिये । आप सर्वज्ञ, व्यासजीके शिष्य और शिवतत्त्वके ज्ञाता हैं ॥ २ ॥

सूतजी बोले- इसी प्रकार मेरे गुरु व्यासजीने सब कुछ जाननेवाले शिवभक्त मुनीश्वर ब्रह्मपुत्र सनत्कुमारजीसे पूछा था ॥ ३ ॥

महानन्दमनन्तलीलं महेश्वरं सर्वविभुं महान्तम् ।
गौरीप्रियं कार्तिकविघ्नराज-समुद्भवं शङ्करमादिदेवम् ॥


व्यासजी बोले – हे सनत्कुमार ! हे सर्वज्ञ ! आपने अनेक प्रकारसे लीलाविहार करनेवाले महेश्वर शंकरकी यह शुभ कथा सुनायी । आप पुनः महादेव शिवकी महिमाका विशेषरूपसे वर्णन करें । हे तात! मेरी बहुत अधिक श्रद्धा उसे सुननेके लिये बढ़ रही है ॥ ४-५ ॥ विविध प्रकारसे लीलाविहार करनेवाले सदाशिवकी जिस महिमा तथा मायाके प्रभावसे ज्ञानरहित होकर लोकमें जो-जो लोग विमोहित हुए, उनकी कथा सुनाइये ॥ ६ ॥

सनत्कुमार बोले – हे व्यास ! हे महामते ! शंकरकी सुखदायिनी कथाको सुनिये, जिसके सुननेमात्र शिवजीके प्रति भक्ति उत्पन्न हो जाती है ॥ ७ ॥ शिवजी ही सर्वेश्वर देवता, सर्वात्मा एवं सभीके द्रष्टा हैं, उनकी महिमासे सम्पूर्ण जगत् व्याप्त है ॥ ८ ॥ ब्रह्मा, विष्णु तथा रुद्रके रूपमें भगवान् शिवकी ही त्रिलिंगात्मिका परामूर्ति अभिव्यक्त हो रही है और समस्त प्राणियोंकी आत्माके रूपमें उन्हींकी निष्कल मूर्ति स्थित है ॥ ९ ॥

आठ प्रकारकी देवयोनियाँ, नौवीं मनुष्ययोनि एवं पाँच प्रकारकी तिर्यग् योनियाँ – इन सबको मिलाकर चौदह योनियाँ होती हैं। जो हो चुके हैं, विद्यमान हैं तथा आगे होनेवाले हैं- ये सभी [प्राणि- पदार्थ ] शिवसे ही उत्पन्न होते हैं, वृद्धिको प्राप्त होते हैं और अन्तमें शिवमें ही विलीन हो जाते हैं ॥ १०-११ ॥ ब्रह्मा, इन्द्र, विष्णु, चन्द्र, देवता, दानव, नाग, गन्धर्व, मनुष्य तथा अन्य सभी प्राणियोंके बन्धु, मित्र, आचार्य, रक्षक, नेता, धनदाता, गुरु, भाई, पिता, माता एवं [वांछित फलोंको देनेवाले] कल्पवृक्षस्वरूप शिवजी ही माने गये हैं ॥ १२-१३ ॥ शिव सर्वमय हैं, वे ही मनुष्योंके लिये जाननेयोग्य हैं तथा परसे भी परे हैं, जिनका वर्णन नहीं किया जा सकता और जो पर तथा अनुपर हैं, उनकी माया परम दिव्य तथा सर्वत्र व्याप्त रहनेवाली है और हे मुने ! देवता, असुर एवं मनुष्योंसहित सम्पूर्ण जगत् उसीके अधीन है ॥ १४- १५ ॥

शिवजीकी मायाने मनसे उत्पन्न होनेवाले, अपने प्रबल सहयोगी कामके द्वारा विष्णु आदि सभी प्रबल वीर देवताओंको भी अपने अधीन कर लिया है ॥ १६ ॥ हे मुनीश्वर ! शिवकी मायाके प्रभावसे विष्णु भी कामसे मोहित हो गये । देवताओंके स्वामी दुष्टात्मा इन्द्र भी गौतमकी पत्नीपर मोहित होकर पापकर्ममें प्रवृत्त हुए, तब उनको मुनिने शाप दे दिया ॥ १७-१८ ॥ जगत् में श्रेष्ठ अग्निदेव भी अहंकारके कारण शिवकी मायासे मोहित हो कामके अधीन हो गये, बादमें उन [ शिवजी ] – ने ही उनका उद्धार किया ॥ १९ ॥ हे व्यास ! जगत्के प्राणस्वरूप वायु भी शिवकी मायासे मोहित होकर कामके वशीभूत होकर प्रेममें आसक्त हो गये ॥ २० ॥

शिवकी मायासे मोहित हुए प्रचण्ड किरणोंवाले सूर्यदेवने भी घोड़ी [के रूपमें स्थित अपनी पत्नी संज्ञा] को देखकर कामसे व्याकुल होकर घोड़ेका स्वरूप धारण किया ॥ २१ ॥ शिवमायासे विमोहित होकर कामसे व्याकुल चन्द्रमाने भी आसक्त होकर गुरुपत्नीका अपहरण किया, बादमें उन शिवने ही उनका उद्धार किया ॥ २२ ॥ पूर्व समयमें मित्र एवं वरुण – दोनों मुनि तपस्यामें स्थित थे, तब शिवकी मायासे मोहित हुए वे दोनों उर्वशी [अप्सरा]-को देखकर मुग्धचित्त तथा कामनायुक्त हो गये। तब मित्रने अपना तेज घड़ेमें और वरुणने जलमें छोड़ दिया। तत्पश्चात् उस कुम्भसे वडवाग्निके समान कान्तिवाले अगस्त्य उत्पन्न हुए और वरुणके तेजसे जलसे वसिष्ठका जन्म हुआ ॥ २३–२५ ॥

पूर्वकालमें ब्रह्माके पुत्र दक्ष भी शिवमायासे मोहित हो गये और भाइयोंके साथ वे अपनी भगिनीसे सम्पर्ककी कामनावाले हो गये ॥ २६ ॥ शिवमायासे मोहित होकर ब्रह्मा भी अनेक बार स्त्री-संगकी कामनावाले हो गये ॥ २७ ॥ महायोगी च्यवन भी शिवकी मायासे मोहित हो गये और उन्होंने कामासक्त हो [ अपनी पत्नी ] सुकन्याके साथ विहार किया ॥ २८ ॥ पूर्वकालमें [महर्षि] कश्यपने शिवमायासे मोहित होकर कामके अधीन हो मोहपूर्वक राजा धन्वासे उनकी कन्याकी याचना की। शिवकी मायासे मोहित हुए गरुड़ने भी शांडिली नामक कन्याको ग्रहण करनेकी इच्छा की, तब उनके अभिप्रायको जान लेनेके बाद उसने उनके पंखोंको भस्म कर दिया ॥ २९-३० ॥

मुनि विभांडक स्त्रीको देखकर कामके अधीन हो गये और शिवकी प्रेरणासे हरिणीसे ऋष्यश्रृंग नामक पुत्र उन्हें उत्पन्न हुआ ॥ ३१ ॥ शिवमायासे मोहित चित्तवाले महर्षि गौतम शारद्वतीको वस्त्रहीन देखकर क्षुब्ध हो गये और उन्होंने उसके साथ रमण किया ॥ ३२ ॥ तपस्वी [ भारद्वाज]-ने [ घृताची अप्सराको देखकर ] अपने स्खलित वीर्यको द्रोणीमें रख दिया, तब उस कलशसे शस्त्रधारियोंमें श्रेष्ठ द्रोणाचार्य उत्पन्न हुए ॥ ३३ ॥ शिवकी मायासे मोहित होकर महायोगी पराशरने भी निषादराजकी कुमारी कन्या मत्स्योदरीके साथ विहार किया ॥ ३४ ॥ हे व्यास ! विश्वामित्र भी शिवमायासे मोहित हो गये और उन्होंने कामके वशीभूत हो वनमें मेनकाके साथ रमण किया। नष्ट बुद्धिवाले उन्होंने वसिष्ठके साथ विरोध किया और शिवकी कृपासे ही पुनः वे [ क्षत्रियसे] ब्राह्मण हो गये ॥ ३५-३६ ॥

विश्रवाके पुत्र कामासक्त दुर्बुद्धि रावणने शिवकी मायासे विमोहित होकर सीताका अपहरण किया और अन्तमें उसकी मृत्यु हुई ॥ ३७ ॥ शिवकी मायासे विमोहित हुए जितेन्द्रिय मुनिवर बृहस्पतिने अपने भाईकी पत्नीके साथ रमण किया, उसके फलस्वरूप महर्षि भरद्वाज उत्पन्न हुए ॥ ३८ ॥ हे व्यास ! इस प्रकार मैंने महात्मा शिवकी मायाके प्रभावका आपसे वर्णन कर दिया, अब आप आगे और क्या सुनना चाहते हैं ? ॥ ३९ ॥

॥ इस प्रकार श्रीशिवमहापुराणके अन्तर्गत पाँचवीं उमासंहितामें शिवमाया- प्रभाववर्णन नामक चौथा अध्याय पूर्ण हुआ ॥ ४ ॥

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