शिवमहापुराण — उमासंहिता — अध्याय 07
॥ श्रीगणेशाय नमः ॥
॥ श्रीसाम्बसदाशिवाय नमः ॥
श्रीशिवमहापुराण
उमासंहिता
सातवाँ अध्याय
यमलोकका मार्ग एवं यमदूतोंके स्वरूपका वर्णन

सनत्कुमार बोले – चार प्रकारके पापोंके कारण विवश होकर समस्त शरीरधारी मनुष्य भयको उत्पन्न करनेवाले घोर यमलोकको जाते हैं ॥ १ ॥ यह बात गर्भस्थ, उत्पन्न बालक, युवा, मध्यम, वृद्ध, स्त्री, पुरुष, नपुंसक आदि समस्त जीवोंके विषयमें जाननी चाहिये। यहाँपर चित्रगुप्तादि सभी [ यमपरिचर] एवं वसिष्ठादि प्रमुख महर्षिगण जीवोंके शुभ-अशुभ फलपर विचार करते हैं ॥ २-३ ॥ ऐसे कोई भी प्राणी नहीं हैं, जो यमलोक नहीं जाते, इसे अच्छी तरह विचार कर लीजिये कि अपने किये कर्मका फल अवश्य ही भोगना पड़ता है ॥ ४ ॥ उनमें जो शुभ कर्म करनेवाले, सौम्यचित्त एवं दयालु होते हैं, वे मनुष्य यमलोकमें सौम्यमार्ग तथा पूर्वद्वारसे जाते हैं, किंतु जो पापी पापकर्ममें निरत एवं दानसे रहित हैं, वे घोर मार्गद्वारा दक्षिणद्वारसे यमलोकमें जाते हैं ॥ ५-६ ॥

महानन्दमनन्तलीलं महेश्वरं सर्वविभुं महान्तम् ।
गौरीप्रियं कार्तिकविघ्नराज-समुद्भवं शङ्करमादिदेवम् ॥


[मर्त्यलोकसे] छियासी हजार योजनकी दूरी पार करके अनेक रूपोंमें स्थित सूर्यपुत्र यमके पुरको जानना चाहिये । यह पुर पुण्य कर्मवाले मनुष्योंको समीपमें स्थित-सा जान पड़ता है, किंतु घोरमार्गसे जाते हुए पापियोंको बहुत दूर स्थित प्रतीत होता है ॥ ७-८ ॥ तीक्ष्ण काँटोंसे युक्त, कंकड़ोंसे युक्त, छुरीकी धारके समान तीखे पाषाणोंसे बने हुए, कहीं जोंकोंसे भरे हुए तथा बहुत कीचड़से युक्त, कहीं लोहेकी सूईके समान नुकीले कुशोंसे युक्त, कहीं नदीतट – जैसे दुर्गम स्थानोंसे अति विषम तथा वृक्षोंसे परिपूर्ण, पर्वतोंसे युक्त और प्रतप्त अंगारोंसे युक्त मार्गसे दुःखित होकर [ पापीलोग ] जाते हैं ॥ ९–११ ॥  वह मार्ग कहीं भयानक गड्ढोंसे, कहीं अत्यन्त दुष्कर ढेलोंसे, कहीं अत्यन्त जलती हुई रेतोंसे, कहीं तीक्ष्ण काँटोंसे, कहीं अनेक शाखाओंवाले फैले हुए बाँसके वनोंसे व्याप्त है । मार्गमें कहीं भयानक अन्धकार है और कहीं पकड़नेके लिये कोई आधार नहीं है, वह मार्ग कहीं लोहेके तीखे शृंगाटकोंसे, कहीं दावानलसे, कहीं प्रतप्त शिलाओंसे तथा कहीं बर्फसे व्याप्त है । वह मार्ग कहीं कण्ठतक शरीरको डुबो देनेवाली रेतसे, कहीं दुर्गन्धयुक्त जलसे तथा कहीं कण्डोंकी अग्निसे व्याप्त है ॥ १२–१५ ॥

[ वे नारकीय जीव] कहीं अति भयानक सिंहों, भेड़ियों, बाघों तथा मच्छरोंसे, कहीं बड़ी-बड़ी जोंकोंसे, कहीं अजगरोंसे, कहीं भयंकर मक्खियोंसे, कहीं विषधर सर्पोंसे, कहीं बलसे उन्मत्त होकर रौंद डालनेवाले मतवाले हाथियोंसे, [अपने] नुकीले दाँतोंसे मार्गको खोदते हुए सूकरोंसे, तीक्ष्ण सींगवाले भैंसोंसे, सम्पूर्ण हिंसक जन्तुओंसे, भयानक डाकिनियोंसे, विकराल राक्षसोंसे और घोर व्याधियोंसे पीड़ित होते हुए [ यमलोक] जाते हैं ॥ १६-१९॥ [वे पापीजन] कहीं अत्यधिक धूलसे भरी प्रचण्ड आँधी और बड़े-बड़े पाषाणोंकी वृष्टिसे आहत किये जाते हुए, कहीं दारुण विद्युत्-पातसे जलाये जाते हुए और कहीं चारों ओरसे महती बाणवृष्टिसे बींधे जाते हुए आश्रयहीन होकर [ यमलोक ] जाते हैं ॥ २०-२१ ॥

वे गिरते हुए वज्रपातोंसे, दारुण उल्कापातों एवं धधकते हुए अंगारोंकी वर्षासे जलाये जाते हैं ॥ २२ ॥ वे प्रचुर धूलिवर्षासे आच्छादित होकर रोते हैं और महामेघोंकी घोर ध्वनिसे बारम्बार भयभीत होते हैं ॥ २३ ॥ वे चारों ओरसे बरसते हुए तीखे शस्त्रोंसे आहत किये जाते हुए तथा अत्यन्त क्षारीय जलधाराओंसे सिंचित किये जाते हुए [ यमलोक ] गमन करते हैं ॥ २४ ॥ रूखी तथा कठोर स्पर्शवाली अत्यन्त शीतल वायुके द्वारा पीड़ित होकर [ पापी] लोग सिकुड़ जाते हैं तथा सूख जाते हैं ॥ २५ ॥ इस प्रकारके भयंकर, पाथेयरहित, निरालम्ब, कठिन, चारों ओर सर्वथा जलहीन, अत्यन्त विषम, निर्जन, आश्रयहीन घोर अन्धकारसे परिव्याप्त, कष्टकारक तथा सम्पूर्ण दुष्ट आश्रयोंसे युक्त मार्गसे जो मूढ़ तथा पापकर्मवाले जीव हैं, वे सब यमराजके आज्ञाकारी महाघोर दूतोंद्वारा बलपूर्वक [ यमलोक ] ले जाये जाते हैं ॥ २६–२८ ॥

वे अकेले, पराधीन, मित्रों और बन्धुओंसे रहित होकर अपने कर्मोंको सोचते हुए बार- बार रोते हैं । वे प्रेत बनकर वस्त्रहीन, शुष्क कण्ठ, ओष्ठ एवं तालुवाले, अशान्त, भयभीत, जलते हुए एवं क्षुधासे व्याकुल [ होकर चलते] रहते हैं ॥ २९-३० ॥ कोई मनुष्य जंजीरसे बाँधकर ऊपरकी ओर पैर करके बलवान् यमदूतोंद्वारा खींचे जाते हुए ले जाये जाते हैं। कोई छातीके बल नीचेकी ओर मुख किये हुए घसीटे जाते हैं और अति दुःखित होते हैं । कोई केशपाशमें रस्सीसे बाँधकर घसीटे जाते हैं ॥ ३१-३२ ॥ अन्य प्राणी ललाटको अंकुशसे विदीर्ण किये जानेके कारण अत्यन्त दुःखित होते हैं । उत्तान किये हुए कुछ लोग काँटोंके मार्गसे तथा अंगारोंके मार्गसे ले जाये जाते हैं ॥ ३३ ॥ किसीके दोनों हाथ पीछेकी ओर बाँधकर, किसीके पेटको [ रस्सी आदिसे] जकड़कर, किसीको जंजीरोंमें कसकर, किसीके दोनों हाथोंमें कील ठोंककर और किसीके गलेमें रस्सी लगाकर खींचते हुए दुःख देकर ले जाया जाता है। कुछ लोग जीभमें अंकुश चुभाकर रस्सीसे खींचे जाते हैं ॥ ३४-३५ ॥

कुछ लोग नाक छेदकर [ नथुनोंमें] रस्सी [ डालकर ] उससे खींचे जाते हैं और गालों तथा ओठोंको छेदकर उनमें रस्सी डालकर खींचे जाते हैं ॥ ३६ ॥ किसीका हाथ, किसीका पैर, किसीका कान, किसीका ओठ, किसीकी नाक, किसीका लिंग, किसीका अण्डकोश, किसीके शरीरके जोड़को काट दिया जाता है, कुछ लोग भालों तथा बाणोंसे बींधे जाते हैं और वे आश्रयरहित होकर इधर-उधर भागते तथा क्रन्दन करते हैं ॥ ३७-३८ ॥ वे मुद्गरोंसे तथा लौहदण्डोंसे बार-बार पीटे जाते हैं, और अग्नि तथा सूर्यके समान तेजवाले विविध भयंकर काँटोंसे तथा भिन्दिपालोंसे बेधे जाते हैं, इस प्रकार रक्त एवं मवादका स्राव करते हुए तथा विष्ठा और कृमिसे भरे हुए [मार्गसे] मनुष्य विवश होकर [यमपुरीमें] ले जाये जाते हैं ॥ ३९-४० ॥

वे भूखसे व्याकुल होकर अन्न – पानी माँगते हैं, [ धूपसे सन्तप्त हो] छायाकी याचना करते हैं और शीतसे दुखी हो अग्निके लिये प्रार्थना करते हैं ॥ ४१ ॥ जिन लोगोंने दान नहीं दिया है, वे इसी प्रकार सुखकी याचना करते हुए यमालय जाते हैं, परंतु जिन लोगोंने पहलेसे ही दानरूपी पाथेय ले रखा है, वे सुखपूर्वक यमालयको जाते हैं ॥ ४२ ॥ इस प्रकारकी व्यवस्थासे कष्टपूर्वक वे जब यमपुरी पहुँचते हैं, तब धर्मराजकी आज्ञासे दूतोंके द्वारा वे उनके आगे ले जाये जाते हैं ॥ ४३ ॥ उनमें जो पुण्यात्मा होते हैं, उन्हें यमराज स्वागत, आसन-दान, पाद्य तथा अर्घ्यके द्वारा प्रेमपूर्वक सम्मानित करते हैं और कहते हैं कि शास्त्रोक्त कर्म करनेवाले आप महात्मा लोग धन्य हैं, जो कि आपलोगोंने दिव्य सुख प्राप्त करनेके लिये पुण्यकर्म किया। अब आपलोग इस दिव्य विमानपर चढ़कर दिव्य स्त्रियोंके भोगसे भूषित तथा सम्पूर्ण वांछितोंसे युक्त निर्मल स्वर्गको जायँ । वहाँपर महान् भोगोंका उपभोग करके अन्तमें पुण्यका क्षय हो जानेपर जो कुछ अल्प अशुभ शेष रहेगा, उसे आपलोग पुनः यहाँपर भोगेंगे ॥ ४४–४७ ॥ जो धर्मात्मा पुरुष हैं, वे धर्मराजको अपने मित्रके समान समझते हैं और उन्हें सौम्य मुखवाला देखते हैं ॥ ४८ ॥

जो क्रूर कर्म करनेवाले हैं, वे यमराजको भयानक, दाढयुक्त विकराल मुखवाला, कुटिल भौंहयुक्त नेत्रवाला, ऊपर उठे हुए केशोंवाला, बड़ी-बड़ी मूँछ एवं दाढ़ीवाला, क्रोधके कारण] फड़कते ओठोंवाला, अठारह भुजाओंवाला, कुपित, काले अंजनके पहाड़के समान, सम्पूर्ण आयुधोंको धारण किये हुए हाथोंवाला, अपने दण्डसे सबको डाँटते हुए, बहुत बड़े भैंसेपर आरूढ़ एवं जलती हुई अग्निके समान नेत्रवाला समझते हैं । [वे पापीजन यमराजको] रक्तवर्णकी माला तथा वस्त्र धारण किये हुए, सुमेरुपर्वतके समान ऊँचे, प्रलयकालीन महामेघके समान गर्जना करते हुए, समुद्रको पीते हुए, पर्वतराजको निगलते हुए और अग्निको उगलते हुए [ मानो] देखते हैं ॥ ४९–५२१/२ ॥ कालाग्निके समान प्रभावाली मृत्यु उनके समीप स्थित है और [ वहीं ] काजलके समान प्रतीत होनेवाले कालदेवता तथा भयानक कृतान्त देवता भी स्थित हैं । मारी, उग्रमहामारी, भयंकर कालरात्रि, कुष्ठादि नाना प्रकारकी भयानक व्याधियाँ [ भी वहाँ मूर्तिमान् होकर ] तथा शक्ति, शूल, अंकुश, पाश, चक्र, खड्ग आदि शस्त्रोंको हाथोंमें लिये हुए और क्षुर, तरकस, धनुष आदि धारण किये हुए वज्रतुल्य तुण्डवाले रुद्रगण भी वहाँ विद्यमान हैं । नाना प्रकारके शस्त्रोंको धारण किये हुए भयंकर महावीर वहाँ स्थित हैं और कालांजनके समान कान्तिवाले तथा समस्त शस्त्रोंको हाथोंमें लिये हुए असंख्य भयानक तथा महावीर यमदूत वहाँ विद्यमान हैं, पापीलोग इन परिचारकोंसे घिरे हुए घोर दर्शनवाले उन यमराजको तथा भयंकर चित्रगुप्तको देखते हैं ॥ ५३–५८॥ [उस समय] यमराज उन पापियोंको अत्यधिक धमकाते हैं और भगवान् चित्रगुप्त धर्मयुक्त वचनोंसे उन्हें समझाते हैं ॥ ५९ ॥

॥ इस प्रकार श्रीशिवमहापुराणके अन्तर्गत पाँचवीं उमासंहितामें नरकलोकमार्ग तथा यमदूतस्वरूपवर्णन नामक सातवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ॥ ७ ॥

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