शिवमहापुराण — कोटिरुद्रसंहिता — अध्याय 09
॥ श्रीगणेशाय नमः ॥
॥ श्रीसाम्बसदाशिवाय नमः ॥
श्रीशिवमहापुराण
कोटिरुद्रसंहिता
नौवाँ अध्याय
संयोगवश हुए शिवपूजनसे चाण्डालीकी सद्गतिका वर्णन

ऋषिगण बोल— हे सूतजी ! हे महाभाग ! आप परम शैव हैं, अतः आप धन्य हैं, हे विभो ! वह चाण्डाली कौन थी, उसकी कथा कहिये ॥ १ ॥

सूतजी बोल— हे ब्राह्मणो ! सुननेवालोंकी भक्तिको बढ़ानेवाली तथा शिवके प्रभावसे मिश्रित उस अत्यन्त अद्भुत कथाको आपलोग भक्तिपूर्वक सुनिये ॥ २ ॥ वह चाण्डाली पूर्वजन्ममें सभी लक्षणोंसे समन्वित तथा चन्द्रमाके समान मुखवाली सौमिनी नामक ब्राह्मणकन्या थी। हे द्विजो! सौमिनीके युवती हो जानेपर उसके पिताने किसी ब्राह्मणपुत्रसे विधिपूर्वक उसका विवाह सम्पन्न कर दिया ॥ ३-४ ॥ हे ब्राह्मणश्रेष्ठो! तदनन्तर नवीन यौवनशालिनी वह उत्तम व्रतवाली सौमिनी पतिको प्राप्त करके उसके साथ सुखपूर्वक रहने लगी ॥ ५ ॥ हे द्विजो ! [कुछ काल बीतनेके पश्चात् ] उस सौमिनीका नवयुवक ब्राह्मण पति रोगग्रस्त हो गया और कालयोगसे मृत्युको प्राप्त हो गया ॥ ६ ॥

महानन्दमनन्तलीलं महेश्वरं सर्वविभुं महान्तम् ।
गौरीप्रियं कार्तिकविघ्नराज-समुद्भवं शङ्करमादिदेवम् ॥


पतिके मर जानेपर सुशील तथा उत्तम आचारवाली उस स्त्रीने दुःखित तथा व्यथितचित्त होकर कुछ काल अपने घरमें निवास किया। उसके अनन्तर विधवा होते हुए भी युवती होनेके कारण कामसे आविष्ट मनवाली वह व्यभिचारिणी हो गयी ॥ ७-८ ॥ तब कुलको कलंकित करनेवाले उसके इस कुकर्मको जानकर उसके कुटुम्बियोंने परस्पर मिलकर उसके बालोंको खींचते हुए उसे दूर ले जाकर छोड़ दिया ॥ ९ ॥ कोई शूद्र उसे वनमें स्वच्छन्द विचरण करती हुई देख अपने घर ले आया और उसने उसे अपनी पत्नी बना लिया ॥ १० ॥ अब वह प्रतिदिन मांसका भोजन करती, मदिरा पीती और व्यभिचारनिरत रहती थी । इस प्रकार उस शूद्रके सम्बन्धसे उसने एक कन्याको जन्म दिया ॥ ११ ॥

किसी समय पतिके कहीं चले जानेपर उस व्यभिचारिणी सौमिनीने मद्यपान किया और वह मांसके आहारकी इच्छा करने लगी ॥ १२ ॥ इसके बाद रात्रिके समय घोर अन्धकारमें तलवार लेकर वह घरके बाहर गोष्ठमें गायोंके साथ बँधे हुए मेषोंके बीच गयी। उस समय मांससे प्रेम रखनेवाली उस दुर्भगाने मद्यके नशेके कारण बिना विचार किये चिल्लाते हुए एक बछड़ेको मेष समझकर मार डाला ॥ १३-१४ ॥ मरे हुए उस पशुको घर लाकर बादमें उसे बछड़ा जानकर वह स्त्री भयभीत हो गयी और किसी पुण्य कर्मसे [पश्चात्तापपूर्वक ] ‘शिव – शिव’ – ऐसा उच्चारण करने लगी। क्षणभर शिवजीका ध्यान करके मांसके आहारकी इच्छावाली उसने उस बछड़ेको ही काटकर अभिलषित भोजन कर लिया ॥ १५ – १६ ॥

हे द्विजो ! इस प्रकार बहुत-सा समय बीतने के पश्चात् वह सौमिनी कालके वशीभूत हो गयी और यमलोक चली गयी । यमराजने भी उसके पूर्वजन्मके कर्म तथा धर्मका निरीक्षणकर उसे नरकसे निकालकर चाण्डाल जातिवाली बना दिया ॥ १७-१८ ॥ यमराजपुरीसे लौटकर वह [ सौमिनी] चाण्डालीके गर्भसे उत्पन्न हुई। वह जन्मसे अन्धी एवं कोयलेके समान काली थी। जन्मसे अन्धी, बाल्यावस्थामें ही माता-पितासे रहित और महाकुष्ठ रोगसे ग्रस्त उस दुष्टासे किसीने विवाह भी नहीं किया ॥ १९-२० ॥ उसके बाद वह अन्धी चाण्डाली भूखसे पीड़ित एवं दीन हो लाठी हाथमें लेकर जहाँ-तहाँ डोलती और चाण्डालोंके जूठे अन्नसे अपने पेटकी ज्वाला शान्त करती थी। इस प्रकार महान् कष्टसे अपनी अवस्थाका बहुत भाग बिता लेनेके पश्चात् वृद्धावस्थासे ग्रस्त शरीरवाली वह घोर दुःख पाने लगी ॥ २१ – २२ ॥

किसी समय उस चाण्डालीको ज्ञात हुआ कि आगे आनेवाली शिवतिथिमें बड़े-बड़े लोग उस गोकर्णक्षेत्रकी ओर जा रहे हैं ॥ २३ ॥ वह चाण्डाली भी वस्त्र एवं भोजनके लोभसे महाजनोंसे माँगनेके लिये धीरे-धीरे [ गोकर्णकी ओर ] चल पड़ी। वहाँ जाकर वह हाथ फैलाकर दीनवचन बोलती हुई और महाजनोंसे प्रार्थना करती हुई इधर-उधर घूमने लगी ॥ २४-२५ ॥ इस प्रकार याचना करती हुई उस चाण्डालीकी फैली हुई अंजलिमें एक पुण्यात्मा यात्रीने बेलकी मंजरी डाल दी। बार-बार विचार करके ‘यह खानेयोग्य नहीं है’ – ऐसा समझकर भूखसे व्याकुल उसने अंजलिमें पड़ी हुई उस मंजरीको दूर फेंक दिया ॥ २६-२७ ॥ उसके हाथसे छूटी हुई वह बिल्वमंजरी शिवरात्रिमें भाग्यवश किसी शिवलिंगके मस्तकपर जा गिरी ॥ २८ ॥

इस प्रकार चतुर्दशीके दिन यात्रियोंसे बार-बार याचना करनेपर भी दैवयोगसे उसे कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ । तब इस तरहसे अनजानेमें उसका शिवचतुर्दशीका उत्तम व्रत और अत्यन्त आनन्ददायक जागरण भी हो गया। उसके पश्चात् प्रभात होनेपर वह स्त्री महान् शोकसे युक्त होकर धीरे-धीरे अपने घरके लिये चल पड़ी ॥ २९–३१ ॥ बहुत समयके उपवाससे थक चुकी वह पग-पगपर गिरती हुई उसी (गोकर्णक्षेत्रकी ) भूमिपर चलते-चलते प्राणहीन होकर गिर पड़ी। उसने शिवजीकी कृपासे परम पद प्राप्त किया; शिव – गण उसे विमानपर बैठाकर शीघ्र ही ले गये ॥ ३२-३३ ॥ हे ब्राह्मणो ! पूर्वजन्ममें इस व्यभिचारिणी स्त्रीने जो अज्ञानमें शिवजीके नामका उच्चारण किया था, उसी पुण्यसे उसने दूसरे जन्ममें महाबलेश्वरके दिव्य स्थानको प्राप्त किया ॥ ३४ ॥

उसने गोकर्णमें शिवतिथिको उपवास करके शिवके मस्तकपर बिल्वपत्र अर्पितकर पूजन किया तथा रात्रिमें जागरण किया । निष्कामभावसे किये गये इस पुण्यका ही फल है कि वह आज भी महाबलेश्वरकी कृपासे सुख भोग रही है ॥ ३५-३६ ॥

[हे ब्राह्मणो!] शिवजीका इस प्रकारका महाबलेश्वर नामक महालिंग शीघ्र ही सभी पापोंको नष्ट करनेवाला तथा परमानन्द प्रदान करनेवाला है ॥ ३७ ॥ हे ब्राह्मणो ! इस प्रकार मैंने महाबलेश्वर नामक उत्तम शिवलिंगके परम माहात्म्यका वर्णन आपलोगोंसे किया। अब मैं उसके अन्य अद्भुत माहात्म्यको भी कह रहा हूँ, जिसके सुननेमात्रसे शीघ्र ही शिवजीके प्रति भक्ति उत्पन्न होती है ॥ ३८-३९ ॥

॥ इस प्रकार श्रीशिवमहापुराणके अन्तर्गत चतुर्थ कोटिरुद्रसंहितामें चाण्डालीसद्गतिवर्णन नामक नौवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ॥ ९ ॥

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