August 28, 2019 | Leave a comment शिवमहापुराण – द्वितीय रुद्रसंहिता [तृतीय-पार्वतीखण्ड] – अध्याय 01 श्री गणेशाय नमः श्री साम्बसदाशिवाय नमः पहला अध्याय पितरों की कन्या मेना के साथ हिमालय के विवाह का वर्णन नारदजी बोले — हे ब्रह्मन् ! अपने पिता के यज्ञ में शरीर का त्यागकर दक्षकन्या सती देवी जगदम्बा किस प्रकार हिमालय की पुत्री बनीं और किस तरह अत्यन्त उग्र तपस्या करके उन्होंने शिवजी को पतिरूप में प्राप्त किया ? मैं यह आपसे पूछ रहा हूँ, आप विशेष रूप से बताइये ॥ १-२ ॥ शिवमहापुराण ब्रह्माजी बोले — हे मुनिश्रेष्ठ ! आप शिवा के परम पावन, दिव्य, सभी पापों को दूर करनेवाले, कल्याणकारी तथा उत्तम चरित्र को सुनिये ॥ ३ ॥ दक्षकन्या सती देवी जब प्रसन्नचित्त होकर शिवजी के साथ हिमालय पर्वतपर लीलापूर्वक क्रीड़ा करती थीं, उस समय मातृप्रेम से भरी हुई हिमालय की प्रिया मेना ‘सम्पूर्ण सिद्धियों से युक्त यह मेरी पुत्री है’ — ऐसा समझकर उनकी सेवामें संलग्न रहती थीं ॥ ४-५ ॥ हे मुने ! दक्षकन्या सती देवी ने जब पिता दक्ष के द्वारा अपमानित होकर क्रोधित हो यज्ञ में अपना शरीर त्याग दिया, उस समय हिमालयप्रिया मेना शिवलोक में स्थित उन भगवती सती की आराधना करना चाह रही थीं ॥ ६-७ ॥ ‘उन्हीं के गर्भ से मैं पुत्री के रूप में उत्पन्न होऊँ’ — ऐसा हृदय में विचार करके शरीर का त्याग करनेवाली सती ने हिमालय की पुत्री होने के लिये मनमें निश्चय किया ॥ ८ ॥ देहत्याग के अनन्तर समय आने पर सभी देवताओं के द्वारा स्तुत वे भगवती सती प्रसन्नतापूर्वक मेनका (मेना) की पुत्री के रूप में उत्पन्न हुईं ॥ ९ ॥ उन देवी का नाम पार्वती हुआ । उन्होंने नारद के उपदेश से अत्यन्त कठोर तपस्याकर पुनः शिवजी को पतिरूप में प्राप्त किया ॥ १० ॥ नारदजी बोले — हे ब्रह्मन् ! हे विधे ! हे महाप्राज्ञ ! हे वक्ताओं में श्रेष्ठ ! आप मुझसे मेनका की उत्पत्ति, उनके विवाह तथा चरित्र का वर्णन कीजिये ॥ ११ ॥ जिनसे भगवती सती ने पुत्री के रूपमें जन्म लिया, वे मेनका देवी धन्य हैं । इसीलिये वे पतिव्रता मेना सभी लोगों की मान्य और धन्य हैं ॥ १२ ॥ ब्रह्माजी बोले — हे नारद ! हे मुने ! आप पार्वती की माता के जन्म, विवाह एवं अन्य भक्तिवर्धक पावन चरित्र को सुनिये । हे मुनिश्रेष्ठ ! उत्तर दिशा में पर्वतों का राजा हिमालय नामक महान् पर्वत है । जो महातेजस्वी और समृद्धिशाली है ॥ १३-१४ ॥ जंगम तथा स्थावरभेद से उसके दो रूप प्रसिद्ध हैं, मैं उसके सूक्ष्म स्वरूप का संक्षेप में वर्णन कर रहा हूँ । वह पर्वत रमणीय एवं अनेक प्रकार के रत्नों का आकर (खान) है, जो पूर्व तथा पश्चिम समुद्र के भीतर प्रवेश करके पृथ्वी के मानदण्ड की भाँति स्थित है ॥ १५-१६ ॥ वह नाना प्रकार के वृक्षों से व्याप्त है, अनेक शिखरों के कारण विचित्र शोभा से सम्पन्न है और सुखी सिंह, व्याघ्र आदि पशुओं से सदा सेवित रहता है ॥ १७ ॥ वह हिम का भण्डार है, अत्यन्त उग्र है, अनेक आश्चर्यजनक दृश्यों के कारण विचित्र है; देवता, ऋषि, सिद्ध और मुनि उसपर रहते हैं तथा वह भगवान् शिव को बहुत ही प्रिय है ॥ १८ ॥ वह तप करने का स्थान है, अत्यन्त पावन है, महात्माओं को भी पवित्र करनेवाला है, तपस्या में अत्यन्त शीघ्र सिद्धि प्रदान करता है, अनेक प्रकार की धातुओं की खान है और शुभ है । वह दिव्य रूपवाला है, सर्वांगसुन्दर है, रमणीय है, शैलराजों का भी राजा है, विष्णु का अंश है, विकाररहित एवं सज्जन पुरुषों का प्रिय है ॥ १९-२० ॥ उस पर्वत ने अपनी कुल-परम्परा की स्थिति के लिये, धर्म की अभिवृद्धि के लिये और देवताओं तथा पितरों का हित करने की अभिलाषा से अपना विवाह करने की इच्छा की । हे मुनीश्वर ! उसी समय देवतागण अपने पूर्ण स्वार्थ का विचार करके दिव्य पितरों के पास आकर उनसे प्रसन्नतापूर्वक कहने लगे — ॥ २१-२२ ॥ देवता बोले — हे पितरो ! आप सभी प्रसन्नचित्त होकर हमारी बात सुनें और यदि आपलोगों को देवताओं का कार्य करना अभीष्ट हो, तो शीघ्र वैसा ही करें ॥ २३ ॥ आप लोगों की मेना नामक जो ज्येष्ठ पुत्री प्रसिद्ध है, वह मंगलरूपिणी है, उसका विवाह आपलोग अत्यन्त प्रसन्नतापूर्वक हिमालय नामक पर्वत से कर दीजिये । ऐसा करने पर सभी लोगों का महान् लाभ होगा और आपलोगों के तथा देवताओं के दुःखों का निवारण भी पग-पग पर होता रहेगा ॥ २४-२५ ॥ ब्रह्माजी बोले — देवताओं की यह बात सुनकर पितरों ने परस्पर विचार करके कन्याओं के शाप का स्मरण करके इस बात को स्वीकार कर लिया ॥ २६ ॥ उन लोगों ने अपनी कन्या मेना का विवाह विधिपूर्वक हिमालय के साथ कर दिया; उस मंगलमय विवाह में महान् उत्सव हुआ ॥ २७ ॥ वामदेव शंकर का स्मरणकर विष्णु आदि देवता तथा समस्त मुनिगण उस विवाह में आये ॥ २८ ॥ उन लोगों ने अनेक प्रकार के दान देकर उत्सव करवाया, तदनन्तर वे दिव्य पितरों की प्रशंसा करके हिमालय की प्रशंसा करने लगे ॥ २९ ॥ इसके बाद परम आनन्द से युक्त वे सभी देवता तथा मुनीश्वर शिवा एवं शिव का स्मरण करते हुए अपने-अपने निवासस्थान को चले गये ॥ ३० ॥ उधर, पर्वतराज हिमालय भी अनेक प्रकार के उपहार प्राप्तकर उस प्रिया मेना के साथ विवाह करके अपने घर आये और परम प्रसन्न हुए ॥ ३१ ॥ ब्रह्माजी बोले — हे मुनीश्वर ! मैंने मेना के साथ हिमालय के सुखद पवित्र विवाह का वर्णन कर दिया । अब आप और क्या सुनना चाहते हैं ? ॥ ३२ ॥ ॥ इस प्रकार श्रीशिवमहापुराण के अन्तर्गत द्वितीय रुद्रसंहिता के तृतीय पार्वतीखण्ड में हिमाचल विवाह-वर्णन नामक पहला अध्याय पूर्ण हुआ ॥ १ ॥ Related