September 24, 2024 | aspundir | Leave a comment शिवमहापुराण – शतरुद्रसंहिता – अध्याय 21 ॥ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ श्रीसाम्बसदाशिवाय नमः ॥ श्रीशिवमहापुराण शतरुद्रसंहिता इक्कीसवाँ अध्याय शिवजीके महेशावतार – वर्णनक्रममें अम्बिकाके शापसे भैरवका वेतालरूपमें पृथ्वीपर अवतरित होना नन्दीश्वर बोले – हे मुने! हे ब्रह्मपुत्र ! अब शिवजीके एक और श्रेष्ठ अवतारको प्रीतिपूर्वक सुनिये, जो सुननेवालोंकी सभी कामनाओंको पूर्ण करनेवाला है ॥ १ ॥ हे मुनिशार्दूल! एक बार परमेश्वर शिव एवं गिरिजा अपनी इच्छासे विहार करनेके लिये तत्पर हुए। भैरवको द्वारपालके रूपमें स्थापितकर वे भीतर आ गये और अनेक सखियोंसे प्रेमपूर्वक सेवित हो मनुष्यके समान लीला करने लगे ॥ २-३ ॥ हे मुने! इस प्रकार वहाँ बहुत कालतक विहारकर अनेक प्रकारकी लीला करनेवाले तथा स्वतन्त्र वे दोनों ही परमेश्वर परम प्रसन्न हुए ॥ ४ ॥ महानन्दमनन्तलीलं महेश्वरं सर्वविभुं महान्तम् ।गौरीप्रियं कार्तिकविघ्नराज-समुद्भवं शङ्करमादिदेवम् ॥ तदनन्तर परम स्वतन्त्र वे शिवा लीलावशात् उन्मत्त वेषमें शिवजीकी आज्ञासे द्वारपर आयीं ॥ ५ ॥ तब उन देवीको [साधारण ] नारीकी दृष्टिसे देखकर उनके [उस उन्मत्त] रूपसे भ्रमित हुए भैरवने उन्हें बाहर जानेसे रोका ॥ ६ ॥ हे मुने! जब भैरवने [देवीको एक सामान्य ] नारीकी दृष्टिसे देखा, तब वे देवी शिवा क्रोधित हो गयीं और उन अम्बिकाने उन्हें शाप दे दिया ॥ ७ ॥ शिवा बोलीं- हे पुरुषाधम ! हे भैरव ! तुम मुझे [सामान्य ] स्त्रीकी दृष्टिसे देख रहे हो, इसलिये तुम पृथ्वीपर मनुष्यरूप धारण करो ॥ ८ ॥ नन्दीश्वर बोले – हे मुने ! इस प्रकार जब पार्वतीने भैरवको शाप दे दिया, तब महान् हाहाकार मच गया । [पार्वतीकी इस ] लीलासे भैरव अत्यन्त दुखी हुए ॥ ९ ॥ हे मुनीश्वर ! इसके बाद अनेकविध अनुनय- विनयमें प्रवीण श्रीशिवजीने शीघ्रतासे वहाँ आकर भैरवको आश्वस्त किया । हे मुने! तब उस शापसे एवं शिवजीकी इच्छासे वे भैरव पृथ्वीपर मनुष्ययोनिमें वेताल नामसे उत्पन्न हुए ॥ १०-११ ॥ उनके स्नेहसे लौकिक गतिका आश्रय ग्रहणकर उत्तम लीलाओंवाले वे प्रभु शिवजी भी पार्वतीके साथ पृथ्वीपर अवतरित हुए ॥ १२ ॥ हे मुने! शिवजी महेश नामसे तथा पार्वतीजी शारदा नामसे प्रसिद्ध हुईं और नाना प्रकारकी लीलाएँ करनेमें प्रवीण वे दोनों प्रेमपूर्वक उत्तम लीला करते रहे ॥ १३ ॥ हे तात! इस प्रकार मैंने शिवजीके उत्तम चरित्रका वर्णन आपसे किया, जो धन, यश, आयु तथा सभी कामनाओंका फल प्रदान करनेवाला है। जो मनुष्य सावधानचित्त होकर भक्तिपूर्वक इसे सुनता है अथवा सुनाता है, वह इस लोकमें सम्पूर्ण भोगोंको भोगकर अन्तमें मुक्तिको प्राप्त कर लेता है ॥ १४- १५ ॥ ॥ इस प्रकार श्रीशिवमहापुराणके अन्तर्गत तृतीय शतरुद्रसंहितामें महेशावतारवर्णन नामक इक्कीसवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ॥ २१ ॥ Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe