September 26, 2024 | aspundir | Leave a comment शिवमहापुराण — शतरुद्रसंहिता — अध्याय 42 ॥ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ श्रीसाम्बसदाशिवाय नमः ॥ श्रीशिवमहापुराण शतरुद्रसंहिता बयालीसवाँ अध्याय भगवान् शिवके द्वादश ज्योतिर्लिंगरूप अवतारोंका वर्णन नन्दीश्वरजी बोले — [ हे सनत्कुमार ! ] हे मुने ! अब अनेक प्रकारकी लीला करनेवाले परमात्मा शिवजीके ज्योतिर्लिंगरूप द्वादशसंख्यक अवतारोंको सुनिये ॥ १ ॥ सौराष्ट्रे सोमनाथश्च श्रीशैले मल्लिकार्जुनः । उज्जयिन्यां महाकाल ओङ्कारे चामरेश्वरः ॥ केदारो हिमवत्पृष्ठे डाकिन्याम्भीमशङ्करः। वाराणस्यां च विश्वेशस्त्र्यम्बको गौतमीतटे ॥ वैद्यनाथश्चिताभूमौ नागेशो दारुकावने । सेतुबन्धे च रामेशो घुश्मेशश्च शिवालये ॥ ( श्रीशिवमहापुराण, शतरुद्रसंहिता ४२ । २ – ४ ) सौराष्ट्रमें सोमनाथ, श्रीशैलपर मल्लिकार्जुन, उज्जयिनीमें महाकाल, ॐकारमें अमरेश्वर, हिमालयपर केदारेश्वर, डाकिनीमें भीमशंकर, काशीमें विश्वनाथ, गौतमीतटपर त्र्यम्बकेश्वर, चिताभूमिमें वैद्यनाथ, दारुका- वनमें नागेश्वर, सेतुबन्धमें रामेश्वर एवं शिवालय में घुश्मेश्वर — [ ये बारह शिवजीके ज्योतिर्लिंगस्वरूप अवतार हैं] ॥ २—४ ॥ महानन्दमनन्तलीलं महेश्वरं सर्वविभुं महान्तम् ।गौरीप्रियं कार्तिकविघ्नराज-समुद्भवं शङ्करमादिदेवम् ॥ हे मुने! ये परमात्मा शिवके बारह ज्योतिर्लिंगावतार दर्शन तथा स्पर्शसे पुरुषोंका कल्याण करनेवाले हैं ॥ ५ ॥ इन द्वादश ज्योतिर्लिंगोंमें प्रथम सोमनाथ नामक ज्योतिर्लिंग चन्द्रमाके दुःखका नाश करनेवाला है, उसके पूजनसे क्षय और कुष्ठ आदि रोगोंका विनाश होता है। यह सोमेश नामक शिवावतार सुन्दर सौराष्ट्रदेशमें लिंगरूपसे स्थित है, पूर्वकालमें चन्द्रमाने इसकी पूजा की थी ॥ ६-७ ॥ वहींपर चन्द्रकुण्ड है, जो समस्त पापोंका नाश करनेवाला है। बुद्धिमान् पुरुष वहाँ स्नान करनेमात्रसे सभी प्रकारके रोगोंसे छुटकारा पा जाता है ॥ ८ ॥ शिवजीके परमात्मस्वरूप महालिंग सोमेश्वरका दर्शन करनेसे मनुष्य पापोंसे मुक्त हो जाता है और भोग तथा मोक्ष प्राप्त करता है ॥ ९ ॥ हे तात! शिवका मल्लिकार्जुन नामक दूसरा अवतार श्रीशैलपर हुआ था, जो भक्तोंको मनोवांछित फल प्रदान करता है। हे मुने! वे भगवान् शिव कैलासपर्वतसे पुत्र [ कार्तिकेय ] – को देखनेके लिये अत्यन्त प्रीतिपूर्वक श्रीशैलपर गये और वहाँ लिंगरूपसे [ भक्तोंके द्वारा ] संस्तुत हुए ॥ १०-११ ॥ हे मुने ! उस द्वितीय ज्योतिर्लिंगकी पूजा करनेसे महान् सुखकी प्राप्ति होती है और अन्त समयमें वह निःसन्देह मुक्ति प्रदान करता है ॥ १२ ॥ हे तात! शिवजीका तीसरा महाकाल नामक अवतार उज्जयिनीमें अपने भक्तोंकी रक्षाके लिये हुआ था। पूर्वकालमें रत्नमाला [ नामक स्थान ] – पर निवास करनेवाला, वेदोक्त धर्मका विध्वंसक, सर्वनाशक, ब्राह्मण- द्वेषी दूषण नामक असुर उज्जयिनी गया । तब वेद नामक ब्राह्मणके पुत्रने शिवजीका ध्यान किया । तब [ प्रकट हुए ] उन शिवजीने उस असुरको हुंकारमात्रसे उसी समय भस्म कर दिया था ॥ १३ — १५ ॥ इस प्रकार उस दैत्यको मारकर देवगणोंसे प्रार्थित होकर अपने भक्तजनोंकी रक्षाके लिये वे महाकाल नामक ज्योतिर्लिंगस्वरूपसे वहीं उज्जयिनीमें प्रतिष्ठित हुए । इस महाकाल नामक ज्योतिर्लिंगके दर्शन तथा यत्नपूर्वक पूजनसे सभी कामनाएँ सिद्ध हो जाती हैं और अन्तमें उत्तम गतिकी प्राप्ति होती है ॥ १६-१७ ॥ परमात्मा शिवजीके द्वारा धारण किया गया परमैश्वर्यसम्पन्न चौथा अवतार ॐकारेश्वर नामसे प्रसिद्ध है, जो भक्तोंको इच्छित फल देनेवाला है ॥ १८ ॥ विन्ध्यके द्वारा भक्तिभावसे विधिपूर्वक पार्थिव लिंग स्थापित किया गया, जिससे विन्ध्यकी कामनाओंको पूर्ण करनेवाले वे महादेव आविर्भूत हुए ॥ १९ ॥ देवगणोंके द्वारा प्रार्थना किये जानेपर शिवजी वहाँ दो रूपोंमें स्थित हो गये । [ हे मुनीश्वर ! ] लिंगरूपसे स्थित हुए वे भक्तोंपर कृपा करनेवाले और भोग तथा मोक्ष देनेवाले हैं ॥ २० ॥ हे मुनीश्वर ! प्रणवमें ओंकार नामसे स्थित शिव ओंकारेश्वर नामसे प्रसिद्ध हैं और पार्थिव लिंग परमेश्वर नामसे प्रसिद्ध है, हे महामुने ! इनके दर्शन तथा पूजन करनेसे भक्तोंको अभीष्ट फलकी प्राप्ति होती है। इस प्रकार मैंने आपसे चतुर्थ स्थानीय ॐकारेश्वर तथा परमेश्वर ज्योतिर्लिंगोंका वर्णन किया ॥ २१-२२ ॥ परमशिवका पाँचवाँ अवतार केदारेश नामवाला है, यह ज्योतिर्लिंगरूपसे केदारक्षेत्रमें स्थित है। हे मुने ! विष्णुके जो नर-नारायण नामक अवतार हैं, उनके द्वारा तथा वहाँके निवासियोंद्वारा प्रार्थना किये जानेपर वे शिव हिमालयके केदार नामक स्थानपर स्थित हुए ॥ २३-२४ ॥ उन दोनोंने ही इन केदारेश्वर नामक ज्योतिर्लिंगकी पूजा की थी । ये केदारेश्वर नामक शिव दर्शन तथा अर्चनसे भक्तोंके मनोरथोंको पूर्ण करनेवाले हैं ॥ २५ ॥ हे तात! शिवजीका यह केदारसंज्ञक अवतार सर्वेश्वर होनेपर भी इस केदारखण्डका विशेषरूपसे स्वामी है, जो भक्तोंकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण करनेवाला है । शिवजीका छठा ज्योतिर्लिंगावतार भीमशंकर नामसे प्रसिद्ध है। यह अवतार महान् लीला करनेवाला है और भीम नामक असुरका विनाशक है ॥ २६-२७ ॥ इन्हीं भीमशंकरने भक्तोंको दुःख देनेवाले [ भीम नामक] अद्भुत दैत्यको मारकर कामरूप देशके सुदक्षिण नामक भक्त राजाकी रक्षा की थी ॥ २८ ॥ इसलिये वे राजाद्वारा प्रार्थना किये जानेपर भीमशंकर नामक ज्योतिर्लिंगके रूपसे उस डाकिनी नामक स्थानमें स्वयं प्रतिष्ठित हुए ॥ २९ ॥ हे मुने! शिवजीका सातवाँ विश्वेश्वर नामक अवतार काशीमें हुआ। जो समस्त ब्रह्माण्डका स्वरूप है एवं भोग तथा मोक्षको देनेवाला है ॥ ३० ॥ विष्णु आदि समस्त देवोंने इस विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंगका पूजन किया और कैलासपति भैरव तो इनकी नित्य ही पूजा करते हैं ॥ ३१ ॥ स्वयं सिद्धस्वरूप ये प्रभु अपनी [काशी] पुरीमें ज्योतिर्लिंगस्वरूपसे विराजमान हैं तथा [ मुमुक्षुओंको ] वहाँपर मुक्ति प्रदान कर रहे हैं ॥ ३२ ॥ जो लोग भक्तिपूर्वक काशी तथा विश्वेश्वरके नामका निरन्तर जप करते हैं, वे कर्मोंसे सर्वदा निर्लिप्त रहकर कैवल्यपदके भागी होते हैं ॥ ३३ ॥ शिवजीका त्र्यम्बक नामक आठवाँ अवतार महर्षि गौतमके द्वारा प्रार्थना किये जानेपर गौतमीके तटपर हुआ और महर्षि गौतमद्वारा प्रार्थना किये जानेपर वहींपर उनकी प्रसन्नताके लिये शिवजी ज्योतिर्लिंगस्वरूपसे अचल होकर प्रेमपूर्वक प्रतिष्ठित हो गये ॥ ३४-३५ ॥ उन महेश्वरके दर्शन, स्पर्श एवं अर्चनसे सभी कामनाएँ पूर्ण होती हैं और अन्तमें मुक्ति हो जाती है, यह आश्चर्यकारी है ॥ ३६ ॥ शिवके अनुग्रहसे वहाँपर गौतमके प्रीतिवश पवित्र करनेवाली शिवप्रिया गंगा गौतमी नामसे स्थित हैं ॥ ३७ ॥ शिवजीका नौवाँ ज्योतिर्लिंगावतार वैद्यनाथेश्वर नामसे प्रसिद्ध है। नानाविध लीलाएँ करनेवाले वे प्रभु रावणके निमित्त प्रकट हुए थे । भगवान् महेश्वर रावणके द्वारा लाये जानेके बहाने चिताभूमिमें ज्योतिर्लिंगस्वरूपसे प्रतिष्ठित हो गये ॥ ३८-३९ ॥ यह ज्योतिर्लिंग वैद्यनाथेश्वर नामसे तीनों लोकोंमें प्रसिद्ध हुआ । भक्तिपूर्वक दर्शन और पूजन करनेसे निश्चय ही यह भोग तथा मोक्ष देनेवाला है ॥ ४० ॥ हे मुने! वैद्यनाथेश्वर शिवके माहात्म्यरूप शास्त्रको पढ़ने तथा सुननेवालोंको भोग तथा मोक्ष दोनों प्राप्त होता है । शिवजीका दसवाँ अवतार नागेश्वर नामवाला कहा गया है, जो भक्तोंकी रक्षाके लिये आविर्भूत हुआ और सर्वदा दुष्टोंका दमन करता रहता है ॥ ४१-४२ ॥ धर्मनाशक दारुक नामक राक्षसको मारकर शिवजीने वैश्योंके स्वामी सुप्रिय नामक अपने भक्तकी रक्षा की थी । नाना प्रकारकी लीला करनेवाले वे परमात्मा साम्बसदाशिव लोकोंका कल्याण करनेके लिये ज्योतिर्लिंगस्वरूप धारणकर नागेश्वर नामसे वहींपर स्थित हो गये ॥ ४३-४४ ॥ हे मुने! उस नागेश्वर नामक शिवलिंगका दर्शन- पूजन करनेसे महापातकोंके समूह शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं । हे मुने! शिवजीका ग्यारहवाँ अवतार रामेश्वर नामसे प्रसिद्ध है, जो रामचन्द्रका प्रिय करनेवाला है, यह रामचन्द्रके द्वारा स्थापित किया गया है ॥ ४५-४६ ॥ ज्योतिर्लिंगस्वरूपसे आविर्भूत हुए उन भक्तवत्सल भगवान् रामेश्वरने ही रामचन्द्रके द्वारा सन्तुष्ट किये जानेपर उनको विजयका वरदान दिया था ॥ ४७ ॥ हे मुने ! रामचन्द्रजीद्वारा बहुत प्रार्थना करनेपर उनके द्वारा सेवित हुए शिवजी ज्योतिर्लिंगस्वरूपसे सेतुबन्धमें स्थित हो गये ॥ ४८ ॥ रामेश्वरकी महिमा इस पृथ्वीतलमें अद्भुत तथा अतुलनीय हुई, ये भोग तथा मोक्षको देनेवाले तथा भक्तोंके मनोरथको पूर्ण करनेवाले हैं ॥ ४९ ॥ जो मनुष्य रामेश्वरको उत्तम भक्तिपूर्वक गंगाजलसे स्नान कराता है, वह जीवन्मुक्त हो जाता है ॥ ५० ॥ वह इस लोकमें देवताओंके लिये भी दुर्लभ सभी प्रकारके सुखोंका उपभोगकर अन्तमें उत्तम ज्ञान प्राप्तकर कैवल्यमोक्ष प्राप्त करता है ॥ ५१ ॥ शिवजीका बारहवाँ अवतार घुश्मेश्वर नामसे प्रसिद्ध है, जो भक्तोंपर कृपा करनेवाला, अनेकविध लीला करनेवाला तथा घुश्माको आनन्द देनेवाला है ॥ ५२ ॥ हे मुने! दक्षिण दिशामें देवशैलके समीप स्थित सरोवरमें घुश्माका कल्याण करनेवाले प्रभु शिव प्रकट हुए थे ॥ ५३ ॥ हे मुने ! इन्हीं भक्तवत्सल शिवजीने सुदेहाद्वारा मारे गये घुश्माके पुत्रकी उसकी भक्तिसे प्रसन्न हो रक्षा की थी और घुश्माके द्वारा प्रार्थना किये जानेपर सम्पूर्ण कामनाओंको देनेवाले ये प्रभु घुश्मेश्वर नामसे उस सरोवरमें ज्योतिर्लिंग – स्वरूपसे स्थित हो गये ॥ ५४-५५ ॥ उस शिवलिंगका दर्शन एवं भक्तिपूर्वक पूजन करनेसे मनुष्य इस लोकमें सभी प्रकारका सुख भोगकर अन्तमें मुक्ति प्राप्त कर लेता है ॥ ५६ ॥ [ हे सनत्कुमार ! ] इस प्रकार मैंने भोग तथा मोक्ष देनेवाले इन दिव्य द्वादश ज्योतिर्लिंगोंका वर्णन आपसे कर दिया ॥ ५७ ॥ जो मनुष्य ज्योतिर्लिंगोंकी इस कथाको पढ़ता अथवा सुनता है, वह समस्त पापोंसे छूट जाता है और भोग तथा मोक्षको प्राप्त कर लेता है ॥ ५८ ॥ मैंने शिवजीके सौ अवतारोंकी उत्तम कीर्तिसे पूर्ण तथा सभी मनोरथोंको पूर्ण करनेवाली इस शतरुद्र नामक संहिताका वर्णन कर दिया ॥ ५९ ॥ जो एकाग्रचित्त होकर इसे नित्य पढ़ता अथवा सुनता है, उसकी समस्त कामनाएँ पूर्ण हो जाती हैं और उसके बाद वह मुक्तिको प्राप्त कर लेता है ॥ ६० ॥ ॥ इस प्रकार श्रीशिवमहापुराणके अन्तर्गत तृतीय शतरुद्रसंहिताके सनत्कुमार- नन्दीश्वर – संवादमें द्वादशज्योतिर्लिंगावतारवर्णन नामक बयालीसवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ॥ ४२ ॥ ॥ तृतीय शतरुद्रसंहिता पूर्ण हुई ॥ Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. 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