September 18, 2024 | aspundir | Leave a comment शिवमहापुराण – शतरुद्रसंहिता – अध्याय 001 ॥ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ श्रीसाम्बसदाशिवाय नमः ॥ श्रीशिवमहापुराण शतरुद्रसंहिता पहला अध्याय सूतजी से शौनकादि मुनियोंका शिवावतारविषयक प्रश्न महानन्दमनन्तलीलं महेश्वरं सर्वविभुं महान्तम् । गौरीप्रियं कार्तिकविघ्नराज-समुद्भवं शङ्करमादिदेवम् ॥ मैं परम आनन्दस्वरूप, अनन्त लीलाओं से युक्त, सर्वत्र व्यापक, महान्, गौरीप्रिय, कार्तिकेय और गजानन को उत्पन्न करने वाले आदिदेव महेश्वर शंकर को नमस्कार करता हूँ। शौनकजी बोले- हे व्यासशिष्य ! हे महाभाग ! हे ज्ञान और दया के सागर सूतजी ! आप शिवजी के उन अवतारों का वर्णन कीजिये, जिनके द्वारा [ उन्होंने] सज्जन व्यक्तियों का कल्याण किया है ॥ १ ॥ सूतजी बोले- हे मुने! हे शौनक ! मैं [ शिवजीमें] मन लगाकर और इन्द्रियों को वशमें करके भक्तिपूर्वक शिवजी के अवतारों का वर्णन आप महर्षि से कर रहा हूँ, आप सुनिये ॥ २ ॥ हे मुने! पूर्वकालमें इसी बातको सनत्कुमारने शिवस्वरूप तथा सत्पुरुषोंकी रक्षा करनेमें समर्थ नन्दीश्वरसे पूछा था, तब शिवजीका स्मरण करते हुए नन्दीश्वरने उनसे कहा था ॥ ३ ॥ महानन्दमनन्तलीलं महेश्वरं सर्वविभुं महान्तम् ।गौरीप्रियं कार्तिकविघ्नराज-समुद्भवं शङ्करमादिदेवम् ॥ नन्दीश्वर बोले – [ हे सनत्कुमार!] सर्वव्यापक तथा सर्वेश्वर शंकर के विविध कल्पोंमें यद्यपि असंख्य अवतार हुए हैं, फिर भी मैं अपनी बुद्धिके अनुसार यहाँपर उनका वर्णन कर रहा हूँ ॥ ४ ॥ उन्नीसवाँ कल्प श्वेतलोहित नामवाला जानना चाहिये, इसमें प्रथम सद्योजात अवतार कहा गया है ॥ ५ ॥ उस कल्प में जब ब्रह्माजी परम ब्रह्म के ध्यान में अवस्थित थे, उसी समय उनसे शिखा से युक्त श्वेत और लोहित वर्णवाला एक कुमार उत्पन्न हुआ ॥ ६ ॥ ब्रह्माजी ने उस पुरुष को देखते ही उन्हें ब्रह्मस्वरूप ईश्वर जानकर उनका हृदय में ध्यान करके हाथ जोड़कर प्रणाम किया ॥ ७॥ उनको सद्योजात शिव समझकर वे भुवनेश्वर अत्यन्त हर्षित हुए और बार-बार सद्बुद्धिपूर्वक परमतत्त्वरूप उन पुरुषका चिन्तन करने लगे ॥८॥ उसके बाद ब्रह्मा के पुनः ध्यान करने पर श्वेतवर्ण, यशस्वी, परम ज्ञानी एवं परब्रह्मस्वरूपवाले अनेक कुमार उत्पन्न हुए । उनके नाम सुनन्द, नन्दन, विश्वनन्द और उपनन्दन थे । ये सभी महात्मा उनके शिष्य हुए, उनके द्वारा यह सम्पूर्ण ब्रह्मलोक समावृत है ॥ ९-१० ॥ उन्हीं सद्योजात नामक परमेश्वर शिवजी ने प्रसन्न होकर प्रेमपूर्वक ब्रह्माजी को ज्ञान प्रदान किया एवं सृष्टि सृष्टि उत्पन्न करनेका सामर्थ्य भी प्रदान किया ॥ ११ ॥ इसके बाद बीसवाँ रक्त नामक कल्प कहा गया है, जिसमें महातेजस्वी ब्रह्माजीने रक्तवर्ण धारण किया ॥ १२ ॥ जब पुत्रप्राप्तिकी कामनासे ब्रह्माजी ध्यानमें लीन थे, उसी समय उनसे रक्तवर्ण की माला तथा वस्त्रों को धारण किये हुए रक्तनेत्रवाला तथा रक्त आभूषणोंसे अलंकृत एक कुमार प्रादुर्भूत हुआ ॥ १३ ॥ ध्यानमें निमग्न ब्रह्माजीने उन महात्मा कुमारको देखते ही उन्हें वामदेव शिव जानकर हाथ जोड़ करके प्रणाम किया ॥ १४॥ तदुपरान्त उनसे लाल वस्त्र धारण किये हुए विरजा, विवाह, विशोक और विश्वभावन नामक चार पुत्र उत्पन्न हुए॥ १५॥ उन्हीं वामदेव नामक शिव ने प्रसन्न होकर प्रेमपूर्वक ब्रह्माजीको ज्ञान प्रदान किया और सृष्टि उत्पन्न करनेकी शक्ति भी प्रदान की ॥ १६ ॥ इक्कीसवाँ कल्प पीतवासा – इस नामसे कहा गया है। इस कल्पमें महाभाग्यशाली ब्रह्मा पीतवस्त्र धारण किये हुए थे। [इस कल्पमें] जब ब्रह्माजी पुत्रकी अभिलाषासे ध्यान कर रहे थे, उसी समय उनसे पीताम्बरधारी, महातेजस्वी तथा महाबाहु एक कुमार अवतरित हुआ ॥ १७-१८॥ उस कुमारको देखते ही ध्यानयुक्त ब्रह्माने उन्हें तत्पुरुष शिव जानकर प्रणाम किया और शुद्धबुद्धिसे वे शिवगायत्री (तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि ) – का जप करने लगे । सम्पूर्ण लोकोंसे नमस्कृत महादेवी गायत्रीका ध्यानमग्न मनसे जप करते हुए देखकर महादेवजी ब्रह्मापर बहुत ही प्रसन्न हुए ॥ १९-२० ॥ उसके बाद ब्रह्माजीके पार्श्वभागसे पीतवस्त्रधारी अनेक दिव्य कुमार उत्पन्न हुए; वे सभी कुमार योगमार्गके प्रवर्तकके रूपमें प्रसिद्ध हुए ॥ २१ ॥ तदनन्तर ब्रह्माजीके पीतवासा नामक कल्पके व्यतीत हो जानेके पश्चात् शिव नामक एक अन्य कल्प प्रारम्भ हुआ ॥ २२ ॥ उस कल्प के हजार दिव्य वर्ष बीतने जब सारा जगत् जलमय था, उस समय ब्रह्माजी प्रजाओं की सृष्टि करनेके विचारसे [समस्त जगत्को जलमय देखकर ] दुखी होकर सोचने लगे ॥ २३ ॥ उसी समय महातेजस्वी ब्रह्माने कृष्णवर्णवाले, महापराक्रमी तथा अपने तेजसे दीप्त एक कुमारको उत्पन्न हुआ देखा, जो काला वस्त्र, काली पगड़ी, काले रंगका यज्ञोपवीत, कृष्णवर्णका मुकुट तथा कृष्णवर्णके सुगन्धित चन्दनका अनुलेप धारण किये हुए था ॥ २४-२५॥ ब्रह्माजीने उन महात्मा, घोर पराक्रमी, कृष्णपिंगल वर्णयुक्त, अद्भुत तथा अघोर रूपधारी देवाधिदेव शंकरको देखकर प्रणाम किया । इसके बाद ब्रह्माजी अघोरस्वरूप परब्रह्मका ध्यान करने लगे और उन भक्तवत्सल तथा अविनाशी अघोर की प्रिय वचनोंसे स्तुति करने लगे ॥ २६-२७॥ तत्पश्चात् ब्रह्माजीके पार्श्वभागसे कृष्ण सुगन्धानुलेपनसे लिप्त कृष्णवर्णके चार महात्मा कुमार उत्पन्न हुए। कृष्ण, कृष्णशिख, कृष्णास्य, कृष्णकण्ठधृक् – इस प्रकारके अव्यक्त नामवाले वे परमतेजसे सम्पन्न तथा शिवस्वरूप थे॥ २८-२९॥ इस प्रकारके उन महात्माओंने ब्रह्माजीको सृष्टि करनेके लिये घोर [ अघोर] नामक अत्यन्त अद्भुत योगमार्गका उपदेश किया॥३०॥ [ श्रीसूतजीने कहा-] हे मुनीश्वरो ! इसके बाद ब्रह्माजीका विश्वरूप इस नामसे प्रसिद्ध एक अत्यन्त अद्भुत कल्प प्रारम्भ हुआ ॥ ३१ ॥ उस कल्पमें पुत्रकामनावाले ब्रह्माजीने शिवजीका मनसे ध्यान किया, तब महानादस्वरूपवाली विश्वरूपा सरस्वती उत्पन्न हुईं और उसी तरह शुद्ध स्फटिकके समान कान्तिवाले तथा सभी आभूषणोंसे अलंकृत परमेश्वर भगवान् शिव ईशानके रूपमें प्रकट हुए ॥ ३२-३३ ॥ ब्रह्माने अजन्मा, विभु, सर्वगामी, सब कुछ देनेवाले, सर्वस्वरूप, रूपवान् एवं रूपरहित उन ईशानको देखकर प्रणाम किया ॥ ३४ ॥ इसके बाद सर्वव्यापक उन ईशानने भी ब्रह्माको सन्मार्गका उपदेश करके अपनी शक्तिसे युक्त हो चार सुन्दर बालकोंको उत्पन्न किया ॥ ३५ ॥ वे जटी, मुण्डी, शिखण्डी तथा अर्धमुण्ड नामवाले उत्पन्न हुए। वे योगके द्वारा उपदेश देकर सद्धर्म करके योग – गतिको प्राप्त हो गये॥ ३६ ॥ [ नन्दीश्वर बोले— ] हे सनत्कुमार ! हे सर्वज्ञ इस प्रकार मैंने लोकके कल्याणके निमित्त शिवके सद्योजात आदि अवतारोंका संक्षेपसे वर्णन किया ॥ ३७ ॥ हे महाप्राज्ञ ! तीनों लोकोंके लिये हितकर उनका सम्पूर्ण यथोचित व्यवहार इस ब्रह्माण्डमें फैला हुआ है ॥ ३८ ॥ महेश्वरकी ईशान, तत्पुरुष, अघोर, वामदेव तथा [सद्योजात] नामक पाँच मूर्तियाँ ब्रह्म संज्ञासे [इस जगत् में] प्रख्यात हैं॥ ३९ ॥ उनमें ईशान प्रथम तथा सर्वश्रेष्ठ शिवरूप कहा गया है, जो साक्षात् प्रकृतिका भोग करनेवाले क्षेत्रज्ञको अधिकृत करके स्थित है ॥ ४० ॥ शिवजीका द्वितीय रूप तत्पुरुषसंज्ञक है, जो गुणोंके आश्रयवाले तथा भोगनेयोग्य सर्वज्ञपर अधिकार करके स्थित है ॥ ४१ ॥ शिवजीका जो तीसरा अघोर नामक रूप है, वह धर्मके व्यवहारके लिये अपने अंगोंसे संयुक्त बुद्धितत्त्वका विस्तार करके अन्तःकरणमें अवस्थित है ॥ ४२ ॥ शिवजीका चौथा रूप वामदेवके नामसे विख्यात है, जो समस्त अहंकारका अधिष्ठान होकर अनेक प्रकारके कार्योंको सर्वदा सम्पादित करनेवाला है ॥ ४३ ॥ सर्वव्यापी शिवजीका ईशान नामक रूप श्रोत्रेन्द्रिय, वागिन्द्रिय तथा आकाशका ईश्वर है ॥ ४४ ॥ बुद्धिमान् विचारक शिवजीके तत्पुरुष नामक रूपको त्वचा, पाणि, स्पर्श और वायुका ईश्वर मानते हैं ॥ ४५ ॥ मनीषीगण शिवजीके अघोर नामसे विख्यात रूपको शरीर, रस, रूप एवं अग्निका अधिष्ठान मानते हैं ॥ ४६ ॥ शिवजीका वामदेव नामक रूप जिह्वा, पायु, रस तथा जलका स्वामी माना गया है। शिवजीके सद्योजात नामक रूपको नासिका, उपस्थेन्द्रिय, गन्ध एवं भूमिका अधिष्ठातृदेवता कहा गया है ॥ ४७-४८ ॥ अपना कल्याण चाहनेवाले पुरुषोंको शिवजीके इन रूपोंकी प्रयत्नपूर्वक नित्य वन्दना करनी चाहिये; क्योंकि [ये रूप ] सभी प्रकारके कल्याणके एकमात्र कारण हैं ॥ ४९ ॥ जो व्यक्ति सद्योजात आदिकी उत्पत्तिको सुनता अथवा पढ़ता है, वह सम्पूर्ण भोगोंको भोगकर परमगति प्राप्त कर लेता है ॥ ५० ॥ ॥ इस प्रकार श्रीशिवमहापुराणके अन्तर्गत तृतीय शतरुद्रसंहितामें शिवका पंचब्रह्मावतारवर्णन नामक पहला अध्याय पूर्ण हुआ ॥ १ ॥ Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. 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