श्रीमद्देवीभागवत-महापुराण-अष्टमः स्कन्धः-अध्याय-03
॥ श्रीजगदम्बिकायै नमः ॥
॥ ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॥
उत्तरार्ध-अष्टमः स्कन्धः-तृतीयोऽध्यायः
तीसरा अध्याय
महाराज मनु की वंश-परम्परा का वर्णन
भुवनकोशविस्तारे स्वायम्भुवमनुवंशकीर्तनम्

श्रीनारायण बोले — हे नारद! इस प्रकार पृथ्वी को यथास्थान प्रतिष्ठित करके भगवान् जब वैकुण्ठ चले गये तब ब्रह्माजी ने अपने पुत्र से कहा — ॥ १ ॥

तेजस्वियों में श्रेष्ठ तथा विशाल भुजाओं वाले हे पुत्र स्वायम्भुव ! अब तुम उस स्थलमय स्थान पर रहकर समुचित रूप से प्रजाओं की सृष्टि करो। हे विभो ! देश एवं काल के विभाग के अनुसार यज्ञ के साधन स्वरूप उत्तम तथा मध्यम सामग्रियों से यज्ञ के स्वामी परम पुरुष का यजन करो; शास्त्रों में वर्णित धर्म का आचरण करो और वर्णाश्रम व्यवस्था का पालन करो। इस क्रम से प्रवृत्त रहने पर प्रजा – वृद्धि होती रहेगी। विद्या विनय से सम्पन्न, सदाचारियों में श्रेष्ठ और अपने गुण, कीर्ति तथा कान्ति के अनुरूप पुत्र उत्पन्न करके कन्याओं को गुणी तथा यशस्वी पुरुषों को अर्पण करके और एकाग्रचित्त होकर अपने मन को पूर्णरूप से प्रधान पुरुष परमेश्वर में स्थित करके भक्तिपूर्वक साधना तथा भगवान्‌ की सेवा द्वारा आप योगियों के लिये सदा वन्दनीय अभीष्ट गति को प्राप्त कर लोगे ॥ २-७ ॥

[हे नारद!] इस प्रकार अपने पुत्र स्वायम्भुव मनुको उपदेश देकर तथा उन्हें प्रजा-सृष्टि के कार्य में नियुक्त करके पद्मयोनि ब्रह्माजी अपने धाम को चले गये ॥ ८ ॥ ‘हे पुत्र ! प्रजाओं का सृजन करो’ पिता की इस आज्ञा को पृथ्वीपति स्वायम्भुव मनु ने हृदय में धारण कर लिया और वे प्रजा-सृष्टि करने लगे ॥ ९ ॥ मनु प्रियव्रत तथा उत्तानपाद नामक दो महान् ओजस्वी पुत्र और तीन कन्याएँ उत्पन्न हुईं, उनके नाम मुझसे सुनिये; पहली कन्या आकूति, दूसरी देवहूति तथा लोकपावनी तीसरी कन्या प्रसूति नाम से विख्यात हुई ॥ १०-११ ॥ उन्होंने आकूति का रुचि के साथ, मध्यम कन्या देवहूति का कर्दम के साथ और प्रसूति का विवाह दक्षप्रजापति के साथ कर दिया, जिनकी ये प्रजाएँ लोक में फैली हुई हैं ॥ १२ ॥

रुचि के द्वारा आकूति से यज्ञरूप भगवान् आदिपुरुष प्रकट हुए। कर्दमॠषि के द्वारा देवहूति से कपिल उत्पन्न हुए। परम ऐश्वर्यशाली उन कपिलमुनि ने सभी लोकों में सांख्यशास्त्र के आचार्य के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त की । इसी प्रकार दक्ष के द्वारा प्रसूति से सन्तान के रूप में बहुत-सी कन्याएँ उत्पन्न हुईं, जिनकी सन्तानों के रूप में देवता, पशु और मानव आदि उत्पन्न होकर लोक में प्रसिद्ध हुए; वे सभी इस सृष्टि के प्रवर्तक हैं ॥ १३–१५ ॥ सर्वसमर्थ भगवान् यज्ञपुरुष ने याम नामक देवताओं के साथ मिलकर स्वायम्भुव मन्वन्तर में राक्षसों से मनु की रक्षा की थी ॥ १६ ॥ महान् योगी भगवान् कपिल ने अपने आश्रम में रहकर माता देवहूति को सभी अविद्याओं का नाश करने वाले परमज्ञान का उपदेश किया था ॥ १७ ॥ उन्होंने ध्यानयोग तथा अध्यात्म ज्ञान के सिद्धान्त का विशेषरूप से प्रतिपादन किया। समस्त अज्ञान को नष्ट करने वाला उनका शास्त्र कापिल शास्त्र के रूप में प्रसिद्ध हुआ ॥ १८ ॥ वे महायोगी कपिल अपनी माता को उपदेश देकर ऋषि पुलह के आश्रम पर चले गये । सांख्यशास्त्र के आचार्य महान् यशस्वी भगवान् कपिल आज भी विद्यमान हैं ॥ १९ ॥ मैं सभी प्रकार के वर प्रदान करने वाले उन योगाचार्य कपिल को प्रणाम करता हूँ, जिनके नाम के स्मरणमात्र से सांख्ययोग सिद्ध हो जाता है ॥ २० ॥ हे नारद! इस प्रकार मैंने स्वायम्भुव मनु की कन्याओं के वंश का उत्तम वर्णन कर दिया, जिसके पढ़ने तथा सुननेवालों के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं ॥ २१ ॥

इसके बाद मैं मनु-पुत्रों के पवित्र वंश का वर्णन करूँगा, जिसके श्रवणमात्र से मनुष्य परम पद प्राप्त कर लेता है ॥ २२ ॥ उन मनुपुत्रों ने व्यवहार की सिद्धि के लिये और सभी प्राणियों की सुख – प्राप्ति के लिये द्वीप, वर्ष और समुद्र आदिकी व्यवस्था की है ॥ २३ ॥

॥ इस प्रकार अठारह हजार श्लोकों वाली श्रीमद्देवीभागवत महापुराण संहिता के अन्तर्गत आठवें स्कन्ध का ‘भुवनकोश के विस्तार में स्वायम्भुवमनुवंशकीर्तन’ नामक तीसरा अध्याय पूर्ण हुआ ॥ ३ ॥

Content is available only for registered users. Please login or register

Please follow and like us:
Pin Share

Discover more from Vadicjagat

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.