श्रीमद्देवीभागवत-महापुराण-अष्टमः स्कन्धः-अध्याय-12
॥ श्रीजगदम्बिकायै नमः ॥
॥ ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॥
उत्तरार्ध-अष्टमः स्कन्धः-द्वादशोऽध्यायः
बारहवाँ अध्याय
प्लक्ष, शाल्मलि और कुशद्वीप का वर्णन
भुवनकोशवर्णने प्लक्षद्वीपकुशद्वीपवर्णनम्

श्रीनारायण बोले — [हे नारद!] यह जम्बूद्वीप जैसा और जितने परिमाण वाला बताया गया है, वह उतने ही परिमाण वाले क्षारसमुद्र से चारों ओर से उसी प्रकार घिरा है, जैसे मेरुपर्वत जम्बूद्वीप से घिरा हुआ है। क्षारसमुद्र भी अपने से दूने परिमाण वाले प्लक्षद्वीप से उसी प्रकार घिरा हुआ है, जिस प्रकार कोई परिखा (खाई) बाहर के उपवन से घिरी रहती है । जम्बूद्वीप में जितना बड़ा जामुन का वृक्ष है, उतने ही विस्तार वाला प्लक्ष (पाकड़)-का वृक्ष उस प्लक्षद्वीप में है, इसी से वह प्लक्षद्वीप नाम से प्रसिद्ध हुआ ॥ १-३ ॥ सुवर्णमय अग्निदेव वहीं पर निश्चितरूप से प्रतिष्ठित हैं। सात जिह्वाओंवाले ये अग्निदेव प्रियव्रत के पुत्र कहे गये हैं। ‘इध्मजिह्व’ नाम वाले ये अग्निदेव उस द्वीप के अधिपति थे, जिन्होंने अपने द्वीप को सात वर्षों में विभक्तकर अपने पुत्रों को सौंप दिया । तदनन्तर वे ऐश्वर्यशाली इध्मजिह्व आत्मज्ञानियों के द्वारा मान्य योगसाधन में तत्पर हो गये । उसी आत्मयोग के साधन से उन्होंने भगवान् का सांनिध्य प्राप्त किया ॥ ४–६ ॥

शिव, यवस, भद्र, शान्त, क्षेम, अमृत और अभय — प्लक्षद्वीप के ये सात वर्ष उन पुत्रों के नामों से विख्यात हैं । उन वर्षों में सात नदियाँ तथा सात पर्वत कहे गये हैं । अरुणा, नृम्णा, आंगिरसी, सावित्री, सुप्रभातिका, ऋतम्भरा और सत्यम्भरा — इन नामों से नदियाँ तथा मणिकूट, वज्रकूट, इन्द्रसेन, ज्योतिष्मान्, सुपर्ण, हिरण्यष्ठीव और मेघमाल — इन नामों से प्लक्षद्वीप के पर्वत प्रसिद्ध हैं ॥ ७–१० ॥ प्लक्षद्वीप की नदियों के जल के केवल दर्शन, स्पर्श आदि से वहाँ की प्रजा का सम्पूर्ण पाप समाप्त हो जाता है और उनका अज्ञानान्धकार मिट जाता है ॥ ११ ॥ उस प्लक्षद्वीप में हंस, पतंग, ऊर्ध्वायन और सत्यांग नाम वाले चार वर्ण के लोग निवास करते हैं ॥ १२ ॥ उनकी आयु एक हजार वर्ष की होती है और वे देखने में विलक्षण प्रतीत होते हैं। वे तीनों वेदों में बताये गये विधान से स्वर्ग के द्वारस्वरूप भगवान् सूर्य की इस प्रकार उपासना करते हैं — जो सत्य, ऋत, वेद तथा सत्कर्म के अधिष्ठाता हैं; अमृत और मृत्यु जिनके विग्रह हैं, हम उन शाश्वत विष्णुरूप भगवान् सूर्य की शरण लेते ॥ १३-१४ ॥

हे नारद! प्लक्ष आदि सभी पाँचों द्वीपों में वहाँ के सभी प्राणियों में आयु, इन्द्रिय, मनोबल, इन्द्रियबल, शारीरिकबल, बुद्धि और पराक्रम — ये सब स्वाभाविक रूप से सिद्ध रहते हैं ॥ १५१/२

सभी सरिताओं का पति इक्षुरस का समुद्र प्लक्षद्वीप से भी बड़ा है। वह सम्पूर्ण प्लक्षद्वीप को सभी ओर से घेरकर स्थित है ॥ १६१/२

इस प्लक्षद्वीप के बाद इससे भी दूने विस्तार वाला शाल्मल नामक द्वीप है, जो अपने ही विस्तार वाले सुरोद नामक समुद्र से घिरा हुआ है। वहाँ पर एक शाल्मली (सेमर) – )— का वृक्ष है, जो [ प्लक्षद्वीप में स्थित] ‘पाकर’ के वृक्ष के विस्तारवाला कहा गया है ॥ १७-१८ ॥ वह शाल्मली द्वीप पक्षियों के स्वामी महात्मा गरुड का निवासस्थान है। महाराज प्रियव्रत के ही पुत्र यज्ञबाहु उस द्वीप के शासक हुए। उन्होंने अपने सात पुत्रों में पृथ्वी को [विभक्त करके ] प्रदान कर दिया है। अब उन वर्षों के जो नाम बताये गये हैं; उन्हें सुनिये — सुरोचन, सौमनस्य, रमण, देववर्षक, पारिभद्र, आप्यायन और विज्ञात ॥ १९–२१ ॥ उन वर्षों में सात पर्वत और सात ही नदियाँ कही गयी हैं। सरस, शतश्रृंग, वामदेव, कन्दक, कुमुद, पुष्पवर्ष और सहस्रश्रुति — ये सात पर्वत हैं और अब नदियों के नाम बताये जाते हैं; अनुमति, सिनीवाली, सरस्वती, कुहू, रजनी, नन्दा और राका — ये नदियाँ बतायी गयी हैं ॥ २२–२४ ॥

उन वर्षों में निवास करने वाले श्रुतधर, वीर्यधर, वसुन्धर और इषुन्धर नामक चार वर्णों के सभी पुरुष साक्षात् वेदस्वरूप ऐश्वर्यसम्पन्न भगवान् चन्द्रमा की इस प्रकार उपासना करते हैं — अपनी किरणों से पितरों के लिये कृष्ण तथा देवताओं के लिये शुक्लमार्ग का विभाजन करने वाले और सम्पूर्ण प्रजाओं के राजा भगवान् सोम प्रसन्न हों ॥ २५-२६१/२

इसी प्रकार सुरोद की अपेक्षा दूने विस्तार वाला कुशद्वीप बताया गया है। यह भी अपने ही समान विस्तार वाले घृतोद नामक समुद्र से घिरा हुआ हैं । इसमें कुशों का एक महान् पुंज प्रकाशित होता रहता है, इसी से इस द्वीप को कुशद्वीप कहा गया है प्रज्वलित होता हुआ यह अपनी कोमल शिखाओं की कान्ति से सभी दिशाओं को प्रकाशित करता हुआ वहाँ प्रतिष्ठित है ॥ २७-२८१/२

उस कुशद्वीप के अधिपति प्रियव्रतपुत्र महाराज हिरण्यरेता ने उस द्वीप को अपने सात पुत्रों में सात भागों में विभाजित कर दिया । वसु, वसुदान, दृढरुचि, नाभिगुप्त, स्तुत्यव्रत, विविक्त और नामदेव — ये उनके उनके वर्षों में उनकी सीमा निर्धारित करनेवाले नाम थे ॥ २९-३०१/२

सात ही श्रेष्ठ पर्वत कहे गये हैं और सात ही नदियाँ भी हैं। उनके नाम सुनिये चक्र, चतुःशृंग, कपिल, चित्रकूट, देवानीक, ऊर्ध्वरोमा और द्रविड — ये सात पर्वत हैं और रसकुल्या, मधुकुल्या, मित्रविन्दा, श्रुतविन्दा, देवगर्भा, घृतच्युता तथा मन्दमालिका — ये नदियाँ हैं, जिनके जल में कुशद्वीप के निवासी स्नान करते हैं । वे सब कुशल, कोविद, अभियुक्त और कुलक — इन नामों से चार वर्णों वाले कहे हैं। श्रेष्ठ देवताओं के सदृश तेजस्वी तथा सर्वज्ञ वहाँ के सभी लोग अपने यज्ञ आदि कुशल कर्मों द्वारा अग्निस्वरूप उन भगवान् श्रीहरि की उपासना करते हैं ॥ ३१–३६ ॥ उस द्वीप में निवास करने वाले सभी पुरुष अग्निदेव की इस प्रकार स्तुति करते हैं

देवानां पुरुषाङ्गानां यज्ञेन पुरुषं यज ।
एवं यजन्ते ज्वलनं सर्वे द्वीपाधिवासिनः ॥ ३७ ॥

‘ हे जातवेद ! आप परब्रह्म को साक्षात् हवि पहुँचाने वाले हैं। अतः भगवान के अंगभूत देवताओं के यजन द्वारा आप उन परम पुरुष का ही यजन करें ‘ ॥ ३७ ॥

॥ इस प्रकार अठारह हजार श्लोकों वाली श्रीमद्देवीभागवत महापुराण संहिता के अन्तर्गत आठवें स्कन्ध का ‘भुवनकोशवर्णन में प्लक्षद्वीपकुशद्वीपवर्णन’ नामक बारहवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ॥ १२ ॥

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