May 28, 2025 | aspundir | Leave a comment श्रीमद्देवीभागवत-महापुराण-दशम स्कन्धः-अध्याय-03 ॥ श्रीजगदम्बिकायै नमः ॥ ॥ ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॥ उत्तरार्ध-दशम स्कन्धः-तृतीयोऽध्यायः तीसरा अध्याय विन्ध्यपर्वत का आकाश तक बढ़कर सूर्य के मार्ग को अवरुद्ध कर लेना देवीमाहात्म्ये विन्ध्योपाख्यानवर्णनम् सूतजी बोले — हे ऋषियो ! इस प्रकार विन्ध्यगिरि से वार्तालाप करके परम स्वतन्त्र तथा स्वेच्छापूर्वक विचरण करने वाले महामुनि देवर्षि नारद ब्रह्मलोक चले गये ॥ १ ॥ मुनिवर नारद के चले जाने पर विन्ध्य निरन्तर चिन्तित रहने लगा। उसे शान्ति नहीं मिल पाती थी । वह अपने अन्तर्मन में सदा यही सोचता कि अब मैं कौन-सा कार्य करूँ तथा किस प्रकार से सुमेरुगिरि को जीत लूँ? इस समय मुझे न तो शान्ति मिल पा रही है और न तो मेरा मन ही सुस्थिर हो पा रहा है। (मेरे उत्साह, सम्मान, यश तथा कुल को धिक्कार है) मेरे बल तथा पुरुषार्थ को धिक्कार है । पूर्वकालीन महात्माओं ने भी ऐसा ही कहा है ॥ २-३१/२ ॥ इस प्रकार चिन्तन करते हुए विन्ध्यगिरि के मन में कर्तव्य के निर्णय में दोष उत्पन्न कर देने वाली बुद्धि का उदय हो गया ॥ ४१/२ ॥ सूर्य सभी ग्रह-नक्षत्रसमूहों से युक्त होकर सुमेरु- पर्वत की सदा परिक्रमा करते रहते हैं, जिससे यह सुमेरु-गिरि अभिमान में चूर रहता है । मैं अपने शिखरों से उस सूर्य का मार्ग रोक दूँगा । तब इस प्रकार अवरुद्ध हुए ये सूर्य सुमेरुगिरि का परिक्रमण कैसे कर सकेंगे? ॥ ५-६१/२ ॥ इस प्रकार मेरे द्वारा सूर्य का मार्गावरोध कर दिये जाने से उस दिव्य सुमेरुगिरि का अभिमान निश्चितरूप से खण्डित हो जायगा ॥ ७१/२ ॥ ऐसा निश्चय करके विन्ध्यगिरि अपने शिखरों से आकाश को छूता हुआ बढ़ने लगा और अत्युच्च श्रेष्ठ शिखरों से सम्पूर्ण आकाश को व्याप्त करके व्यवस्थित हो गया । वह प्रतीक्षा करने लगा कि कब सूर्य उदित हों और कब मैं उनका मार्ग अवरुद्ध करूँ ॥ ८-९ ॥ इस प्रकार उसके सोचते-सोचते वह रात्रि व्यतीत हो गयी और विमल प्रभात का आगमन हो गया। अपनी किरणों से दिशाओं को अन्धकाररहित करते हुए भगवान् सूर्य उदयाचल पर उदित होने के लिये प्रकट होने लगे । सूर्य की शुभ किरणों से आकाश स्वच्छ प्रकाशित होने लगा, कमलिनी खिलने लगी और कुमुदिनी संकुचित होने लगी, सभी प्राणी अपने- अपने कार्यों में लग गये ॥ १०-१२ ॥ इस प्रकार पूर्वाह्न, अपराह्न तथा मध्याह्न के विभाग से देवताओं के लिये हव्य, कव्य तथा भूतबलि का संवर्धन करते हुए प्रभा के स्वामी सूर्य चिरकालीन विरहाग्नि से सन्तप्त तथा वियोगिनी कामिनीसदृश प्राची तथा आग्नेयी दिशाओं को आश्वासन देकर एवं पुनः अग्नि-दिशा को छोड़कर बड़ी तेजी से दक्षिण दिशा की ओर प्रस्थान करने का प्रयास करने लगे। किंतु जब वे सूर्य आगे नहीं बढ़ सके, तब उनका सारथि अनूरु ( अरुण ) कहने लगा — ॥ १३–१५१/२ ॥ अनूरु बोला — हे सूर्य ! अत्यधिक अभिमानी विन्ध्यगिरि आपका मार्ग रोककर आकाश में स्थित हो गया है। वह सुमेरुगिरि से स्पर्धा करता है और आपके द्वारा सुमेरु की की जानेवाली परिक्रमा प्राप्त करने की अभिलाषा रखता है ॥ १६१/२ ॥ सूतजी बोले — अरुण का यह वचन सुनकर सूर्य सोचने लगे — अहो ! आकाश का भी मार्ग अवरुद्ध हो गया, यह तो महान् आश्चर्य है । प्रायः कुमार्ग पर चलने वाला पराक्रमी व्यक्ति क्या नहीं कर सकता ॥ १७-१८ ॥ दैव बड़ा बलवान् होता है । आज मेरे घोड़ों का मार्ग रोक दिया गया है। राहु की भुजाओं में जकड़े जाने पर जो क्षणभर के लिये भी नहीं रुकता था, वही मैं चिरकाल से अवरुद्ध मार्गवाला हो गया हूँ । बलवान् विधाता अब न जाने क्या करेगा ? ॥ १९ ॥ इस प्रकार सूर्य का मार्ग अवरुद्ध हो जाने से समस्त लोक तथा लोकेश्वर कहीं भी शरण नहीं प्राप्त कर सके और वे अपने-अपने कार्य सम्पादित करने में अक्षम हो गये ॥ २०१/२ ॥ चित्रगुप्त आदि सभी लोग जिन सूर्य से समय का ज्ञान करते थे, वे ही सूर्य आज विन्ध्यगिरि के द्वारा अवरुद्ध कर दिये गये । अहो ! दैव भी कितना विपरीत हो जाता है ॥ २१ ॥ जब स्पर्धा के कारण विन्ध्य ने सूर्य को रोक दिया, तब स्वाहा-स्वधाकार नष्ट हो गये और सम्पूर्ण जगत् भी नष्टप्राय हो गया ॥ २२१/२ ॥ पश्चिम तथा दक्षिण के प्राणी रात्रि के प्रभाव में थे और निद्रा से नेत्र बन्द किये हुए थे, साथ ही पूर्व तथा उत्तर के प्राणी सूर्य की प्रचण्ड गर्मी से दग्ध हो रहे थे प्रजाओं का विनाश होने लगा । बहुत-से प्राणी मर गये, कितने ही नष्ट हो गये, कितने भग्न हो गये, सम्पूर्ण जगत् में हाहाकार मच गया और श्राद्ध- तर्पण से जगत् रहित हो गया । इन्द्रसहित सभी देवता व्याकुल होकर आपस में कहने लगे कि अब हम लोग क्या करें ? ॥ २३–२५ ॥ ॥ इस प्रकार अठारह हजार श्लोकों वाली श्रीमद्देवीभागवत महापुराण संहिता के अन्तर्गत दसवें स्कन्ध का ‘देवी-माहात्म्य के अन्तर्गत विन्ध्योपाख्यानवर्णन’ नामक तीसरा अध्याय पूर्ण हुआ ॥ ३ ॥ Content is available only for registered users. Please login or register Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe