श्रीमद्देवीभागवत-महापुराण-दशम स्कन्धः-अध्याय-08
॥ श्रीजगदम्बिकायै नमः ॥
॥ ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॥
उत्तरार्ध-दशम स्कन्धः-अष्टमोऽध्यायः
आठवाँ अध्याय
स्वारोचिष, उत्तम, तामस और रैवत नामक मनुओं का वर्णन
मनूत्पत्तिवर्णनम्

शौनकजी बोले — [ हे सूतजी ! ] यह तो आपने आदिमन्वन्तर का उत्तम उपाख्यान कहा, अब दिव्य तेज वाले अन्य मनुओं की उत्पत्ति का वर्णन कीजिये ॥ १ ॥

सूतजी बोले — इसी प्रकार भगवती के तात्त्विक नारदजी ने भी आद्य स्वायम्भुव मनु की उत्पत्ति का प्रसंग सुनकर क्रमशः अन्य मनुओं के प्रादुर्भाव के विषय में भगवान् नारायण से पूछा था ॥ २१/२

रहस्यों को पूर्णरूपेण जानने वाले परम ज्ञानी देवर्षि नारदजी बोले — हे सनातन ! मनुओं की उत्तम उत्पत्ति के विषय में मुझे भलीभाँति बताइये ॥ ३ ॥


श्रीनारायण बोले — हे महामुने ! मैंने इन आद्य स्वायम्भुव मनु का वर्णन कर दिया, जिन्होंने देवी की उपासना से निष्कण्टक राज्य प्राप्त किया। उन मनु के प्रियव्रत तथा उत्तानपाद नामक महान् तेजस्वी दो पुत्र हुए। राज्य का भलीभाँति पालन करने वाले वे दोनों भूलोक में अति प्रसिद्ध हुए ॥ ४-५ ॥ विद्वानों ने स्वारोचिष मनु को द्वितीय मनु कहा है । अमित पराक्रम वाले वे श्रीमान् स्वारोचिष मनु राजा प्रियव्रत के पुत्र थे ॥ ६ ॥ सभी प्राणियों का हित करने वाले वे स्वारोचिष नामक मनु यमुना के तट पर निवास करने लगे। वे सूखे पत्तों के आहार पर रहकर एक महान् व्रती के रूप में तपस्या करने में संलग्न हो गये और भगवती की मृण्मयी मूर्ति बनाकर भक्तिपूर्वक उनकी पूजा करने लगे ॥ ७-८ ॥

हे तात! इस प्रकार वन में रहकर बारह वर्षों तक तपस्या करने वाले उन मनु के समक्ष हजारों सूर्यों के समान तेज वाली देवी प्रकट हो गयीं ॥ ९ ॥ तत्पश्चात् उत्तम व्रत का पालन करने वाली उन देवेश्वरी ने उस स्तवराज से प्रसन्न होकर स्वारोचिष मनु को सम्पूर्ण मन्वन्तर का आधिपत्य प्रदान कर दिया। उसी समय से भगवती जगद्धात्री को तारिणी मानकर उनकी उपासना करने की प्रथा चल पड़ी ॥ १०१/२

इस प्रकार स्वारोचिष मनु ने उन तारिणीदेवी की उपासना से समस्त शत्रुओं से रहित राज्य प्राप्त कर लिया। इसके अनन्तर वे ऐश्वर्यसम्पन्न मनु विधिपूर्वक धर्म की स्थापना करके पुत्रों के साथ अपना राज्य भोगकर अन्त में अपने मन्वन्तर का अधिकार त्यागकर स्वर्गलोक चले गये ॥ ११-१२१/२

इसके बाद प्रियव्रत के उत्तम नामक पुत्र तृतीय मनु हुए। उन्होंने गंगा के तट पर रहकर एकान्त में निरन्तर भगवती के वाग्भव मन्त्र का जप करते हुए तीन वर्षों तक तप करके देवी का अनुग्रह प्राप्त किया ॥ १३-१४ ॥ भक्तिपूर्ण मन से उत्तम स्तोत्रों के द्वारा भगवती की स्तुति करके उन्होंने निष्कंटक राज्य तथा दीर्घजीवी सन्तान प्राप्त की ॥ १५ ॥ राज्य से प्राप्त होने वाले सुखों का भोग करके तथा युग-धर्मों का पालन करके वे अन्य श्रेष्ठ राजर्षियों द्वारा प्राप्त पद पर पहुँच गये ॥ १६ ॥ तामस नाम वाले चौथे मनु प्रियव्रत के पुत्र थे । नर्मदा नदी के दक्षिणी तट पर गुह्य कामबीज मन्त्र का सतत जप करते हुए उन्होंने जगद्व्यापिनी महेश्वरी की आराधना की । चैत्र तथा आश्विनमास के नवरात्र में उपासना के द्वारा उन्होंने कमल के समान नेत्रों वाली अनुपमेय देवेश्वरी को सन्तुष्ट किया ॥ १७-१८१/२

अति श्रेष्ठ स्तोत्रों से देवी का स्तवन करके उनकी कृपा प्राप्त कर तामस मनु ने निःशंक होकर निष्कण्टक विशाल राज्य का भोग किया ॥ १९१/२

अपनी भार्या से दस ओजस्वी, शक्तिशाली तथा पराक्रमी पुत्र उत्पन्न करके वे उत्तम लोक को प्राप्त हुए ॥ २०१/२

तामस मनु के अनुज रैवत को पाँचवाँ मनु कहा गया है । यमुना के तट पर रहकर उन्होंने परम वाक्-शक्ति तथा प्रतिष्ठा प्रदान करने वाले एवं साधकों के लिये आश्रयस्वरूप कामबीजसंज्ञक मन्त्र का जप किया ॥ २१-२२ ॥ भगवती की इस आराधना से उन्होंने उत्तम समृद्धि सम्पन्न अपना राज्य तथा जगत् में सभी सिद्धियाँ प्रदान करने वाला अप्रतिहत जो प्रतिहत न हो । जिसका विघात न हुआ हे । अटुट । अपराजित । बिना रोकटोक का । संपुर्ण । समग्र ।बल प्राप्त कर लिया। उन्होंने शुभ तथा पुत्र-पौत्र से सम्पन्न सन्तति प्राप्त की । पुनः लोक में धर्म की स्थापना करके, राज्य की व्यवस्था करके तथा राज्य-सुख भोगकर अप्रतिम शूर उन रैवत मनु ने उत्तम इन्द्रपुरी के लिये प्रस्थान किया ॥ २३-२४ ॥

॥ इस प्रकार अठारह हजार श्लोकों वाली श्रीमद्देवीभागवत महापुराण संहिता के अन्तर्गत दसवें स्कन्ध का ‘मनुओं की उत्पत्ति का वर्णन’ नामक आठवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ॥ ८ ॥

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