श्रीमद्देवीभागवत-महापुराण-चतुर्थ स्कन्धः-अध्याय-22
॥ श्रीजगदम्बिकायै नमः ॥
॥ ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॥
पूर्वार्द्ध-चतुर्थ: स्कन्धः-द्वाविंशोऽध्यायः
बाईसवाँ अध्याय
देवकी के छः पुत्रों के पूर्वजन्म की कथा, सातवें पुत्र के रूप में भगवान् संकर्षण का अवतार, देवताओं तथा दानवों के अंशावतारों का वर्णन
देवदानवानामंशावतरणवर्णनम्

जनमेजय बोले — हे पितामह! उस बालक ने ऐसा कौन-सा पापकर्म किया था, जिससे जन्म लेते ही उसको दुष्टात्मा कंस ने मार डाला ? ॥ १ ॥ महान् ज्ञानी, धर्मपरायण तथा ब्रह्मवेत्ता होते हुए भी मुनिश्रेष्ठ नारद ने इस प्रकार का पाप क्यों किया ? विद्वज्जनों ने पाप करने तथा कराने वाले इन दोनों को समान पापी बताया है; तो फिर उन देवर्षि नारद ने इस पापकर्म के लिये दुष्ट कंस को प्रेरित क्यों किया ? ॥ २-३ ॥ इस विषय में मुझे यह महान् सन्देह हो गया है। जिस कर्मफल से वह बालक मारा गया, उसके बारे में मुझे सब कुछ विस्तारपूर्वक बताइये ॥ ४ ॥

व्यासजी बोले — देवर्षि नारद को कौतुक करना तथा कलह करा देना अत्यन्त प्रिय है। अतः देवताओं का कार्य साधने के लिये ही उन्होंने उपस्थित होकर यह सब किया था ॥ ५ ॥ उन मुनि नारद की बुद्धि झूठ बोलने में कभी भी प्रवृत्त नहीं हो सकती । सत्यवादी तथा पवित्र हृदयवाले सदा देवताओं का कार्य सिद्ध करने में तत्पर रहते हैं ॥ ६ ॥ इस प्रकार कंस ने देवकी के छः पुत्रों को बारी- बारी से जन्म लेते ही मार डाला । पूर्वजन्म में प्राप्त शाप के कारण वे छः बालक जन्म लेते ही मृत्यु को प्राप्त हो गये ॥ ७ ॥

हे राजन् ! सुनिये, अब मैं उनके शाप का कारण बताऊँगा। स्वायम्भुव मन्वन्तर में मरीचि की भार्या ऊर्णा के गर्भ से छ: अत्यन्त बलशाली पुत्र उत्पन्न हुए; ये धर्मशास्त्र में पूर्णरूप से निष्णात थे ॥ ८२ ॥ एक बार ब्रह्माजी को अपनी पुत्री सरस्वती के साथ समागम के लिये उद्यत देखकर वे हँस पड़े थे। तब ब्रह्माजी ने उन्हें शाप दे दिया कि तुम लोगों का पतन हो जाय और तुम सब दैत्ययोनि में जन्म लो। हे महाराज ! इस प्रकार वे छहों पुत्र कालनेमि के पुत्ररूप में उत्पन्न हुए ॥ ९-१० ॥ हे राजन्! अगले जन्म में वे हिरण्यकशिपु के पुत्र हुए। उनका पूर्वज्ञान अभी बना हुआ था। अतः वे सब पूर्वशाप से भयभीत होकर उस जन्म में समाहितचित्त हो शान्तभाव से तप करने लगे। इससे ब्रह्माजी ने अत्यधिक प्रसन्न होकर उन छहों को वरदान दे दिया ॥ ११-१२ ॥

ब्रह्माजी बोले — हे महाभाग पुत्रो ! मैंने क्रोध में आकर उस समय तुम लोगों को शाप दे दिया था । मैं तुम सभी पर परम प्रसन्न हूँ; अतएव अपना अभिलषित वर माँगो ॥ १३ ॥

व्यासजी बोले — उन ब्रह्मा का वचन सुनकर उनके मन में अत्यधिक प्रसन्नता हुई। अपना कार्य सिद्ध करने में तत्पर उन सबने ब्रह्माजी से वर माँग लिया ॥ १४ ॥

बालक बोले — हे पितामह! यदि आज आप हमपर प्रसन्न हैं तो हमें मनोवांछित वरदान दीजिये। हम लोगों को सभी देवता, मानव और महानाग न मार सकें। हे पितामह! यहाँ तक कि गन्धर्व तथा बड़े-से-बड़े सिद्ध पुरुषों से भी हमारा वध न हो सके ॥ १५१/२

व्यासजी बोले — तब ब्रह्माजीने उनसे कहा कि यह सब पूर्ण होगा। हे महाभाग्यशाली बालको! अब तुम लोग जाओ। यह सत्य होकर रहेगा; इसमें सन्देह नहीं है । जब ब्रह्माजी वरदान देकर चले गये, तब वे सब परम प्रसन्न हुए ॥ १६-१७ ॥

हे कुरुश्रेष्ठ ! [ वरदान की बात जानकर] हिरण्य-कशिपु कुपित होकर उनसे बोला — हे पुत्रो ! तुम लोगों ने मेरी उपेक्षा करके अपनी तपस्या से ब्रह्मा को प्रसन्न किया है। उनसे प्रार्थना करके वरदान पाकर तुम लोग अत्यधिक बलशाली हो गये हो। तुम सभी ने अपने पिता के स्नेह को अपमानित किया है; अतएव मैं तुम लोगों का परित्याग करता हूँ ॥ १८-१९ ॥ अब तुमलोग पाताललोक चले जाओ। इस पृथ्वी पर तुमलोग ‘षड्गर्भ’ नाम से विख्यात होओगे । पाताललोक में तुमलोग बहुत वर्षों तक निद्रा के वशीभूत रहोगे। तत्पश्चात् तुम लोग क्रम से प्रतिवर्ष देवकी के गर्भ से उत्पन्न होते रहोगे और पूर्वजन्म का तुम्हारा पिता कालनेमि उस समय कंस नाम से उत्पन्न होगा। वह अत्यन्त क्रूर कंस तुमलोगों को उत्पन्न होते ही मार डालेगा ॥ २०-२११/२

व्यासजी बोले — इस प्रकार हिरण्यकशिपु से शापित होकर वे क्रम से एक-एक करके देवकी के गर्भ में आते गये और कंस पूर्वशाप से प्रेरित होकर उन षड्गर्भरूप देवकी के पुत्रों का वध करता गया। इसके बाद शेषनाग के अंशावतार बलभद्रजी देवकी के सातवें गर्भ में आये ॥ २२-२३ ॥ तत्पश्चात् योगमाया ने अपने योगबल से उस गर्भ को च्युत कर दिया और हठात् खींचकर उसे रोहिणी के गर्भ में स्थापित कर दिया ॥ २४ ॥ इसी बीच लोगों को यह बात मालूम हो गयी कि पाँचवें महीने में ही देवकी का गर्भस्राव हो गया। कंस भी देवकी के गर्भपात का समाचार जान गया। अपने लिये यह सुखप्रद समाचार सुनकर वह दुरात्मा कंस बहुत प्रसन्न हुआ ॥ २५ ॥ उधर देवताओं के कार्य को सिद्ध करने तथा पृथ्वी का भार उतारने के लिये जगत्पति भगवान् विष्णु देवकी के आठवें गर्भ में विराजमान हो गये ॥ २६१/२

राजा बोले — हे मुनिश्रेष्ठ ! आपने यह बता दिया कि वसुदेवजी महर्षि कश्यप के अंशावतार थे और उनके यहाँ शेषनाग तथा भगवान् विष्णु अपने-अपने अंशों से उत्पन्न हुए। हे अनघ ! देवताओं के अन्य जो-जो अंशावतार पृथ्वी की प्रार्थना पर उसका भार उतारने के लिये हुए हैं, उन्हें भी बताइये ॥ २७-२८१/२

व्यासजी बोले — हे राजन् ! देवताओं तथा असुरों के जो-जो अंश लोक में विख्यात हुए हैं, उनके विषय में मैं संक्षिप्तरूप में बता रहा हूँ; आप उन्हें सुनिये वसुदेव कश्यप के अंश से तथा देवकी अदिति के अंश से उत्पन्न थीं ॥ २९-३० ॥ बलदेवजी शेषनाग के अंश थे। इन सभी के अवतरित हो जाने पर जिन धर्मपुत्र श्रीमान् नारायण के विषय में कहा जा चुका है, उन्हीं के अंश से ही साक्षात् भगवान् श्रीकृष्ण ने अवतार लिया। मुनिवर नारायण के श्रीकृष्णरूप में प्रकट हो जाने पर उनके नर नामक जो छोटे भाई हैं, उनके अंशस्वरूप अर्जुन का प्राकट्य हुआ ॥ ३१-३२ ॥ महाराज युधिष्ठिर धर्म के अंश, भीमसेन पवनदेव के अंश तथा माद्री के दोनों महाबली पुत्र नकुल एवं सहदेव दोनों अश्विनीकुमारों के अंश कहे गये हैं ॥ ३३ ॥ कर्ण सूर्य के अंश से प्रकट हुए और विदुर को धर्म का अंश बताया गया है । द्रोणाचार्य बृहस्पति के अंश से तथा उनका पुत्र अश्वत्थामा शिव के अंश से उत्पन्न थे ॥ ३४ ॥

विद्वानों का मानना है कि समुद्र के अंश से महाराज शन्तनु तथा गंगा के अंश से उनकी भार्या उत्पन्न हुई थीं। पुराणप्रसिद्ध गन्धर्वराज के अंश से महाराज देवक उत्पन्न हुए थे ॥ ३५ ॥ भीष्मपितामह को वसु का तथा राजा विराट को मरुद्- गणों का अंशावतार बताया गया है। महाराज धृतराष्ट्र अरिष्टनेमि के पुत्र हंस के अंश से उत्पन्न कहे गये हैं ॥ ३६ ॥ कृपाचार्य को किसी एक मरुद्गण का अंश तथा कृतवर्मा को किसी दूसरे मरुद्गण का अंश बताया गया है। [ हे राजन्!] दुर्योधन को कलि का अंश तथा शकुनि को द्वापर का अंश समझिये ॥ ३७ ॥ प्रसिद्ध सोमनन्दन सुवर्चा पृथ्वी पर सोमप्ररु नाम से विख्यात हुए। धृष्टद्युम्न अग्नि तथा शिखण्डी राक्षस के अंश से उत्पन्न हुए ॥ ३८ ॥ प्रद्युम्न सनत्कुमार के अंश कहे गये हैं। द्रुपद वरुण के अंश थे तथा द्रौपदी साक्षात् लक्ष्मी के अंश से उत्पन्न थीं ॥ ३९ ॥

द्रौपदी के पाँचों पुत्र विश्वेदेव के अंश से उत्पन्न माने गये हैं। कुन्ती सिद्धि के अंश से, माद्री धृति के अंश से तथा गान्धारी मति के अंश से उत्पन्न हुई थीं ॥ ४० ॥ भगवान् कृष्ण की सभी पत्नियाँ देवताओं की रमणियों के अंश से उत्पन्न कही गयी हैं। इन्द्र के द्वारा भेजे हुए सब दैत्य धरातल पर आकर दुराचारी नरेश बने थे ॥ ४१ ॥ शिशुपाल को हिरण्यकशिपु का अंश कहा गया है। जरासन्ध विप्रचित्ति का तथा शल्य प्रह्लाद का अंशावतार था ॥ ४२ ॥

कालनेमि कंस हुआ तथा हयशिरा को केशी का जन्म प्राप्त हुआ। बलिपुत्र ककुद्मी अरिष्टासुर बना, जो गोकुल में मारा गया ॥ ४३ ॥ अनुह्लाद धृष्टकेतु बना और बाष्कल भगदत्त के रूप में उत्पन्न हुआ। लम्ब ने प्रलम्बासुर के रूप में जन्म लिया तथा खर धेनुकासुर हुआ ॥ ४४ ॥ अत्यन्त भयंकर वाराह और किशोर नामक दोनों दैत्य चाणूर और मुष्टिक नामक पहलवानों के रूप में प्रख्यात हुए ॥ ४५ ॥ दिति का पुत्र अरिष्टासुर कुवलयापीड नामक हाथी हुआ । बलि की पुत्री पूतना (बकी) राक्षसी बनी और उसका छोटा भाई बकासुर कहलाया ॥ ४६ ॥ द्रोणपुत्र महाबली अश्वत्थामा यम, रुद्र, काम और
क्रोध – इन चारों के अंश से उत्पन्न हुआ था ॥ ४७ ॥ पूर्वकाल में जो दैत्य तथा राक्षस थे, वे अपने-अपने अंशों से उत्पन्न हुए। इस प्रकार पृथ्वी का भार उतारने के लिये वे सभी देवताओं के अंश से उत्पन्न हुए ॥ ४८ ॥ हे राजन् ! पुराणों में इन देवताओं तथा असुरों के अंशावतारों का जो वर्णन किया गया है, वह सब मैंने आपसे कह दिया ॥ ४९ ॥

जब ब्रह्मा आदि देवता प्रार्थना करने के लिये भगवान् विष्णु के पास गये थे तब विष्णुजी ने उन्हें श्वेत तथा श्याम वर्णवाले दो केश प्रदान किये थे ॥ ५० ॥ तदनन्तर पृथ्वी का भार उतारने के लिये भगवान् कृष्ण श्यामवर्ण विष्णु का अंश लेकर तथा बलरामजी श्वेतवर्ण शेषनाग का अंश लेकर अवतरित हुए ॥ ५१ ॥ जो प्राणी भक्ति-भावना से इस अंशावतार की कथा का श्रवण करता है, वह समस्त पापों से मुक्त होकर अपने बन्धु बान्धवों के सहित आनन्दित रहता है ॥ ५२ ॥

॥ इस प्रकार अठारह हजार श्लोकों वाली श्रीमद्देवीभागवत महापुराण संहिता के अन्तर्गत चतुर्थ स्कन्ध का ‘देव-दानवों का अंशावतारवर्णन’ नामक बाईसवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ॥ २२ ॥

Content is available only for registered users. Please login or register

Please follow and like us:
Pin Share

Discover more from Vadicjagat

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.