July 24, 2015 | aspundir | Leave a comment श्रीसाबर-शक्ति-पाठ पूर्व-पीठिका ।। विनियोग ।। श्रीसाबर-शक्ति-पाठ का, भुजंग-प्रयात है छन्द । भारद्वाज शक्ति ऋषि, श्रीमहा-काली काल प्रचण्ड ।। ॐ क्रीं काली शरण-बीज, है वायु-तत्त्व प्रधान । कालि प्रत्यक्ष भोग-मोक्षदा, निश-दिन धरे जो ध्यान ।। ।। ध्यान ।। मेघ-वर्ण शशि मुकुट में, त्रिनयन पीताम्बर-धारी । मुक्त-केशी मद-उन्मत्त सितांगी, शत-दल-कमल-विहारी ।। गंगाधर ले सर्प हाथ में, सिद्धि हेतु श्री-सन्मुख नाचै । निरख ताण्डव छवि हँसत, कालिका ‘वरं ब्रूहि’ उवाचै ।। ।। पाठ-प्रार्थना ।। जय जय श्रीशिवानन्दनाथ ! भगवम्त भक्त-दुःख-हारी । करो स्वीकार साबर-शक्ति-पाठ, हे महा-काल-अवतारी ।। साबर-शक्ति-पाठ ॐ नमो जगदम्बा भवानी, करो सिद्ध कारज महरानी । त्रिभुवन महिमा तिहारी, जै श्रीजया गगन-विहारी ।। तेरे भक्त को दुःख न व्यापे, शाक्त से यम-राज भी काँपे । हनुमत वीर चले अगुवानी, बाँऐं भैरव है महारानी ।। पीछे वीरभद्र जब गरजें, दाँऐं नृसिंह वीर हैं हर्षे । कलि प्रत्यक्ष प्रभाव तुम्हारा, जो सुमरे दुःख विनसे सारा ।। रक्त-नैनन से प्रगटी ज्वाला, काँप उठे सुरासुर दिग्-पाला । त्राहि-त्राहि भव-दुःख-भञ्जन माता, कर जोर कहें सुर सिद्ध विधाता ।। जब-जब धर्म पर संकट आया, उठा त्रिशूल सब दुःख मिटाया । धर्म सनातन की माँ तुम रक्षक, पामर खल मानव दल भक्षक ।। भक्ति-पूर्ण हूँ शरण तुम्हारी, जय दुर्गे श्यामा शिव की प्यारी ।। श्रीरक्त-काली-समर्पणम् ।।१ ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ ॐ नमो श्रीतारिणी क्लेश-हारिणी, भक्त-रक्षक माँ गगन-विहारिणी । कर खप्पर-खड्ग मुण्ड की माला, पाश गदा है भुजा विशाला ।। मद-भरे नयन त्रिभुवन-जग मोहें, पाँयन सुवरन घुँघरु सोहें । राम-रुप तुमने जब धारा, भार भूमि सब असुर सँहारा ।। जल-संकट-हर्ता बुद्धि की दाता, जय जय श्रीताराम्बा माता । वाहन मयूर कर वीणा बाजे, साम-वेद सुन्दर ध्वनि गाजे ।। रुप कालिका घोर भयंकर, शाक्त जनों को लगता सुन्दर । मतवाली हो रण में धावे, दानव-दल तोहि देख घबरावे ।। वाहन सिंह चढ़ो अब श्यामा, द्वेष-संहार का बजे दमामा । उग्र प्यास भैरव की बुझाओ, कला-कोटि नर-मेध रचाओ ।। उग्र-तारा है नाम तिहारा, धूम-केतु बन प्रगटो तारा ।। संहार करो कु-सृष्टि को काली, जय जय श्रीदुर्गे डमरु वाली ।। नहीं आँच तेरे भक्त को आवे, मदान्ध खलों की सत्ता मिट जावे । जब भी पाप बढ़ा है जग में, काली-रुप हो मेटा क्षण में ।। भक्ति-पूर्ण कहता माँ तुझसे, पाप साम्राज्य उठा भू-तल से । ‘धर्म की जय’ हो गूँजे नारा, अखण्ड वर्ग धर्म रहे तुम्हारा ।। सत्य की शान्ति ब्रह्मचर्य व्रत, मातृ-बक्ति से रहे सदा रत । सहस्त्र-भुजे माँ दुर्ग-नन्दिनी, शिवा शाम्भवी दुष्ट-वर्षिणी ।। त्रिपुर-मालिनी हे विन्ध्य-वासिनी, भाल कुअंक विधि-लेख-नाशिनी । अष्ट-वीर योगिनी मंगल गावें, शक्र तुम्हारा चँवर डुलावें ।। मणि-द्वीप में राज भवानी, धन्य-धन्य माँ उमा महरानी । मुझे जगज्जये ! आशा तेरी, अष्ट-भुजे ! भाग्य बदल दे मेरा ।। जो सुमरे काली-तारा, पाप-त्रिताप भस्म हो सारा । चरण पाताल शीश कैलाशा, रुप विराट तोड़े यम-पाशा ।। अनन्त रुप युग-युग में धारे, भक्त-जनों के काज सँवारे । त्रिभुवन-दानी श्रीनाद-नादिनी, रवि-शत-कोटि-प्रभा-प्रकाशिनी ।। श्रीतारा-समर्पणम् ।।२ ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ ॐ नमो श्री षोडशी षण्मुख-जननि, सदा बसो मम हृदय वर-वर्णिनी । हूँ भक्ति-पूर्ण तेरा ही अंशी, वर्द्धित हो यह सत्कुल सद्-वंशी ।। श्रीयन्त्र-राज-स्मरण की शक्ति, चरण-कमल की माँ दे दो भक्ति । चक्र त्रिशूल खड्ग कमल धारे, घन गर्जन कर राक्षस मारे ।। अरुण वरण पद सुन्दर रुपा, ध्यावत जो नर होय सो भूपा । रवि-शशि लज्जित निरख पद-शोभा, सेवे शाक्त हृदय अति लोभा ।। त्रि-भुवन-सुन्दरी वयस किशोरा, मोहे शिव ज्यों चन्द्र-चकोरा । स्तन अमृत-रस-भण्डारा, पीवत होय बुद्दि-बल-भारा ।। जेहि पर कृपा तुम्हारी होई, स्तन-अमृत पावे सोई । करुणा-दृष्टि विलोके जोई, विश्व-विख्यात कवि सो होई ।। जो भगवती षोडशी को ध्यावे, अक्षय आयुष-यौवन पावे । निर्द्वन्द विमल गति मति दाता, जय श्री श्यामे ! त्रिभुवन भाग्य-विधाता ।। पंकज आभा सुगन्ध शरीरा, श्याम-गात विविध रंग चीरा । महीष-मर्द्दिनी अमित बल-शाली, जै-जै सती सिद्दिदा काली ।। आसव-पान-मत्त अट-पट वाणी, शाक्त-मण्डल को सुख-खानी । जल-थल-नभ किलोल करन्ती, जय भद्रकाली माँ मम दुख-हन्त्री ।। निर्धन सृष्टि-गत जो बालक तोरे, उनके शीघ्र बसा दे डेरे । संसार-इच्छुक जिनका मन, दे दो माँ उन्हें स्त्री-सुत-धन ।। हूँ भक्ति-पूर्ण तेरे चरणों का भौंरा, तुमको नैना देखत चहुँ ओरा । भोग-मोह से भक्त यह है न्यारा, मन चाहत तव चरण-अधारा ।। ब्रह्म-वादिनी ब्रह्म-ज्ञान दे, विमला विमल मति-विज्ञान दे । सावित्री सर्व-शोक-दुःख-हर्ता, मम जीवन-धन तू जग-भर्ता ।। मम मात-पिता गुरु-बन्धु तुम पद्मा, तू गौरी सत्-असत्-रुपा माँ । रत्न-द्वीप की तुम महारानी, सिद्धि ऐश्वर्य दो मुझे भवानी ।। जहाँ जब सुमरुँ प्रकट हो जाओ, उठा त्रिशूल सब विघ्न मिटाओ ।। अटल छत्र है राज तुम्हारा, जो सुमरे हो भव-सिन्धु के पारा ।। श्रीषोडशी-समर्पणम् ।।३ ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ ॐ नमो श्रीभुवनेश्री-परमेश्वरी, श्रीपार्वती माँ राजेश्वरी । श्रीकामदा काल-रात्रि एक-वीरा, तेज-स्वरुपिणी दुर्धर्ष-बल-धीरा ।। ऋण-नाश-कर्त्री श्री-शक्ति तू है, माँ-माँ सुत पुकारे तू किधर है ? सर्वार्थ-दात्री नाम तेरा जग में, मेरी बार कहाँ भूली हो मग में ।। पुत्र हो कुपुत्र पर कु-माता न होवे, श्रीगंगा की धारा ज्यों पाप धोवे । मैं हूँ तेरा-आशा है सिर्प तेरी, भला या बुरा हूँ-पर माँ हो तुम मेरी ।। खड्ग-खप्पर-पाश-माला हाथ में, चलता है भैरव तेरे साथ में । जिधर भी माँ नजर तूने फिराई, वहाँ ही बटुक जा करता सहाई ।। शाकम्भरी श्रीपूर्णा गिरि-नन्दिनी, परमार्थ-शीले माँ नित्यानन्दिनी । क्षीर-सिन्धु किनारे बजाती हो वेणु, श्रीजयाम्बे तू ही मेरी कामधेनु ।। दारिद्र-महिषासुर ने है घेरा, उठा त्रिशूल दुर्गे ! क्लेश मेटो मेरा । तू ही हरि-हर-विरञ्चि रुप शक्ति, जय श्रीश्यामा दे श्री-कीर्ति-भक्ति ।। राज-रानी तेरे सिवा कौन दाता, मिटा दे बुरा जो लिखा हो विधाता । तेरे ही प्रताप से कुबेर धनेश्वर कहलाया, जयति जै श्री भुवने माया ।। श्रीभुवनेश्वरी-समर्पणम् ।।४ ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ ॐ नमो श्रीधूमावती लीला-मयी, कलि प्रत्यक्ष तुम हो माहेश्वरी । जो चन्द्र-मण्डल में ध्यान धरते, पा कवित्व मोह-सिन्धु से तरते ।। षण्मास जो तेरा स्वरुप ध्याता, पुष्प-धन्वी भी उससे हार जाता । पद्म-मालाएँ तेरे चरणों में धरता, विश्व-मण्डल का होता वह भर्त्ता ।। तू ही अनेक रुपों से भासे, जो जान जाये-मृत्यु भी नासे । सिद्ध-विद्या तू अमृत-सवरुपी, जिसके हृदय में वही है देव-रुपी ।। भ्रामरी भद्रिका मंगल-करी, जयन्ती जया तुम दुःख-हरी। त्रिगुण से परे है धाम तेरा, सदा ही कल्याण करो माँ मेरा ।। तू ही पूर्णागिरीश्वरी कामेश्वरी, करुणा-मयी हो श्रीराज-राजेश्वरी । भूति-विभूति-दात्री श्री सती, भक्तों को देती हो श्री-कीर्ति-गती ।। दिव्य-दृष्टि सिद्धैश्वर्य-दाता, भक्ति-पूर्ण करुँ मैं प्रणाम माता । तेरा ही गुण गाता रहता हूँ शाक्त, दया-मयी चाहता हूँ तेरी भक्ति ।। बिगाड़ो या बनाओ अधिकार तुमको, न होगा जरा भी मलाल मुझको । किश्ती ये कर दी माँ तेरे हवाले, चाहे डुबा दे या चाहे बचा ले ।। तमन्नओं की धूप देता हूँ तुमको, तेरे नाम से है इश्क मुझको । तेरी याद में माँ दिल आँसू बहाता, हठी मुसाफिर राह चलता जाता ।। पीताम्बरा चाहे जितना सता, कभी-न-कभी पाऊँगा तेरा पता । अभयंकरी हे मणि-द्विप-रानी, तेरी सेवा में रत है सिद्ध-ज्ञानी ।। त्रिशुल खप्पर गले मुण्ड-माला, मुक्त-केशी त्रिनयन है विशाला । श्रीखेचरी गन्धर्व-लोक-दात्री, अष्टांग योग-वक्ता तू श्री-विधात्री ।। पीला कमल-सा चरण तेरा, बना है जीवन का आधार मेरा । तेरी लीला श्री तू ही जाने, भक्त तो यथा-शक्ति गुण बखाने ।। कुलाचार से योगी करते हैं पूजा, तू ही तो ब्रह्म न और दूजा । माँ-पुत्र सबसे बड़ा है नाता, पुत्र हो कु-पुत्र-न माता कु-माता ।। इतना ही बस-मैं जानता हूँ, मानो न मानो-मैं मानता हूँ। श्रीधूमावती-समर्पणम् ।।५ ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ ॐ नमो श्रीभैरवी भूतेश्वरी, आनन्द-दाता त्वं ज्ञाने-मातेश्वरी । श्री वीर-विद्या चतुर्भुजा सोहे, पात्र नाग शूल पाश शत्रु मोहे ।। श्मशाने निवासिनी श्यामा दिगम्बरा, माँ भेरवी भक्त-पालन-तत्परा । अस्थि-मुण्ड-माल त्रिनेत्र-कराला, चरणों में सोहत गुञ्ज-माला ।। मद-मत्त हो तुम खिलखिलाती, आ-सेतु पृथ्वी काँप जाती । बिगड़ी को बनाता है नाम तेरा, तव पदाम्बुज में लिपटा रहे मन मेरा ।। संग्राम में जीत पाए, वही, जिस पर माँ ! तेरी छाया रही । जो हुआ जग में तेरे सहारे, उसका यम भी क्या बिगाड़े ।। मृत्युञ्जयी तू हृदय में जिसके, काल भी घबराता है उससे । मारकण्डे पर की तूने मेहर, हो गया उसी क्षण माँ ! वो अमर ।। हनुमान ने जब स्तुति गाई, पा आशिर्वाद जा लंका जलाई । मेघनाद ने जब तुझे ध्याया, इन्द्र को जा बाँध लाया ।। श्रीत्रिपुरा-चक्र-यज्ञ राम ने रचाया, तेरी कृपा से ही रावण मिटाया । श्री-तत्त्वागम जो नित्य ध्याता, कलि में वही भोग-मोक्ष पाता ।। विन्दु-शक्ति शिव पृथ्वी को, भैरव-रुप हो पावे । पाप-पुण्य से निर्द्वन्द होवे, नित्यानन्द-पद जावे ।। चक्र-योग का विषय है, मैथुन पात्र आनन्द । जो समझे शिव-रुप वे, नहीं तो पामर-वृन्द ।। विद्या-साधन अगम है, चलना तलवार की धार । गुरु-कृपा से सफलता, वरना टुकड़े होय हजार ।। दिगम्बरा विपरीत-रति ध्यावे, या हो अमर या नरक में जावे । कुल-पथ अमृत-मय धारा, जिसमें कापालिक करें विहारा ।। भैरवी-भूतनाथ जपता जो नर, मन-वाञ्छित सिद्धि हो सत्वर । श्रीमहा-भैरवी-समर्पणम् ।।६ ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ ॐ नमो श्रीबगलामुखी-स्वरुपा, शत्रु-संहार करो देवि ! अनूपा । चरण तेरे कोमल कमल-जैसे, जिसके हृदय में वही देव जैसे ।। दुःख-शुम्भ ने आ घेरा है मुझको, मिटा क्लेश मैया भक्त कहे तुझको । पीताम्बरा श्रीअपराजिता तू कहाई, अभी भक्त सुमरे तू करती सहाई ।। गदा-चक्र-पाश-शंख हाथों सोहे, चतुर्भुज रुप तेरा शिव को मोहे । योग-दीक्षा-हीन को न होता ज्ञान तेरा । पूर्णाभिषिक्त भी न जान पाएँ धाम तेरा ।। जिस पर तेरी कृपा हो वही गुण-गान करता । दम्भी तन्त्र-साधक क्लेशित हो के मरता ।। तेरे अनन्त रुपों ने की भक्त-रक्षा । तेरे वीर-भद्र सुत मने मारा था दक्षा ।। कलि में महिमा-मयि ! व्यर्थ है कर्म सारे । भक्ति-पूर्ण हो जै-जै जयाम्बा पुकारे ।। तम-प्रबल युग में भ्रमित है कर्म-काण्डी । शुष्क वेदान्त छाँटे बक-वत् त्रि-दण्डी ।। वाक्-मनो-काय-निग्रह कोई न करते । गृह-सदृश पलँग पर फल-फूल चरते ।। जिधर देखा उधर ही सभी ब्रह्म-वक्ता । उपासना बिन स्वरुप-ज्ञान कैसा ।। आहार-निद्रा-पटु पृथ्वी-जल-चारी । कैसे हो माता सहस्त्रार-विहारी ? कहते कपिल सहस्त्रार हो आए । ईश्वर-सम शक्ति-प्रतिभा को पाए ।। नाभि-चक्र तक योगी जाता, अष्ट-सिद्धि-गुण प्रगट हो जाता । अनाहत-प्रकाश प्रत्यक्ष हो जाए, सहस्त्र-वर्ष आयु वह पाए ।। मैं तो स्वाधीष्ठान तक आया, अति अद्भुत देखी तेरी माया । मान-सरोवर त्रिकोण दिव्य सुन्दर, श्रीधाता-शारदा बैठे हैं कमल पर ।। भुजंग स्वर्ण-मयी महा-काम-स्वरुपा, नत-मस्तक हो पूजत सुर-भूपा । गायत्री प्रकृति श्री-यन्त्र मनोहर, श्रीशुभ्र-ज्योत्स्ने विश्व-मोहन-कर ।। राज-राजेश्वरी अमित बल-शाली, सर्वार्थ-पूर्ण-करी श्री-हंस-काली । श्री दिव्य सिद्ध-धाम गुरु-रुप धरी, जै श्रीबगला शाक्त-मनोरथ पूर्ण करी ।। जिह्वा पकड़कर गदा उठाए, पाश डाल शत्रु को मिटाए । उन्मत्त नेत्र बक-वाहन सुहाए, भक्त-रक्षा हेतु शीघ्र ही धाए ।। सिद्ध-विद्या श्री स्तम्भनी मंगला, करो त्राण मम भीमा चञ्चला । त्र्यक्षरी मन्त्र-मूर्ति माँ माहेश्वरी, कलि-प्रत्यक्ष फलदा तू परमेश्वरी ।। भुक्ति-मुक्तिदा भक्त-शरण्ये, नमामि भजामि श्रीगिरि-राज-कन्ये ! श्रीचक्र-राज-शक्ति तुम कहाती, विधि का लिखा कु-अक्षर मिटाती ।। सिद्ध-भक्ति-पूर्ण को है विश्वास तेरा, ब्रह्मास्त्र-मन्त्र-रुप है आधार मेरा । लोक-लाज-प्रपञ्च-कर्म त्यागा, श्रीबगला-चरण-कमल मन लागा ।। श्रीबगलामुखी समर्पणम् ।।७ ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ ॐ नमो श्रित्रिपुर-सुन्दरी-चरणं, ब्रह्मादि-सेवित दारिद्रय-हरणम् । बुद्ध-देव-वन्दित दया-सागरी, वज्र-यान-वर्ग-पूज्या श्रीकामेश्वरी ।। अमृत-पात्र-पद्म-इक्ष-धनुर्बाण-हस्ता, ताम्बूल-पूरित-मुखी श्रीस्वानन्द-मस्ता । तृतीयावरण में बाला कहाई, शरण मैं तेरी-करी माँ सहाई ।। त्रिपथगा त्रिवर्णाराध्य शक्ति, श्री-सुन्दरी दे पद-कमल-भक्ति । क्रम-दीक्षाचार-वर्णित श्रीभवानी, हे कु-रंग नेत्री ! तू सर्व-सुख-दानी ।। पद्मावती सर्वाकर्षिणी कुरुकुल्ला, देखता हूँ तू ही है अहिल्या । कामेश्वर-प्रिया आद्या श्री-प्रसूता, पालन करती है तू विश्व-भूता ।। श्रीशताक्षरी दिव्य-कादि-हादि-मूर्ति, रहस्यार्थ-पूर्णे ! तुम हो सर्व-पूर्ति । अभिनव गुप्त सु-पूजित माहेश्वरी, सिद्ध नागार्जुन-वन्दय वागेश्वरी ।। धाता हरि रुद्र शासन-करी, जयति जय श्रीअभयंकरी । पञ्च-प्रेतासन-आरुढ़ा तू अम्बा, बिन्दु-मालिनी जय-जय सिद्धाम्बा ।। कर्पूर-गौर-वर्णा श्रीकाकिनी, श्रीचक्रेश्वरी मदनातुरा लाकिनी । श्रीललिता लक्ष्मी काम-बीज-रुपा, करे प्रदक्षिणा ऋषि-देव-यक्ष-भूपा ।। राज-राजेश्वरि तू ही अनन्पूर्णा, श्रीपीठाधीश्वरी सर्वाभीष्ट-तूर्णा । अर्बुदाचल में अम्बिका कहाई, अष्ट-भुजा सिंह-वाहना कहाई ।। नील-वस्त्र-धारी सु-कुमारी, जयति जयाज्ञा-चक्र-विहारी । अनंग-मेखला है तेरा नाम, श्रीचक्र-राज प्रतिबिम्ब-मय धाम ।। तू धरा धैर्य धर्म कर्म स्मृति, भक्तों को देती भोग औ सद्-गति । देखे चरण तेरे परमेश्वरी, हो गया तभी मुक्त श्रीमाहेश्वरी ।। पञ्चानन-प्रिया दुर्गमार्थ-दात्री, दुर्गतोद्धारिणी तुम हो विधात्री । वारुणी-प्रिया मद-मत्त-हासिनी, जय हेम-कूट-शिखरे विलासिनी ।। चन्द्र-बिम्बे प्रभा तू चतुर्वग-फलदा, एक-वीरा अपर्णा श्रीकामदा । महा-विद्या स्वम्भू श्रीसुधा, त्रिभुवन-वशंकरी हे रत्न-सुविधा ।। माया-नृत्य-प्रवीणा गंगे-नर्मदे, तू ही है सरस्वती विप्र-वरदे । काव्य-छन्द-गति ऋद्धि सन्मति, शाक्त-सेवित श्रीवामा त्रिमूर्ति ।। रत्न-हार-भूषित नित्य यौवन-जया, भक्त को सदा दो अभय विजया । मधुमती-कला श्रीपार्वती सती, रहूँ तेरे प्रताप से मैं सत्य-व्रती ।। निर्मला राधिका तू ही कालिका, है तेरा ही रुप तो हर-बालिका । कभी न विचलित हो मति मेरी, रहे सदा मुझ पर कृपा-दृष्टि तेरी ।। श्रीत्रिपुराम्बा समर्पणम् ।।८ ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ नमो देवी ! मातंगी-पादारविन्दा, रक्ष-यक्ष-सेवित महा कवीन्द्रा । चतुर्भुजा-चण्ड-क्लेश-पाप-हन्त्री, भक्त-जनों की सदा जय-करन्ति ।। शुक-क्रीड़ा-मग्न स्मित-मुखी, शीघ्र तेरा भक्त होता सुखी । चतुविंशति-दल पर करे निवासा, धरे ध्यान होते छिन्न सभी पाशा ।। नाद-गर्भा नारायण-पूजिता शुभा, मंगला भद्रा भक्त-कल्प-सुधा । रामेश्वरी रुद्र-प्रिया श्रीरागिनी, स्वर्ण-द्युति-कुञ्जिका विन्ध्य-वासिनी ।। हेम-वज्र-माला-धारिणी श्रीरति, तेरे प्रताप से होऊँ पृथ्वी-पति । संग्राम-क्षेत्र में तू रमा करती, प्रगट हो भक्तों के संकट हरती ।। शार्दूल-वाहना गले शंख-माला, प्रज्वलित-नेत्रा पीती हो हाला । गन्धर्व-बालाएँ करती गुण-गान, तेरे रहे सहायक सर्वदा माँ मेरे ।। सूर्य-चन्द्र-वह्नि-रुप नेत्र तेरे, रहे सहायक सर्वदा माँ मेरे । जब भी सुमरुँ हरो कष्ट मेरा, श्री जयाम्बे मुझे तो आधार तेरा ।। हे नाग-लोक-पूज्या प्राण-दाता, भक्यि-पूर्वक करता नमस्कार माता । श्रीमहा-मातंगी समर्पणम् ।।९ ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ ॐ विष्णु-प्रिया दिग्दलस्था नमो, विश्वाधार-जननि कमलायै नमो । बीजाक्षरों की तुम्हीं सृष्टि करती, चरण-शरण भक्त के क्लेश हरती ।। सिन्धु-कन्या माया-बीज-काया, मोह-पाश से जग को भ्रमाया । योगी भी हुए नहैं हैरान तुमसे, कराओ अन्तर्बहिर्याग नित्य मुझसे ।। न करता हूँ जाप-पूजा मैं तेरी, इतना ही जानता हूँ माँ तू मेरी । पद्म-चक्र-शंख-मधु-पात्र धारे, विकट वीर योद्धा तूने सँहारे ।। श्रीअपराजिता वैष्णवी नाम तेरा, माँ एकाक्षरी तू आधार मेरा । तू ही गुरु-गोविन्द करुणा-मयी, जै जै श्रीशिवानन्दनाथ-लीला-मयी ।। ऐरावत है शुण्डाभिषेक करते, दे प्रत्यक्ष दरशन हे विश्व-भर्ते । योग-भोगदा रमा विष्णु-रुपा, मेरी कामधेनु काम-स्वरुपा ।। सिद्धैशवर्य-दात्री हे शेष-शायी, करे दास बिनती करो माँ सहाई । पद्मा चञ्चला श्रीलक्ष्मी कहाई, पीताम्बरा तू गरुड़-वाहना सुहाई ।। त्रिलोक-मोहन-करी कामिनी, जयति जय श्रीहरि-भामिनी । रुक्मिणी राज्ञी अर्थ-क्लेश-त्राता, जय श्रीधन-दात्री विश्व-माता ।। महा-लक्ष्मी लक्ष्मणा श्यामलांगी, पद्म-गन्धा श्री श्रीकोमलांगी । कालिन्दी कमले कर्म-दोष-हन्त्री, सुदर्शनीया ग्रीवा में माला वैजन्ती ।। श्रीमहा-लक्ष्मी कमला समर्पणम् ।।१० ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ गदा-खड्ग-खेट-खप्पर-नाग-चक्र-शूल-शंख-पात्र हाथों में सोहे । जय महिषासुर-मर्दिनि चण्डिके, अष्टादश-भुजे विश्वम्भर-मन मोहे ।। शाकम्भरी दुर्गा दुर्गमा कहलाती, भक्त-रक्षा हित प्रगट तू हो जाती । अमृत-दायिनी श्रीश्यामा सहोदरी, विद्युत्प्रभे तू सर्वार्थ-पूर्ण-करी ।। श्रीइन्द्राक्षी मणि-द्वीपे राज-रानी, जयति जय त्रिभुवन-विख्यात दानी । सर्व-मुद्रा-मयी खेचरी भूचरी, कुलजा कौलनी माधवी चाचरी ।। अगोचरी हो तुम कुल-कमलिनी, सहस्त्रार-शक्ति अर्द्ध-नारीश्वरी । इच्छा-क्रिया-ज्ञान-मूर्ति मातेश्वरी, श्रीविद्या तत्त्व-माता परमेश्वरी ।। भवानी भग-मालिनी हेम-गर्भा परा, सदसत अद्वैत-जननि ऋतम्भरा । अहंकार-प्रकृति-स्व-स्वरुप-यजना, ब्रह्म-जननि वेद-माता गगन-वसना ।। चतुष्षष्टि-तन्त्रागम-यामला, इनसे भी परे हो तुम चित्-कला । मातृका वह्निरन्तर्याग-माया, सिद्ध-सनकादि ने भी न भेद पाया ।। चक्र-वेध से भी परे है धाम तेरा, नम्र-दिव्य-भावी हृदय में वास तेरा । मैं दीन भक्त तुम्हें कैसे मनाऊँ, दे चरण-भक्ति सदा गुण गाऊँ ।। श्रीविन्ध्येश्वरी अजा वर-वर्णिनी, तैजस-तत्त्व-शयामे तू अति गर्विणी । आद्या अम्बिका तू है श्रीसुन्दरी, चन्द्र-भगिनी हेम-वदना किन्नरी ।। तू ही तू है माँ व्याप्त जग में, सर्वत्र तुमको ही देखता हूँ मग में । पाप-पुण्य से परे मैं हूँ तेरा, श्रीजयाम्बे मां ! तू मेरी मैं तेरा ।। महा-काल के वचन से भूतल पर आया, तु शरीरी मैं हूँ तेरी छाया । तेरे ही बल से साबरी छन्द कहता, सर्व-शक्ति-दायी शत्रु-वंश-हन्ता ।। तीन मास ध्यावे दर्शन पावे, वाद-सम्वाद में सुर-गुरु को हरावे । साबरी-शक्ति-पाठ-वशी सुरेशा, सर्व-सिद्धि पावे साक्षी हो महेशा ।। त्रिवर्ण के ही लिए साबरी यह, म्लेच्छ जो पढ़े तो निर्वश हो वह । साबरी अधीन है वीर हनुमान, उठो-उठो सिया-राम की आन ।। अञ्जनि-सुत सुग्रीव के संगी, करो काम मेरा वीर बजरंगी । तीन रात्रि में सिद्ध कर कामा, शपथ तोहे रघुपति की बल-धामा ।। अष्ट-भैरव रक्षण करे तन का, वीरभद्र विकास करे मन का । नृसिंह वीर ! मम नेत्रों में रहना, जहाँ पुकारुँ सम्मोहित करना ।। सिद्ध साबरी है श्यामा का बाण, रुद्र-पाठ हरे शत्रु का प्राण । निशा साबरी श्मशान में गावे, नक्षत्र-पाठ जाग्रत हो जावे ।। वर्ष एक जो पढ़े तट गंगा, अर्द्ध-रात्रि में होकर असंगा । ताके संग रहें भैरव-नाथा, राजा-प्रजा झुकावें माथा ।। बारा वर्ष रटे साबरी हो ज्ञानी, सदा संग में रहें भवानी । हो इच्छा-जीवी यो-गति-ज्ञाना, निष्प्रयास प्राप्त हों सकल विज्ञाना ।। कहे सिद्धि-राज भक्त सुनो माँ काली ! शाबरी-शक्ति तुम्हीं हो कराली । शाबरी-पाठ निन्दा जो करे, होय निर्वश तन कीड़े पड़े ।। शाक्त-रक्षिणी मम शत्रु-भक्षिणी, श्रीरक्त-कालि ! तव भय-दुःख-हरिणी । सिद्धि-भक्त यह चरणों में तेरे, ‘कल्याण करो मम’ बार-बार टेरे ।। श्री चण्डी समर्पणम् ।।११ ।।श्रीसाबर-शक्ति-पाठं सम्पूर्णं, शुभं भुयात्।। उक्त श्री ‘साबर-शक्ति-पाठ’ के रचियता ‘अनन्त-श्रीविभूषित-श्रीदिव्येश्वर योगिराज’ श्री शक्तिदत्त शिवेन्द्राचार्य नामक कोई महात्मा रहे है। उनके उक्त पाठ की प्रत्येक पंक्ति रहस्य-मयी है। पूर्ण श्रद्धा-सहित पाठ करने वाले को सफलता निश्चित रुप से मिलती है, ऐसी मान्यता है। किसी कामना से इस पाठ का प्रयोग करने से पहले तीन रात्रियों में लगातार इस पाठ की १११ आवृत्तियाँ ‘अखण्ड-दीप-ज्योति’ के समक्ष बैठकर कर लेनी चाहिए। तदनन्तर निम्न प्रयोग-विधि के अनुसार निर्दिष्ट संख्या में निर्दिष्ट काल में अभीष्ट कामना की सिद्धि मिल सकेगी। प्रयोग-विधिः- १॰ लक्ष्मी-प्राप्ति हेतु नैऋत्य-मुख बैठकर दो पाठ नित्य करें। २॰ सन्तान-सुख-प्राप्ति हेतु पश्चिम-मुख बैठकर पाँच पाठ तीन मास तक करें। ३॰ शत्रु-बाधा-निवारण हेतु उत्तर-मुख बैठकर तीन दिन सांय-काल ग्यारह पाठ करें। ४॰ विद्या-प्राप्ति एवं परीक्षा उत्तीर्ण करने हेतु पूर्व-मुख बैठकर तीन मास तक ३ पाठ करें। ५॰ घोर आपत्ति और राज-दण्ड-भय को दूर करने के लिए मध्य-रात्रि में नौ दिनों तक २१ पाठ करें। ६॰ असाध्य रोग को दूर करने के लिए सोमवार को एक पाठ, मंगलवार को ३, शुक्रवार को २ तथा शनिवार को ९ पाठ करें। ७॰ नौकरी में उन्नति और व्यापार में लाभ पाने के लिए एक पाठ सुबह तथा दो पाठ रात्रि में एक मास तक करें। ८॰ देवता के साक्षात्कार के लिए चतुर्दशी के दिन रात्रि में सुगन्धित धूप एवं अखण्ड दीप के सहित १०० पाठ करें। ९॰ स्वप्न में प्रश्नोत्तर, भविष्य जानने के लिए रात्रि में उत्तर-मुख बैठकर ९ पाठ करने से उसी रात्रि में स्वप्न में उत्तर मिलेगा। १०॰ विपरीत ग्रह-दशा और दैवी-विघ्न की निवृत्ति हेतु नित्य एक पाठ सदा श्रद्धा से करें। Related