September 23, 2015 | aspundir | Leave a comment सन्तान-प्राप्ति के लिए अचूक प्रयोग-वंशाख्य कवच अरुण उवाच-भगवन्, देव-देवेश! कृपया त्वं जगत्-प्रभो! वंशाख्य-कवचं ब्रूहि, मह्यं शिष्याम तेऽनघ! यस्य प्रभावाद् देवेश! वंशच्छेदो न जायते। श्रीसूर्य उवाच- श्रृणु वत्स! प्रवक्ष्यामि, वंशाख्य-कवचं शुभं। सन्तान-वृद्धिर्यात् पाठात्, गर्भ-रक्षा सदा नृणां।। वन्ध्याऽपि लभते पुत्रं, काक-वन्ध्या सुतैर्युता। मृत-गर्भा स-वत्सा स्यात्, स्रवद्-गर्भा स्थिर-प्रजा।। अपुष्पा पुष्पिणी यस्य, धारणं च सुख-प्रसुः। कन्या प्रजा-पुत्रिणी स्यात्, येन स्तोत्र-प्रभावतः। भूत-प्रेतादि या बाधा, बाधा शत्रु-कृताश्च या।। भस्मी-भवन्ति सर्वास्ताः, कवचस्य प्रभावतः। सर्वे रोगाः विनश्यन्ति, सर्वे बाधा ग्रहाश्च ये।। ।।मूल-पाठ।। विनियोगः- ॐ अस्य श्रीवंशाख्य-कवच-माला-मन्त्रस्य ब्रह्मा ऋषिः। अनुष्टुप् छन्दः। श्रीसूर्यो देवता। वंश-वृद्धयर्थे जपे विनियोगः। ऋष्यादि-न्यास- ब्रह्मा-ऋषये नमः शिरसि। अनुष्टुप्-छन्दसे नमः मुखे। श्रीसूर्य-देवतायै नमः हृदि। वंश-वृद्धयर्थे विनियोगाय नमः सर्वांगे। कवच- पूर्वे रक्षतु वाराही, चाग्नेयामम्बिका स्वयम्। दक्षिणे चण्डिका रक्षेत्, नैऋत्यां शव-वाहिनी। पश्चिमे कौमुदा रक्षेत्, वायाव्यां च महेश्वरी। उत्तरे वैष्णवी रक्षेत्, ईशाने सिंह-वाहिनी।। ऊर्घ्वं तु शारदा रक्षेत्, अधो रक्षतु पार्वती। शाकम्भरी शिरो रक्षेत्, मुखं रक्षतु भैरवी।। कण्ठं रक्षतु चामुण्डा, हृदयं रक्षेच्छिवा। ईशानी च भुजौ रक्षेत्, कुक्षौ नाभिं च कालिका।। अपर्णा उदरं रक्षेत्, कटि-वस्ती शिव-प्रिया। उरु रक्षतु वाराही, जाया जानु-द्वयं तथा।। गुल्फौ पादौ सदा रक्षेत्, ब्रह्माणी परमेश्वरी। सर्वांगानि सदा रक्षेत्, दुर्गा दुर्गार्ति-नाशिनी।। मन्त्र- “नमो देव्यै महा-देव्यै सततं नमः। पुत्रं सौख्यं देहि देहि, गर्भ रक्षा कुरुष्व नः।। ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं श्रीं श्रीं श्रीं ऐं ऐं ऐं महाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वती-रुपायै नव-कोटि-मुर्त्त्यै सुर्गा-देव्यै नमः। ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं दुर्गे दुर्गार्ति-नाशिनी! सन्तान-सौख्यं देहि देहि, वन्ध्यत्वं मृत वत्सत्वं हा हा गर्भ रक्षां कुरु कुरु, सकलां बाधां कुलजां वासजां कृतामकृतां च नाशय नाशय, सर्व-गात्राणि रक्ष-रक्ष, गर्भ पोषय पोष्य, सर्वं रोगं शोषय, आशु दीर्घायु-पुत्रं देहि देहि स्वाहा।।” प्रयोग विधिः- उक्त वंशाख्य कवच का प्रयोग सन्तान प्राप्ति के लिए किया जाता है। प्रयोग के समय सन्तान की इच्छा रखनेवाली स्त्री का ‘ऋतु-काल’ होना चाहिए। ‘ऋतु-स्नान’ के दिन ही रात्रि-काल में यह प्रयोग किया जाता है। सर्व-प्रथम ‘पीपल’ के सात पत्तों पर अनार की कलम द्वारा ‘रक्त-चन्दन’ से मन्त्र को लिखें। फिर दो छटाँक सरसों के तेल में उक्त सात पीपल के पत्तों को धो डाले। ऐसा करने से तेल में मन्त्र का प्रभाव चला जाएगा। अब पुनः ‘पीपल’ के सात पत्तों पर अनार की कलम से मन्त्र को लिखें और उन पत्तों को स्नान करने के जल में डाल दें। इसके बाद रात्रि-काल में वह स्त्री किसी निर्जन स्थान में जाकर उस सरसों के तेल को अपने पूरे शरीर में लगा ले। शरीर का कोई भी भाग तेल लगने से नहीं छूटना चाहिए। तेल लगाने के बाद उसी स्थान में स्नान करने वाले जल से, जिसमें पीपल के पत्ते डाले गए हैं, स्नान कर लें। जो भी पुराने वस्त्र हों, उन्हें वहीं उसी स्थान में छोड़ दें। वहाँ से कुछ दूर हट कर नये वस्त्र पहन लें। तब घर वापस आ जाए। घर में पुरोहित, ब्राह्मण या कोई अभिभावक उक्त मन्त्र से १०८ बार कुश के द्वारा उस स्त्री को झाड़े। झाड़ने के बाद उस स्त्री के शरीर की नाप के बराबर लाल धागा ले और उक्त मन्त्र को पढ़कर उस धागे में गाँठ बाँधकर उसकी कमर में बाँध दे। उस रात्रि पुरुष के साथ प्रसंग आवश्यक है। Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe