सिद्ध सारस्वत स्तोत्र


।। श्रीसरस्वत्युवाच ।।

वर्तते निर्मलं ज्ञानं, कुमति-ध्वंस-कारकं ।
स्तोत्रेणानेन यो भक्तया, मां स्तुवति सदा नरः ।।
त्रि-सन्ध्यं प्रयतो भूत्वा, यः स्तुतिं पठते तथा ।
तस्य कण्ठे सदा वासं, करिष्यासि न संशयः ।।
सिद्ध-सारस्वतं नाम, स्तोत्रं वक्ष्येऽहमुत्तमम् ।।

जो व्यक्ति सदैव इस कुमति (दुर्बुद्धि) नाशक स्तोत्र से मेरी स्तुति करता है, उसे निर्मल ज्ञान की प्राप्ति होती है । जो तीनों सन्ध्याओं में पवित्रता-पूर्वक इस स्तुति का पाठ करता है, मैं सदा उसके कण्ठ में निवास करती हूँ, इसमें संशय नहीं है । मैं “सिद्ध-सारस्वत” नामक उत्तम स्तोत्र को कहती हूँ –
उमा च भारती भद्रा, वाणी च विजया जया ।
वाणी सर्व-गता गौरी, कामाक्षी कमल-प्रिया ।।
सरस्वती च कमला, मातंगी चेतना शिवा ।
क्षेमंकरी शिवानन्दी, कुण्डली वैष्णवी तथा ।।
ऐन्द्री मधु-मती लक्ष्मीर्गिरिजा शाम्भवाम्बिका ।
तारा पद्मावती हंसा, पद्म-वासा मनोन्मनी ।।
अपर्णा ललिता देवी, कौमारी कबरी तथा ।
शाम्भवी सुमुखी नेत्री, त्रिनेत्री विश्व-रुपिणी ।।
आर्या मृडानी ह्रीं-कारी, साधनी सुमनाश्च हि ।
सूक्ष्मा पराऽपरा कार्त-स्वर-वती हरि-प्रिया ।।
ज्वाला मालिनिका चर्चा, कन्या च कमलासना ।
महा-लक्ष्मीर्महा-सिद्धिः स्वधा स्वाहा सुधामयी ।।
त्रिलोक-पाविनी भर्त्री, त्रिसन्ध्या त्रिपुरा त्रयी ।
त्रिशक्तिस्त्रिपुरा दुर्गा, ब्राह्मी त्रैलोक्यमोहिनी ।।
त्रिपुष्करा त्रिवर्गदा, त्रिवर्णा त्रिस्वधा-मयी ।
त्रिगुणा निर्गुणा नित्या, निर्विकारा निरञ्जना ।।
कामाक्षी कामिनी कान्ता, कामदा कल-हंसगा ।
सहजा कालका प्रजा, रमा मङ्ल-सुन्दरी ।।
वाग्-विलासा विशालाक्षी, सर्व-विद्या सुमङ्गला ।
काली महेश्वरी चैव, भैरवी भुवनेश्वरी ।।
वाग्-वीजा च ब्रह्मात्मजा, शारदा कृष्ण-पूजिता ।
जगन्माता पार्वती च, वाराही ब्रह्म-रुपिणी ।।
कामाख्या ब्रह्म-वारिणी, वाग्-देवी वरदाऽम्बिका ।

देवताओं के द्वारा एक सौ आठ नामों से पूजिता वाग्-देवी (सरस्वती) का जो व्यक्ति तीनों सन्ध्याओं में कीर्तन करता है, वह सभी सिद्धियाँ पाता है ।
यह स्तोत्र आयु, आरोग्य, ऐश्वर्य, सुख-सम्पत्ति को बढ़ाने वाला, षट्-कर्मों की सिद्धि देनेवाला और तीनों लोकों को मोहित करने वाला है ।
जो इसका नित्य पाठ करता है – स्वयं बृहस्पति भी उसके कथन के विपरित कुछ कहने में समर्थ नहीं होते, अन्य लोगों की क्या कथा ! अर्थात् कोई भी साधक के कथन के विपरित कुछ नहीं कह सकता ।
सिद्ध-सारस्वतं चैव, भवेद् विषय-नाशनम् ।।
साधक को सभी विषयों (ज्ञानेन्द्रियों द्वारा प्राप्त आनन्द, लौकिक, पदार्थ, मैथुन सम्बन्धी उपभोग आदि) का नाश करने वाले निर्मल ज्ञान की प्राप्ति होती है ।

।। इति सिद्ध-सारस्वत नाम सरस्वत्यष्टोत्तर-शत-नाम-स्तोत्रम् ।।

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