सर्वाभीष्टप्रद-प्रयोग
‘कुमारी-पूजन’ का प्रस्तुत प्रयोग अनुभूत सिद्ध प्रयोग है। सभी प्रकार की कामनाओं की पूर्णता इस ‘प्रयोग’ द्वारा सम्भव है।
१॰ पहले संकल्प करे। यथा- ॐ तत् सत्। अद्यैतस्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय प्रहरार्धे, श्री श्वेत-वाराह-कल्पे, जम्बु-द्वीपे, भरत-खण्डे, अमुक-प्रदेशान्तर्गते, अमुक पुण्य-क्षेत्रे, कलियुगे, कलि-प्रथम-चरणे, अमुक-नाम-सम्वत्सरे, अमुक-मासे, अमुक-पक्षे, अमुक-तिथौ, अमुक-वासरे, अमुक-गोत्रोत्पन्नो, अमुक-नाम-शर्माऽहं (वर्माऽहं, दासोऽहं वा), सर्वापत् शान्ति-पूर्वक ममाभीष्ट-सिद्धये, गणेश-वटुकादि-सहितां कुमारी-पूजां करिष्ये।

२॰ फिर ‘गं गणपतये नमः’ मन्त्र से भगवान् गणेश का पूजन करे। यथा- १॰ गं गणपतये नमः पादयोः पाद्यं समर्पयामि। २॰ गं गणपतये नमः शिरसि अर्घ्यं समर्पयामि। ३॰ गं गणपतये नमः गन्धाक्षतं समर्पयामि। ४॰ गं गणपतये नमः पुष्पं समर्पयामि। ५॰ गं गणपतये नमः धूपं घ्रापयामि। ६॰ गं गणपतये नमः दीपं दर्शयामि। ७॰ गं गणपतये नमः नैवेद्यं समर्पयामि। ८॰ गं गणपतये नमः आचमनीयं समर्पयामि। ९॰ गं गणपतये नमः ताम्बूलं समर्पयामि। १०॰ गं गणपतये नमः दक्षिणां समर्पयामि।

३॰ भगवान् गणेश का पूजन करने के पश्चात् “ॐ वं वटुकाय नमः” मन्त्र से भगवान् वटुक का पूजन करे। यथा- १॰ ॐ वं वटुकाय नमः पादयोः पाद्यं समर्पयामि। २॰ ॐ वं वटुकाय नमः शिरसि अर्घ्यं समर्पयामि। ३॰ ॐ वं वटुकाय नमः गन्धाक्षतं समर्पयामि। ४॰ ॐ वं वटुकाय नमः पुष्पं समर्पयामि। ५॰ ॐ वं वटुकाय नमः धूपं घ्रापयामि। ६॰ ॐ वं वटुकाय नमः दीपं दर्शयामि। ७॰ ॐ वं वटुकाय नमः नैवेद्यं समर्पयामि। ८॰ ॐ वं वटुकाय नमः आचमनीयं समर्पयामि। ९॰ ॐ वं वटुकाय नमः ताम्बूलं समर्पयामि। १०॰ ॐ वं वटुकाय नमः दक्षिणां समर्पयामि।

४॰ तब ‘कुमारी-पूजन’ करे। कुमारी के पैर धोकर उसे प्रेम-पूर्वक अपने सम्मुख आसन पर बैठाए। फिर दोनों हाथ जोड़कर भक्ति-पूर्वक ध्यान करे। यथा-
बाल-रुपां च त्रैलोक्य-सुन्दरीं वर-वर्णिनीम्।
नानालंकार-नम्रांगीं, भद्र-विद्या-प्रकाशिनीम्।।
चारु-हास्यां महाऽऽनन्द-हृदयां चिन्तये शुभाम्।।

अर्थात् बाल-स्वरुपवाली, त्रिलोक-सुन्दरी, श्रेष्ठ वर्णवाली, विविध प्रकार के आभूषणों से सुसज्जित होने से विनम्र शरीरवाली, कल्याण-कारिणी विद्या को प्रकट करनेवाली, सुन्दर हँसी हँसनेवाली, परमानन्द से युक्त हृदयवाली कल्याणकारिणी कुमारी देवी का मैं ध्यान करता हूँ।

५॰ ध्यान करने के बाद निम्नलिखित मन्त्र श्रद्धापूर्वक पढ़कर आवाहन करे-
“ॐ मन्त्राक्षर-मयीं लक्ष्मीं, मातृणां रुप-धारिणीम्।
नव-दुर्गात्मिकां साक्षात्, कन्यामावाहयाम्यहम्।।”

अर्थात् मन्त्राक्षरों से संयुक्ता, लक्ष्मी-स्वरुपा, मातृकाओं का रुप धारण करने वाली, साक्षात् नव-दुर्गा-स्वरुपा कन्या देवी का मैं आवाहन करता हूँ।
आवाहन करने के बाद, सम्मुख उपस्थित कुमारी का पाद्य, अर्घ्य, गन्धाक्षत्, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, आचमन, ताम्बूल एवं दक्षिणा आदि उपचारों से पूजन करे। कुमारी का पूजन करने के बाद निम्न मन्त्र पढ़ते हुए सण्डवत् प्रणाम करे-
“जगद्-वन्द्ये, जगत्-पूज्ये, सर्व-शक्ति-स्वरुपिणि।
पूजां गृहाण कौमारि जगन्मातर्नमोऽस्तु ते।।”

अर्थात् हे विश्व-वन्द्ये, संसार-पूज्ये, सर्व-शक्ति-स्वरुपे कौमारि देवि, मेरी पूजा स्वीकर करिए। हे जगदम्ब, आपको नमस्कार।

६॰ कुमारी-पूजा के बाद “श्रीदुर्गा-अष्टोत्तर-शतनाम” स्तोत्र का पाठ करे।

विशेषः- उपर्युक्त विधि से मास में एक बार ‘कुमारी-पूजा’ करे। कुमारियाँ विषम-संख्यक (१, ३, ५, ७॰॰॰) होनी चाहिए।

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