July 30, 2015 | Leave a comment ।। अथ श्री हनुमत साठिका ।। ।। चौपाईयाँ ।। जय जय जय हनुमान अडंगी, महावीर विक्रम बजरंगी । जय कपीश जय पवन कुमारा, जय जगवंदन शील आगारा ॥ जय आदित्य अमर अविकारी, अरि मर्दन जय जय गिरधारी । अंजनि उदर जन्म तुम लीन्हा, जय जयकार देवतन कीन्हा ॥ बाजै दुन्दुभि गगन गम्भीरा, सुर मन हर्ष असुर मन पीरा । कपि के डर गढ़ लंक सकानी, छुटि बंदि देवतन जानी ॥ ॠषि समुह निकट चलि आये, पवनतनय के पद सिर नाये । बार बार अस्तुति करि नाना, निर्मल नाम धरा हनुमाना ॥ सकल ॠषिन मिलि अस मत ठाना, दीन बताय लाल फल खाना । सुनत वचन कपि मन हरषाना, रवि रथ उदय लाल फल जाना ॥ रथ समेत कपि कीनि अहारा, सुर्य बिना भयौ अति अंधियारा । विनय तुम्हार करैं अकुलाना, तब कपीरा की अस्तुति ठाना ॥ सकल लोक वृतांत सुनावा, चतुरानन तब रवि उगलावा । कहा बहोरि सुनो बलशीला, रामचन्द्र करि हैं बहु लीला ॥ तब तुम उन कर करव सहाई, अबहीं बराहु कानन में जाई अस कहि विधि निज लोक सिधारा, मिले सखा संग पवनकुमारा ॥ खेलें खेल महा तरु तोरें, ढेर करें बहु पर्वत फोरें । जेहि गिरि चरण देहि कपि धाई, गिरि समेत पातालहिं जाई ॥ कपि सुग्रीव बालि को त्रासा, निरख रहे राम धनु आसा । मिले राम तहाँ पवन कुमारा, अति आनन्द सप्रेम दुलारा ॥ मणि मुँदरी रघुपति सो पाई, सीता खोज चले सिर नाई । शत योजन जलनिधि विस्तारा, अगम अपार देवतन हारा ॥ जिमि सर गोखुर सरिस कपीशा, लांघि गये कपि कहि जगदीशा । सीता चरण सीस तिन नाये, अजर अमर के आशिष पाये ॥ रहे दनुज उपवन रखवारी, एक से एक महाभट भारी । जिन्हें मारि पुनि गयेउ कपीशा, दहेउ लंक कोप्यो भुजबीसा ॥ सिया बोध दैं पुनि फिर आये, रामचन्द्र के पद सिर नाये । मेरु उपारि आपु छिन माहीं, बाँधे सेतु निमिष इक माहीं ॥ लक्ष्मण शक्ति लागी जबहीं, राम बुलाय कहा पुनि तबहीं । भवन समेत सुखेण लै आये, तुरत सजीवन को पुनि धाये ॥ मग महं कालनेमि कहं मारा, अमित सुभट निशिचर संहारा । आनि सजीवन गिरि समेता, धरि दीन्हीं जहं कृपानिकेता ॥ फनपति केर शोक हरि लीन्हा, वरषि सुमन सुर जय जय कीन्हा । अहिरावण हरि अनुज समेता, ले गयो तहां पाताल निकेता ॥ जहां रहे देवि अस्थाना , दीन चहै बलि काढ़ि कृपाणा । पवनतनय प्रभु कीन गुहारी, कटक समेत निशाचर मारी ॥ रीछ कीशपति सबै बहोरी, राम लखन कीने इक ठोरी । सब देवतन की बंदि छुड़ाये ,सो कीरति मुनि नारद गाये ॥ अक्षयकुमार दनुज बलवाना, सानकेतु कहं सब जगजाना । कुम्भकरण रावण कर भाई, ताहि निपात कीन्ह कपिराई ॥ मेघनाद पर शक्ति मारा, पवनतनय तब सों बरियारा । रहा तनय नारान्तक जाना, पल महं ताहि हते हनुमाना ॥ जहं लगि मान दनुज कर पावा , पवनतनय सब मारि नसावा । जय मारुतसुत जय अनुकुला, नाम कृशानु शोक सम तुला॥ जहं जीवन पर संकट होई, रवि तम सम सों संकट खोई । बन्दि परै सुमिरे हनुमाना, संकट कटै धरै जो ध्याना ॥ जाको बांध वाम पद दीन्हा, मारुतसुत व्याकुल बहु कीन्हा । जो भुजबल का कीन कृपाला, आछत तुम्हें मोर यह हाला ॥ आरत हरन नाम हनुमाना, सादर सुरपति कीन बखाना । संकट रहै न एक रती को, ध्यान धरै हनुमान जती को ॥ धावहु देखि दीनता मोरि, कहौं पवनसुत युगकर जोरि । कपिपति बेगि अनुग्रह करहु, आतुर आई दुसह दुख हरहु ॥ रामशपथ मैं तुमहिं सुनाया, जवन गुहार लाग सिय जाया । पैज तुम्हार सकल जग जाना , भव बंधन भंजन हनुमाना ॥ यह बंधन कर केतिक बाता, नाम तुम्हार जगत सुख दाता । करौ कृपा जय जय जगस्वामी, बार अनेक नमामि नमामि ॥ भौमवार कर होम विधाना, सुन नर मुनि वाछिंत फल पावै । जयति जयति जय जय जग स्वामी, समरथ पुरुष सुअंतरयामी ॥ अंजनि तनय नाम हनुमाना, सो तुलसी के प्राण समाना ॥ ।। दोहा ।। जय कपीश सुग्रीव तुम, जय अंगद हनुमान । रामलखन सीता सहित, सदा करौ कल्यान ॥ बन्दौ हनुमत नाम यह, मंगलवार प्रमाण । ध्यान धरै नर निश्चय, पावै पद कल्याण ॥ जो नित पढै यह साठिका, तुलसी कहै विचारि । रहै न संकट ताहि को , साक्षी हैं त्रिपुरारि ॥ ।। सवैया ।। आरत बन पुकारत हौं कपिनाथ सुनो विनती मम भारी । अंगद औ नल-नील महाबलि देव सदा बल की बलिहारी ।। जाम्बवन्त् सुग्रीव पवन-सुत दिबिद मयंद महा भटभारी । दुःख दोष हरो तुलसी जन-को श्री द्वादश बीरन की बलिहारी ।। Related