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रमल प्रश्नावली

इस प्रश्नावली का तरीका है कि चंदन की लकड़ी का चौकोर पासा बनाकर उस पर १, २, ३, ४ खुदवा लें। फिर अपने कार्य का चिंतन करते हुए तीन बार पासा छोड़ें। उसका जो अंक आये, उसी अंक पर फल देखें। यदि किसी के पास पासा नहीं हो तो, नीचे दी गई सारणी में अनामिका अंगुली रखकर उसका फल देखें।

111 131 211 231 311 331 411 431
112 132 212 232 312 332 412 432
113 133 213 233 313 333 413 433
114 134 214 234 314 334 414 434
121 141 221 241 321 341 421 441
122 142 222 242 322 342 422 442
123 143 223 243 323 343 423 443
124 144 224 244 324 344 424 444

रमल प्रश्नावली
१११॰ मंगल भवन अमंगल हारी, पूरी होगी मनोकामना थारी।
११२॰ इष्ट देव का ध्यान धरोगे, मन इच्छा सब काम करोगे।
११३॰ होत काम में हुआ अंधेरा, बैरी पहुंच गया है तेरा।
११४॰ झटपट करो देर नहीं लाओ, यह अवसर फेर नहीं पाओ।
१२१॰ जो तुम मन में नहीं उपाई, होगा काम ढील से भाई।
१२२॰ आगे विघ्न है बड़ा भारी, ईश्वर राखे लाज तुम्हारी।
१२३॰ संकट हटे सर्व सुख आया, दिन-दिन दुगुनी बढ़े माया।
१२४॰ वा शुभ काम करो दिन राती, पांच जिमादे गोती नाती।
१३१॰ कपट भेद है मन में उसके, करि विश्वास जाय तु जिसके।
१३२॰ होगी फतह देर नहीं लाओ, सूरज से तुम विनय सुनाओ।
१३३॰ दुविधा हटे सर्व सुख पाओ, गुरु गोविंद से ध्यान लगाओ।
१३४॰ बार-बार समझाऊँ थाने, आज भला नहीं दीखे म्हाने।
१४१॰ विपत्तियाँ बीत गयी सब पाछे, अब तो दिन आवेंगे आछे।
१४२॰ अब सुनता ना कोई तेरी, घर में पैठि रहा हऔ बेरी।
१४३॰ धन परिवार सदा सुखदाई, कर्म विपाक देख ले भाई।
१४४॰ रात दिना की चिंता भारी, कुछ दिन में मिट जाये थारी।
२११॰ जर जमीन होवे फिर होवे, चिंता करि तन को क्यों खोवे।
२१२॰ यह तो काम बड़ा दुखदाई, कर्म-विपाक देख लो भाई।
२१३॰ सत्य बात तुम सुन लो म्हारी, तिगरी लाग रही है थारी।
२१४॰ हिम्मत बड़ी भरोसा खोटा, कर्म-विपाक देख दुख मोटा।
२२१॰ कितना ही गुण कर मनमाहीं, यश तुमको मिलने का नाहीं।
२२२॰ होगी फतह देर नहीं लाओ, रविवार को व्रत बनाओ।
२२३॰ संकट देखि डरे क्यों भाई, ईश्वर थारी करे सहाई।
२२४॰ धर्म हार धन कोई खाओ, मन अपने में क्यों घबराओ।
२३१॰ सोच समझ के करना भाई, बिन सोचे होता दुखदाई।
२३२॰ रस्ते में जो भूखा टोहवो, भोजन देके निर्भय सोवो।
२३३॰ भली बुरी उसके ही हाथ, निर्धनी धनी बना वही नाथ।
२३४॰ यह अवसर करने का नाहीं, चुप बैठि रहो घर माहीं।
२४१॰ वह तुमसे लेने को डोले, इस कारण मुख मीठा बोले।
२४२॰ धीरज धरि रहो उर माहीं, गयी वस्तु घर आवे नाहीं।
२४३॰ किया कबूल भूलि गया भाई, वो ही थारी करे सहाई।
२४४॰ उदय पाप हो गये अब सारे, कर्म-विपाक देखिल्यो थारे।
३११॰ तीन बार ऊकी है तेरी, पीछे लाग रहा है बैरी।
३१२॰ करि कुछ यतन देर नहीं करना, करले जाप नहीं दुख भरना।
३१३॰ जो तुम मन में नई उपाई, होगा काम ढील से भाई।
३१४॰ करि विश्वास सत्य सुनि भाई, संकट मिटे होय सुखदाई।
३२१॰ यह तो बात नई बनि आई, कर्म-विपाक देख लो भाई।
३२२॰ करि विश्वास सत्य सुनि भाई, संकट मिटे होय सुखदाई।
३२३॰ करना हो सो जल्दी करिइ, ध्यान गुरु का हृदय धरिए।
३२४॰ तुम तो सबकी करो भलाई, ईश्वर राखै लाज सदाई।
३३१॰ जस तुम को मिलना नहीं भाई, चाहे जितनी करो भलाई।
३३२॰ कर ले काम देर नहीं करना, ईश्वर ध्यान हिये में धरना।
३३३॰ देखि चंद्रमा काम करोगे, नित नये मंगल मोद भरोगे।
३३४॰ जिस नर की तुम करते आशा, उसका कौन करे विश्वासा।
३४१॰ तुम जानो अपना सा मनकी, बुद्धि बदलि रही उस तन की।
३४२॰ अब तो समझि देखि मनमाहीं, घात ग्रह बिन होता नाहीं।
३४३॰ करिले यतन काम है नीका, अब तो फिकर मिटेगा जी का।
३४४॰ दुर्गा पठित कराना भाई, तो यह संकट वेग नसाई।
४११॰ चुपके बैठि रहो घर माहीं, यह अवसर करने का नाहीं।
४१२॰ करि विश्वास जाय जो कोई, उसकी हानि कभी नहीं होई।
४१३॰ यह सब दोष कर्म का भाई, कर्म-विपाक देख लो भाई।
४१४॰ मन अपने को डाटो भाई, मन के डटे सर्व सुखदाई।
४२१॰ शुभ आचरण बने रहो भाई, तो सुख सम्पत्ति रहे सदाई।
४२२॰ अपने मन में तुम्हीं विचारो, भूलि गये सो बेगि संभारो।
४२३॰ ये है दोष कर्म के भाई, करि कुछ जाय लेय छुटवाई।
४२४॰ मनि अपने को राखि जचाया, अब तो दिन अच्छे बन आया।
४३१॰ करिले यतन देर नहीं करना, इष्ट देव की ले ले सरना।
४३२॰ वो तोरी सब भली करेगा, उस ही से सब काम सरेगा।
४३३॰ अब तो फिकर तजो तुम भाई, कुछ दिन गये होय सुखदाई।
४३४॰ धीरज धरो फिकर तजि डारो, है ईश्वर को बड़ो सहारो।
४४१॰ नीच निचाई नहीं तजेंगे, फिर भी सज्जन राम भजेंगे।
४४२॰ मन अपने करो विचारा, इस तन को देखो रखवारा।
४४३॰ रोस देव का तुम पर भारी, पहिले उसकी करो मनुहारी।
४४४॰ ठहर-ठहर कर जागे जोती, कुछ दिन गये सिद्ध सब होती।

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