दशरथकृत शनि स्तोत्र विनियोगः- ॐ अस्य श्रीशनि-स्तोत्र-मन्त्रस्य कश्यप ऋषिः, त्रिष्टुप् छन्दः, सौरिर्देवता, शं बीजम्, निः शक्तिः, कृष्णवर्णेति कीलकम्, धर्मार्थ-काम-मोक्षात्मक-चतुर्विध-पुरुषार्थ-सिद्धयर्थे जपे विनियोगः। कर-न्यासः- शनैश्चराय अंगुष्ठाभ्यां नमः। मन्दगतये तर्जनीभ्यां नमः। अधोक्षजाय मध्यमाभ्यां नमः। कृष्णांगाय अनामिकाभ्यां नमः। शुष्कोदराय कनिष्ठिकाभ्यां नमः। छायात्मजाय करतल-कर-पृष्ठाभ्यां नमः। हृदयादि-न्यासः- शनैश्चराय हृदयाय नमः। मन्दगतये शिरसे स्वाहा। अधोक्षजाय शिखायै वषट्। कृष्णांगाय कवचाय हुम्। शुष्कोदराय नेत्र-त्रयाय… Read More


चतुष्षष्टि-योगिनी नाम-स्तोत्रम् गजास्या सिंह-वक्त्रा च, गृध्रास्या काक-तुण्डिका । उष्ट्रा-स्याऽश्व-खर-ग्रीवा, वाराहास्या शिवानना ।। उलूकाक्षी घोर-रवा, मायूरी शरभानना । कोटराक्षी चाष्ट-वक्त्रा, कुब्जा च विकटानना ।। शुष्कोदरी ललज्जिह्वा, श्व-दंष्ट्रा वानरानना । ऋक्षाक्षी केकराक्षी च, बृहत्-तुण्डा सुराप्रिया ।। कपालहस्ता रक्ताक्षी च, शुकी श्येनी कपोतिका । पाशहस्ता दंडहस्ता, प्रचण्डा चण्डविक्रमा ।। शिशुघ्नी पाशहन्त्री च, काली रुधिर-पायिनी । वसापाना गर्भरक्षा, शवहस्ताऽऽन्त्रमालिका… Read More


सप्तशती पाठ चतुःषष्ठि योगिनी चतुःषष्ठि योगिनी के देशकाल आधार पर भिन्न-भिन्न नाम बतलाये जाते हैं । दैनिक कर्म में पूजित ६४ योगिनियाँ अलग हैं तथा प्रत्येक चरित की महाकाली, महालक्ष्मी तथा महासरस्वती की भिन्न-भिन्न ६४ योगिनियाँ अलग हैं । प्रत्येक चरित के साथ क्रमशः उनका पाठ किया जा सकता है । ९ दुर्गा की प्रत्येक… Read More


ध्यानम् ॐ विद्युद्दामसमप्रभां मृगपतिस्कन्धस्थितां भीषणां कन्याभि: करवालखेटविलसद्धस्ताभिरासेविताम् । हस्तैश्चक्रगदासिखेटविशिखांश्चापं गुणं तर्जनीं बिभ्राणामनलात्मिकां शशिधरां दुर्गां त्रिनेत्रां भजे ॥… Read More


सर्व-कामना-सिद्धि स्तोत्र श्री हिरण्य-मयी हस्ति-वाहिनी, सम्पत्ति-शक्ति-दायिनी। मोक्ष-मुक्ति-प्रदायिनी, सद्-बुद्धि-शक्ति-दात्रिणी।।१ सन्तति-सम्वृद्धि-दायिनी, शुभ-शिष्य-वृन्द-प्रदायिनी। नव-रत्ना नारायणी, भगवती भद्र-कारिणी।।२ धर्म-न्याय-नीतिदा, विद्या-कला-कौशल्यदा। प्रेम-भक्ति-वर-सेवा-प्रदा, राज-द्वार-यश-विजयदा।।३ धन-द्रव्य-अन्न-वस्त्रदा, प्रकृति पद्मा कीर्तिदा।… Read More


सर्वैश्वर्यप्रद लक्ष्मी कवच श्रीमधुसूदन उवाच गृहाण कवचं शक्र सर्वदुःखविनाशनम्। परमैश्वर्यजनकं सर्वशत्रुविमर्दनम्।। ब्रह्मणे च पुरा दत्तं संसारे च जलप्लुते। यद् धृत्वा जगतां श्रेष्ठः सर्वैश्वर्ययुतो विधिः।। बभूवुर्मनवः सर्वे सर्वैश्वर्ययुतो यतः। सर्वैश्वर्यप्रदस्यास्य कवचस्य ऋषिर्विधि।। पङ्क्तिश्छन्दश्च सा देवी स्वयं पद्मालया सुर। सिद्धैश्वर्यजपेष्वेव विनियोगः प्रकीर्तित।। यद् धृत्वा कवचं लोकः सर्वत्र विजयी भवेत्।। ।।मूल कवच पाठ।।… Read More


गुप्त-सप्तशती सात सौ मन्त्रों की ‘श्री दुर्गा सप्तशती, का पाठ करने से साधकों का जैसा कल्याण होता है, वैसा-ही कल्याणकारी इसका पाठ है। यह ‘गुप्त-सप्तशती’ प्रचुर मन्त्र-बीजों के होने से आत्म-कल्याणेछु साधकों के लिए अमोघ फल-प्रद है। इसके पाठ का क्रम इस प्रकार है। प्रारम्भ में ‘कुञ्जिका-स्तोत्र’, उसके बाद ‘गुप्त-सप्तशती’, तदन्तर ‘स्तवन’ का पाठ करे।… Read More


कवच के प्रयोग तन्त्रों में कवच पाठ की कुछ विशिष्ट विधियाँ भी उपलब्ध है। यथा- ॰ प्रातः, मध्याह्न एवं सायं – तीनों सन्ध्याओं में कवच का पाठ करने से शीघ्र सिद्धि सुलभ होती है। ‍॰ “गुरु” की पूजा कर तीन बार या एक बार ज्ञान-सहित कवच का पाठ करे। इस प्रकार नित्य पाठ करने से… Read More


श्री महा-विपरीत-प्रत्यंगिरा स्तोत्र नमस्कार मन्त्रः- श्रीमहा-विपरीत-प्रत्यंगिरा-काल्यै नमः। ।।पूर्व-पीठिका-महेश्वर उवाच।। श्रृणु देवि, महा-विद्यां, सर्व-सिद्धि-प्रदायिकां। यस्याः विज्ञान-मात्रेण, शत्रु-वर्गाः लयं गताः।। विपरीता महा-काली, सर्व-भूत-भयंकरी। यस्याः प्रसंग-मात्रेण, कम्पते च जगत्-त्रयम्।। न च शान्ति-प्रदः कोऽपि, परमेशो न चैव हि। देवताः प्रलयं यान्ति, किं पुनर्मानवादयः।। पठनाद्धारणाद्देवि, सृष्टि-संहारको भवेत्। अभिचारादिकाः सर्वेया या साध्य-तमाः क्रियाः।। स्मरेणन महा-काल्याः, नाशं जग्मुः सुरेश्वरि, सिद्धि-विद्या महा काली,… Read More


मृत्य्वष्टकम् ।। मार्कण्डेय उवाच ।। नारायणं सहस्राक्षं पद्मनाभं पुरातनम् । प्रणतोऽस्मि हृषीकेशं किं मे मृत्युः करिष्यति ? ।। १ गोविन्दं पुण्डरीकाक्षमनन्तमजमव्ययम् । केशवं च प्रपन्नोऽस्मि किं मे मृत्युः करिष्यति ? ।। २ वासुदेवं जगद्योनिं भानुवर्णमतीन्द्रियम् । दामोदरं प्रपन्नोऽस्मि किं मे मृत्युः करिष्यति ? ।। ३… Read More