ऋत सूक्त ऋतसूक्त ऋग्वेद के १० वें मण्डल का १९० वाँ सूक्त ‘ऋतसूक्त’ है। यह अघमर्षणसूक्त भी कहलाता है। इसके ऋषि माधुच्छन्द अघमर्षण, देवता भाववृत्त तथा छन्द अनुष्टुप् है। यह सूक्त सृष्टि विषयक है। ऋषि ने परमपिता परमेश्वर की स्तुति करते हुए कहा है कि महान तप से सर्वप्रथम ऋत और सत्य प्रकट हुए। परम ब्रह्म की… Read More
कृषि सूक्त कृषिसूक्त अथर्ववेद के तीसरे काण्ड का १७वाँ सूक्त ‘कृषिसूक्त’ है। इस सूक्त के ऋषि ‘विश्वामित्र’ तथा देवता ‘सीता’ हैं। इसमें मन्त्रद्रष्टा ऋषि ने कृषि को सौभाग्य बढ़ाने वाला बताया है। कृषि एक उत्तम उद्योग है। कृषि से ही मानव-जाति का कल्याण होता है। प्राणों के रक्षक अन्न की उत्पत्ति कृषि से ही होती है। ऋतु… Read More
गृहमहिमा सूक्त गृहमहिमासूक्त अथर्ववेदीय पैप्पलाद शाखा में वर्णित इस ‘गृहमहिमासूक्त की अतिशय महत्ता एवं लोकोपयोगिता है। इसमें मन्त्रद्रष्टा ऋषि ने गृह में निवास करने वालों के लिये सुख, ऐश्वर्य तथा समृद्धि सम्पन्नता की कामना की है। गृहानैमि मनसा मोदमान ऊर्जं बिभ्रद् वः सुमतिः सुमेधाः । अघोरेण चक्षुषा मित्रियेण गृहाणां पश्यन्पय उत्तरामि ॥ १ ॥ इमे गृहा मयोभुव… Read More
मधुसूक्त [ मधुविद्या ] मधुसूक्त [ मधुविद्या ] अथर्ववेद के नवमकाण्ड में मधुविद्या विषयक एक मनोहर सूक्त प्राप्त है। इस सूक्त के ऋषि अथर्वा तथा देवता मधु एवं अश्विनीकुमार हैं। इस सूक्त में विशेषरूप से गो महिमा वर्णित है। गोदुग्धरूपी अमृतरस के स्रोत गौ – को बहुत महत्त्वपूर्ण तथा देवताओं की दिव्य शक्तियों से उत्पन्न बताया गया है। गोदुग्ध… Read More
ब्रह्मचारीसूक्त ब्रह्मचारीसूक्त विद्याध्ययन तथा ज्ञानार्जन बिना ब्रह्मचर्य व्रत के सफल नहीं हो सकता। ब्रह्मचर्य और ज्ञान का अभेद सम्बन्ध है। अध्यात्म-साधना की दृष्टि से ब्रह्मचर्य की जितनी महिमा है, उतनी ही लोक-जीवन के लिये भी उसकी आवश्यकता है। जो ब्रह्मचर्यव्रत धारण करता है, वह ब्रह्मचारी कहलाता है। अथर्ववेद के ११ वें काण्ड में एक सूक्त पठित… Read More
ओषधिसूक्त ओषधिसूक्त ऋग्वेद दशम मण्डल का ९७वाँ सूक्त ओषधिसूक्त कहलाता है। इस सूक्त के ऋषि आथर्वण भिषग् तथा देवता ओषधि हैं, छन्द अनुष्टुप् हैं और सूक्त की कुल ऋचाओं की संख्या २३ है। इस सूक्त के आरम्भ में ही ऋषि ने ओषधियों को देवरूप मानकर उनसे रोगनिवारण करके आरोग्य तथा दीर्घायुष्यप्राप्ति की प्रार्थना की है। इस… Read More
मन्युसूक्त मन्युसूक्त ऋग्वेद के दशम मण्डल में दो सूक्त (८३-८४वाँ) साथ-साथ पठित हैं, जो मन्युदेवता परक होने से मन्युसूक्त कहलाते हैं। इन दोनों सूक्तों के ऋषि मन्युस्तापस हैं। मन्युदेवता का अर्थ उत्साहशक्ति सम्पन्न देव किया गया है। इन सूक्तों में ऋषि ने जीव की उत्साहशक्ति को परमशक्ति से जोड़ा है और प्रार्थना की है कि हे… Read More
अभ्युदयसूक्त अभ्युदयसूक्त अथर्ववेद के उत्तरार्द्ध भाग में १७वें काण्ड के रूप में अभ्युदयसूक्त प्राप्त है। इसके ऋषि ब्रह्मा तथा देवता आदित्य हैं। इस सूक्त में स्तोता अपने अभ्युदय हेतु परब्रह्म परमेश्वर से दीर्घायु, सर्वप्रियता, सुमति, सुख, तेज, ज्ञान, बल, पवित्र वाणी, बलवान् प्राणशक्ति, सर्वत्र अनुकूलता आदि वरदानों की प्रार्थना कर रहा है। इसीलिये आत्म- अभ्युदय हेतु… Read More
दीर्घायुष्यसूक्त दीर्घायुष्यसूक्त अथर्ववेदीय पैप्पलाद शाखा का यह ‘दीर्घायुष्यसूक्त’ प्राणिमात्र के लिये समानरूप से दीर्घायुप्रदायक है। इसमें मन्त्रद्रष्टा ऋषि पिप्पलादने देवों, ऋषियों, गन्धर्वी, लोकों, दिशाओं, ओषधियों तथा नदी, समुद्र आदिसे दीर्घ आयुकी कामना की है। सं मा सिञ्चन्तु मरुतः सं पूषा सं बृहस्पतिः । सं मायमग्निः सिञ्चन्तु प्रजया च धनेन च । दीर्घमायुः कृणोतु मे ॥ १… Read More
रोगनिवारणसूक्त रोगनिवारणसूक्त अथर्ववेद के चतुर्थ काण्ड का १३वाँ सूक्त तथा ऋग्वेद के दशम मण्डल का १३७वाँ सूक्त’ रोगनिवारणसूक्त’ के नाम से प्रसिद्ध है। अथर्ववेद में अनुष्टुप् छन्द के इस सूक्त के ऋषि शंताति तथा देवता चन्द्रमा एवं विश्वेदेवा हैं। जबकि ऋग्वेद में प्रथम मन्त्र के ऋषि भरद्वाज, द्वितीय के कश्यप, तृतीय के गौतम, चतुर्थ के अत्रि,… Read More