॥ सरस्वतीस्तोत्रं अथवा वाणीस्तवनं याज्ञ्यवल्क्योक्त ॥ ॥ नारायण उवाच ॥ वाग्देवतायाः स्तवनं श्रूयतां सर्वकामदम् । महामुनिर्याज्ञवल्क्यो येन तुष्टाव तां पुरा ॥ १ ॥ गुरुशापाच्च स मुनिर्हतविद्यो बभूव ह । तदाऽऽजगाम दुःखार्तो रविस्थानं च पुण्यदम् ॥ २ ॥ सम्प्राप्य तपसा सूर्यं कोणार्के दृष्टिगोचरे । तुष्टाव सूर्य्यं शोकेन रुरोद स पुनः पुनः ॥ ३ ॥ सूर्य्यस्तं पाठयामास… Read More


महर्षि आश्वलायन-कृत माँ सरस्वती का विशिष्ट पाठ मंगलाचरणः ॐ वाङ् मे मनसि प्रतिष्ठिता। मनो मे वाचि प्रतिष्ठितमाविरावीर्य एधि। वेदस्य म आणीस्थः। श्रुतं मे मा प्रहासीः। अनेनाधीतेनाहो-रात्रान्। सन्दधाम्यमृतं वदिष्यामि। सत्यं वदिष्यामि। तन्मामवतु वक्तारम्। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः पहले मन्त्र का विनियोग हाथ में जल लेकर पढ़े- विनियोगः ॐ अस्य श्रीसरस्वती-दश-श्लोकी-महा-मन्त्रस्य अहमाश्वलायन ऋषिः। अनुष्टुप् छन्दः। श्रीवागीश्वरी देवता।… Read More


सरस्वतीसूक्त वैदिक परम्परा में सरस्वतीरहस्योपनिषद् के अनुसार सरस्वती की उपासना ब्रह्म-ज्ञान प्राप्ति का परमोत्तम साधन है । महर्षि आश्वलायन ने इसके द्वारा तत्त्व-ज्ञान प्राप्त किया था । यह स्तवन ऋग्वेद के उपनिषद् भाग के अन्तर्गत है । इसका आश्रय लेने से माँ सरस्वती की कृपा से विद्याप्राप्ति के विघ्न विशेषरूप से दूर होते हैं तथा… Read More


श्रीपञ्चमी-वसन्तपञ्चमी वसन्तपञ्चमी पूजा माघ शुक्ल पूर्वविद्धा पञ्चमी को उत्तम वेदी पर वस्त्र बिछाकर अक्षतों का अष्टदल कमल बनाये। उसके अग्रभाग में गणेशजी और पृष्ठभाग में ‘वसन्त’-जौ, गेहूँ की बाल का पूञ्ज (जो जलपूर्ण कलश में ड़ठल सहित रखकर बनाया जाता है) स्थापित करके सर्वप्रथम गणेशजी का पूजन करे और पीछे उक्त पुञ्ज में “रति” और… Read More


सिद्ध सारस्वत स्तोत्र ।। श्रीसरस्वत्युवाच ।। वर्तते निर्मलं ज्ञानं, कुमति-ध्वंस-कारकं । स्तोत्रेणानेन यो भक्तया, मां स्तुवति सदा नरः ।। त्रि-सन्ध्यं प्रयतो भूत्वा, यः स्तुतिं पठते तथा । तस्य कण्ठे सदा वासं, करिष्यासि न संशयः ।। सिद्ध-सारस्वतं नाम, स्तोत्रं वक्ष्येऽहमुत्तमम् ।। जो व्यक्ति सदैव इस कुमति (दुर्बुद्धि) नाशक स्तोत्र से मेरी स्तुति करता है, उसे निर्मल… Read More


विश्वविजय सरस्वती कवच श्रीब्रह्मवैवर्त-पुराण के प्रकृतिखण्ड, अध्याय ४ में मुनिवर भगवान् नारायण ने मुनिवर नारदजी को बतलाया कि ‘विप्रेन्द्र ! सरस्वती का कवच विश्व पर विजय प्राप्त कराने वाला है। जगत्स्त्रष्टा ब्रह्मा ने गन्धमादन पर्वत पर भृगु के आग्रह से इसे इन्हें बताया था।’ ॥ ध्यान ॥ सरस्वतीं शुक्लवर्णां सस्मितां सुमनोहराम् । कोटिचन्द्रप्रभाजुष्टपुष्टश्रीयुक्तविग्रहाम् ॥ वह्निशुद्धांशुकाधानां… Read More


सरस्वती महा-स्तोत्र प्रस्तुत ‘सरस्वती महा-स्तोत्र’ का एक वर्ष तक पाठ करने से मूर्ख व्यक्ति की भी मूर्खता दूर हो जाती है । नित्य-पाठ करने से पाठ-कर्त्ता मेधावी हो जाता है । यह महर्षि याज्ञवल्क्य का अनुभूत प्रयोग है । ॥ याज्ञवल्क्य उवाच ॥ कृपां कुरु जगन्मातर्मामेवं हत-तेजसम् । गुरु-शापात् स्मृति-भ्रष्टं, विद्या-हीनं च दुःखितम् ।।१ ज्ञानं… Read More