सर्व-सिद्धि-दायक साधना ।। श्रीउच्छिष्ट-गणेश कवच ।। ऋषिर्मे गणकः पातु, शिरसि च निरन्तरम् । त्राहि मां देवी गायत्री, छन्दः ऋषिः सदा मुखे ।।१ हृदये पातु मां नित्यमुच्छिष्ट-गण-देवता । गुह्ये रक्षतु तद्-बीजं, स्वाहा शक्तिश्च पादयो ।।२ काम-कीलकं सर्वांगे, विनियोगश्च सर्वदा । पार्श्व-द्वये सदा पातु, स्व-शक्तिं गण-नायकः ।।३ शिखायां पातु तद्-बीजं, भ्रू-मध्ये तार-बीजकं । हस्ति-वक्त्रश्च शिरसि, लम्बोदरो ललाटके… Read More


नवाक्षर गणपति-विद्या का जप ‘विरभद्रोड्डीश तन्त्र’ के अनुसार कुम्हार के चाक की मिट्टी से ‘गणेश-प्रतिमा’ बनाकर पञ्चोपचार (गन्ध, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य) से पूजाकर प्रति-दिन ‘नवाक्षर’ गणपति-विद्या ‘ॐ गं गणपतये नमः का १००० जप करे, तो बुद्धि का विकास होता है। एक मास जप करे, तो स्त्री-लाभ होता है। छः मास जप करे, तो… Read More


श्रीमहागणपति-वज्रपञ्जर-कवच ॥ पूर्व-पीठिका-श्रीभैरव उवाच ॥ महा-देवि गणेशस्य, वरदस्य महात्मनः । कवचं ते प्रवक्ष्यामि, वज्र-पञ्जरकाभिधम् ॥ विनियोगः- अस्य श्रीमहा-गणपति-वज्र-पञ्जर-कवचस्य शऽरीभैरव ऋषिः, गायत्र्यं छन्दः, श्रीमहा-गणपतिः देवता, गं बीजं, ह्रीं शक्तिः, कुरु-कुरु कीलकं, वज्र-विद्यादि-सिद्धयर्थे महा-गणपति-वज्र-पञ्जर-कवच-पाठे-विनियोगः।… Read More


श्रीऋद्धि-सिद्धि सहित श्रीगणेश-साधना ‘कलौ चण्डी-विनायकौ’– कलियुग में ‘चण्डी’ और ‘गणेश’ की साधना ही श्रेयस्कर है। सच पूछा जाए, तो विघ्न-विनाशक गणेश और सर्व-शक्ति-रुपा माँ भगवती चण्डी के बिना कोई उपासना पूर्ण हो ही नहीं सकती। ‘भगवान् गणेश’ सभी साधनाओं के मूल हैं, तो ‘चण्डी’ साधना को प्रवहमान करने वाली मूल शक्ति है। यहाँ भगवान् गणेश… Read More