मूल सप्तशती ।। मूल सप्तशती ।। ।। ॐ श्रीदेव्युवाच ।। गर्ज गर्ज क्षणं मूढ ! मधु यावत् पिबाम्यहम् । मया त्वयि हतेऽत्रैव, गर्जिष्यन्त्याशु देवताः ।।१ व्रियतां त्रिदशाः सर्वे, यदस्मत्तोऽभिवाञ्छितम् ।।२ ।।ॐ ऋषिरुवाच ।।… Read More
राहुकाल दुर्गापूजा विधानम् राहुकाल दुर्गापूजा विधानम् राहुकाल की दक्षिण भारत में विशेष मान्यता है । राहुकाल में आसुरी शक्तियों का उदय होता है अतः अन्य शुभ कार्य नहीं किये जाते हैं । आसुरी शक्तिरयों के दमन हेतु व्यक्ति को जप पाठ एवं स्वाध्याय करना श्रेयस्कर होता है । राहुकाल में दुर्गा उपासना श्रेष्ठ फलदायिनी हैं । राहु का… Read More
मन्त्रात्मक सप्त-श्लोकी चण्डी मन्त्रात्मक सप्त-श्लोकी चण्डी (१) ‘ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि’ – प्रथम मन्त्र विनियोगः- ॐ अस्य ‘ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि’ इति सप्त-श्लोकी-चण्डी-प्रथम-मन्त्रस्य श्रीवशिष्ठ ऋषिः, श्रीआद्या-महा-काली देवता, स्त्रौं बीजं, कामाक्षा शक्तिः, श्रीत्रिपुर-सुन्दरी महा-विद्या, तमो गुणः, त्वक् ज्ञानेन्द्रियं, मोहो रसः, भगं कर्मेन्द्रियं, आश्चर्यं स्वरं, अग्निः तत्त्वं, अविद्या कला, स्त्रीं उत्कीलनं, योनिः मुद्रा मम क्षेम्-स्थैर्यायुरोग्याभि-वृद्धयर्थं श्रीजगदम्बा-योग-माया-भगवती-दुर्गा-प्रसाद-सिद्धयर्थं च नमो-युत-प्रणव-वाग्-वीज-स्व-वीज-लोम-विलोम-पुटितोक्त-सप्त-श्लोकी-चण्डी-प्रथम-मन्त्र-जपे विनियोगः ।… Read More
कुमारी पूजा कुमारी पूजा ‘कुमारी-पूजा’ से भगवती सद्यः प्रसन्न होती है। कुमारी-पूजा में जाति-भेद नहीं माना गया है। चारों वर्णों की कुमारियों की पूजा, जिनका फल भी भिन्न-भिन्न है, शास्त्र द्वारा निर्दिष्ट है। ‘मेरु-तन्त्र’ में लिखा है कि ‘ब्राह्मण-कुमारी’ के पूजन से सर्व-इष्ट, ‘क्षत्रिय-कुमारी’ के पूजन से यश, ‘वैश्य-कुमारी’ के पूजन से धन तथा ‘शूद्र-कुमारी’ के पूजन… Read More
शारदीय नव-रात्र में कलश-स्थापन शारदीय नव-रात्र में कलश-स्थापन चारों नव-रात्रों में “शारदीय-नव-रात्र’ का विशेष महत्त्व है। कहा भी है- शरत्-काले महा-पूजा, क्रियते या च वार्षिकी । तस्याह सकलां बाधां, नाशयिष्याम्यसंशयम् ।। ऐसी दशा में ‘शारदीय नव-रात्र’ के पूजा-विधान पर विशेष रुप से ध्यान देना आवश्यक है। भगवान् आशुतोष कथित अनेक तन्त्र-शास्त्र एवं स्मार्त-शास्त्र इस पूजा के उत्तमोत्तम विधि-विधान से… Read More
भगवती स्वाहा (स्वाहा देवी) का उपाख्यान भगवती स्वाहा (स्वाहा देवी) का उपाख्यान श्रीब्रह्मवैवर्त्त-पुराण के प्रकृति-खण्ड के 40 वें अध्याय में भगवती ‘स्वाहा’ का सुन्दर उपाख्यान वर्णित है । नारदजी के पुछे जाने पर भगवान् नारायण कहते है – मुने ! सृष्टि के प्रारम्भिक समय की बात है – देवता भोजन की व्यवस्था के लिये ब्रह्मलोक की मनोहारिणी सभा में गये ।… Read More