August 21, 2019 | aspundir | Leave a comment जन्माष्टमी व्रत – अग्निपुराण अध्याय १६३ अग्निदेव कहते हैं – वसिष्ठ ! अब मैं अष्टमी को किये जानेवाले व्रतों का वर्णन करूँगा । उनमें पहला रोहिणी नक्षत्रयुक्त अष्टमी का व्रत है । भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की रोहिणी नक्षत्र से युक्त अष्टमी तिथि को ही अर्धरात्रि के समय भगवान् श्रीकृष्ण का प्राकट्य हुआ था, इसलिये इसी अष्टमी को उनकी जयन्ती मनायी जाती है । इस तिथि को उपवास करने से मनुष्य सात जन्मों के किये हुए पापों से मुक्त हो जाता है ॥ अतएव भाद्रपद के कृष्णपक्ष की रोहिणीनक्षत्रयुक्त अष्टमी को उपवास रखकर भगवान् श्रीकृष्ण का पूजन करना चाहिये । यह भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाला है ॥ पूजन की विधि इस प्रकार है – आवाहन-मन्त्र और नमस्कार आवाहयाम्यहं कृष्णं बलभद्रं च देवकीम । वसुदेवं यशोदां गा: पूजयामि नमोऽस्तु ते ॥ योगाय योगपतये योगेसहाय नमो नमः । योगादिसम्भवायैव गोविन्दाय नमो नमः ॥ ‘मैं श्रीकृष्ण, बलभद्र, देवकी, वसुदेव, यशोदादेवी और गौओं का आवाहन एवं पूजन करता हूँ; आप सबको नमस्कार है । योग के आदिकारण, उत्पत्तिस्थान श्रीगोविंद के लिये बारंबार नमस्कार है’ ॥ तदनंतर भगवान् श्रीकृष्ण को स्नान कराये और इस मंत्र से उन्हें अर्घ्यदान करे – यज्ञेश्वराय यज्ञाय यज्ञानां पतये नमः । यज्ञादिसम्भवायैव गोविन्दाय नमो नमः ॥ ‘यज्ञेश्वर, यज्ञस्वरूप, यज्ञों के अधिपति एवं यज्ञ के आदि कारण श्रीगोविंद को बारंबार नमस्कार है ।’ पुष्प-धुप गृहाण देव पुष्पाणि सुगन्धिनि प्रियाणि ते । सर्वकामप्रदो देव भव में देववंदित ॥ धूपधूपित धूपं त्वं धुपितैस्त्वं गृहाण में । सुगन्धिधुपगन्धाढयं कुरु मां सर्वदा हरे ॥ ‘देव ! आपके प्रिय ये सुगन्धयुक्त पुष्प ग्रहण कीजिये । देवताओं द्वारा पूजित भगवन ! मेरी सारी कामनाएँ सिद्ध कीजिये । आप धूप से सदा धूपित हैं, मेरे द्वारा अर्पित धूप-दान से आप धूप की सुगन्ध ग्रहण कीजिये । श्रीहरे ! मुझे सदा सुगन्धित पुष्पों, धूप एवं गंधसे सम्पन्न कीजिये ।’ दीप-दान दीपदीप्त महादीपं दीपदीप्तिद सर्वदा । मया दत्तं गृहाण त्वं कुरु चोर्ध्वगतिं च माम ॥ विश्वाय विश्वपतये विश्वेशाय नमो नमः । विश्वादिसम्भवायैव गोविन्दाय निवेदितम ॥ ‘प्रभो ! आप सर्वदा समान देदीप्यमान एवं दीप को दीप्ति प्रदान करनेवाले हैं । मेरे द्वारा दिया गया यह महादीप ग्रहण कीजिये और मुझे भी (दीप के समान) ऊर्ध्वगति से युक्त कीजिये । विश्वरूप, विश्वपति, विश्वेश्वर, श्रीकृष्ण के लिये नमस्कार है, नमस्कार है । विश्वके आदिकारण श्रीगोविन्द को मैं यह दीप निवेदन करता हूँ । ‘ शयन – मन्त्र धर्माय धर्मपतये धर्मेशाय नमो नमः । धर्मादिसम्भवायैव गोविन्द शयनं कुरु ॥ सर्वाय सर्वपतये सर्वेशाय नमो नमः । सर्वादिसम्भवायैव गोविन्दाय नमो नमः ॥ ‘धर्मस्वरूप, धर्म के अधिपति, धर्मेश्वर एवं धर्म के आदिस्थान श्रीवासुदेव को नमस्कार है । गोविन्द ! अब शाप शयन कीजिये । सर्वरूप, सबके अधिपति, सर्वेश्वर, सबके आदिकारण श्रीगोविंद को बारंबार नमस्कार हैं ।’ तदनन्तर रोहिणीसहित चन्द्रमा को निम्नालिखित मन्त्र पढ़कर अर्घ्यदान दे – क्षीरोदार्णवसम्भुत अत्रिनेत्रसमुद्धव । गृहाणार्घ्य शशाक्केदं रोहिण्या सहितो मम ॥ ‘क्षीरसमुद्र से प्रकट एवं अत्रि के नेत्र से उद्भूत तेजःस्वरुप शशांक ! रोहिणी के साथ मेरा अर्घ्य स्वीकार कीजिये ।’ फिर भगवद्विग्रह को वेदिका पर स्थापित करे और चंद्रमासहित रोहिणी का पूजन करे । तदनंतर अर्धरात्रि के समय वसुदेव, देवकी, नन्द-यशोदा और बलराम का गुड़ और घृतमिश्रित दुग्ध- धारा से अभिषेक करे । तत्पश्चात् व्रत करनेवाला मनुष्य ब्राह्मणों को भोजन करावे और दक्षिणा में उन्हें वस्त्र और सुवर्ण आदि दे । जन्माष्टमी का व्रत करनेवाला पुत्रयुक्त होकर विष्णुलोक का भागी होता है । जो मनुष्य पुत्रप्राप्ति की इच्छासे प्रतिवर्ष इस व्रत का अनुष्ठान करता है, वह ‘पुम’ नामक नरक के भय से मुक्त हो जाता है । (सकाम व्रत करनेवाला भगवान् गोविन्द से प्रार्थना करे ) ‘प्रभो ! मुझे धन, पुत्र, आयु, आरोग्य और संतति दीजिये । गोविन्द ! मुझे धर्म, काम, सौभाग्य, स्वर्ग और मोक्ष प्रदान कीजिये’ ॥ Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe