June 16, 2025 | aspundir | Leave a comment अग्निपुराण – अध्याय 101 ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ एक सौ एकवाँ अध्याय प्रासाद-प्रतिष्ठा की विधि प्रासादप्रतिष्ठाकथनम् भगवान शिव कहते हैं — स्कन्द ! अब मैं प्रासाद (मन्दिर) की स्थापना का वर्णन करता हूँ। उसमें चैतन्य का सम्बन्ध दिखा रहा हूँ। जहाँ मन्दिर के गुंबज की समाप्ति होती है, वहाँ पूर्ववेदी के मध्यभाग में आधारशक्ति का चिन्तन करके प्रणव-मन्त्र से कमल का न्यास करे। उसके ऊपर सुवर्ण आदि धातुओं में से किसी एक का बना हुआ कलश स्थापित करे। उसमें पञ्चगव्य, मधु और दूध पड़ा हुआ हो। रत्न आदि पाँच वस्तुएँ डाली गयी हों। कलश पर गन्ध का लेप हुआ हो। वह वस्त्र से आवृत हो तथा उसे सुगन्धित पुष्पों से सुवासित किया गया हो। उस कलश के मुख में आम आदि पाँच वृक्षों के पल्लव डाले गये हों हृदय-मन्त्र से हृदय कमल की भावना करके उस कलश को वहाँ स्थापित करना चाहिये ॥ १-३१/२ ॥’ तदनन्तर गुरु पूरक प्राणायाम के द्वारा श्वास को भीतर लेकर, शरीर के द्वारा सकलीकरण क्रिया का सम्पादन करके, स्व-सम्बन्धी मन्त्र से कुम्भक प्राणायाम द्वारा प्राणवायु को भीतर अवरुद्ध करे। फिर भगवान् शंकर की आज्ञा से सर्वात्मा से अभिन्न आत्मा (जीवचैतन्य ) – को जगावे। तत्पश्चात्, रेचक प्राणायाम द्वारा द्वादशान्त स्थान से प्रज्वलित अग्निकण के समान जीव चैतन्य को लेकर कलश के भीतर स्थापित करे और उसमें आतिवाहिक शरीर का न्यास करके उसके गुणों के बोधक काल आदि का एवं ईश्वर सहित पृथ्वी-पर्यन्त तत्त्व- समुदाय का भी उसमें निवेश करे ॥ ४-७ ॥ इसके बाद उक्त कलश में दस नाड़ियों, दस प्राणों (पाँच ज्ञानेन्द्रिय, पाँच कर्मेन्द्रिय तथा मन, बुद्धि और अहंकार – इन ) तेरह इन्द्रियों तथा उनके अधिपतियों की भी उस कलश में स्थापना करके, प्रणव आदि नाम मन्त्रों से उनका पूजन करे। अपने-अपने कार्य के कारकरूप से जो मायापाश के नियामक हैं, उनका, प्रेरक विद्येश्वरों का तथा सर्वव्यापी शिव का भी अपने-अपने मन्त्र द्वारा वहाँ न्यास और पूजन करे। समस्त अङ्गों का भी न्यास करके अवरोधिनी मुद्रा द्वारा उन सबका निरोध करे। अथवा सुवर्ण आदि धातुओं द्वारा निर्मित पुरुष की आकृति, जो ठीक मानव- शरीर के तुल्य हो, लेकर उसे पूर्ववत् पञ्चगव्य एवं कसैले जल आदि से संस्कृत (शुद्ध) करे। फिर उसे शय्या पर आसीन करके उमापति रुद्रदेव का ध्यान करते हुए शिव-मन्त्र से उस पुरुष शरीर में व्यापक रूप से उन्हीं का न्यास करे ॥ ८- १११/२ ॥ उनके संनिधान के लिये होम, प्रोक्षण, स्पर्श एवं जप करे। संनिधापन तथा रोधक आदि सारा कार्य भागत्रय विभागपूर्वक करे। इस प्रकार प्रकृति- पर्यन्त न्यास सारा विधान पूर्ण करके उस पुरुष को पूर्वोक्त कलश में स्थापित कर दे ॥ १२-१३ ॥ ॥ इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराण में ‘प्रासाद-प्रतिष्ठा की विधि का वर्णन’ नामक एक सौ एकवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ १०१ ॥ Content is available only for registered users. Please login or register Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe