नाथ सम्प्रदाय
नाथ शब्द अति प्राचीन है । अनेक अर्थों में इसका प्रयोग वैदिक काल से ही होता रहा है । नाथ शब्द नाथृ धातु से बना है, जिसके याचना, उपताप, ऐश्वर्य, आशीर्वाद आदि अर्थ हैं – “नाथृ नाथृ याचञोपता-पैश्वर्याशीः इति पाणिनी” । अतः जिसमें ऐश्वर्य, आशीर्वाद, कल्याण मिलता है वह “नाथ” है । ‘नाथ’ शब्द का शाब्दिक अर्थ – राजा, प्रभु, स्वामी, ईश्वर, ब्रह्म, सनातन आदि भी है ।
ऋग्वेद के दशम मण्डल के सूक्त १२९ में नाथ के बारे में कहा गया है कि –
को अद्धावेदः कः इह, प्रवोचस्कतु आजातकुत इयं वि सृष्टि ।
आवीग्देवा अस्य विसर्जने नाथा, को वेदयत आवाभूय शंभूयति ।।

अर्थात् – यह सृष्टि कहाँ से हुई ? इस तत्त्व को कौन जानता है ? किसके द्वारा हुई ? क्यों हुई ? कब से हुई ? इत्यादि विषय के समाधानकर्ता व पथ-दृष्टा नाथ ही हैं ।

इस प्रकार प्राचीनतम ग्रन्थ ‘ऋग्वेद’ में ‘नाथ’ का प्रयोग सृष्टिकर्ता, ज्ञाता तथा सृष्टि के निमित्त रुप में मिलता है । ‘अथर्ववेद’ में भी ‘नाथ’ एवं ‘नाथित’ शब्दों का प्रयोग मिलता है ।
नाथ सम्प्रदाय के विश्वकोष ‘गोरक्ष-सिद्धान्त-संग्रह’ में उद्धृत ‘राजगुह्य’ एवं शक्ति संगम तंत्र’ ग्रन्थों में नाथ शब्द की व्याख्या दी गई हैं । ‘राज-गुह्य’ के अनुसार ‘नाथ’ शब्द में ‘ना’ का अर्थ है – ‘अनादि रुप’ और ‘थ’ का अर्थ है – ‘(भुवन त्रय) का स्थापित होना’
नाकारोऽनादि रपं थकारः स्थापते सदा ।
भुवन-त्रयमेवैकः श्री गोरक्ष नमोऽस्तुते ।।

इस कारण नाथ सम्प्रदाय का स्पष्टार्थ वह अनादि धर्म है, जो भुवन-त्रय की स्थिति का कारण है । श्री गोरक्ष को इसी कारण से ‘नाथ’ कहा जाता है । ‘शक्ति-संगम-तंत्र’ के अनुसार ‘ना’ शब्द का अर्थ – ‘नाथ ब्रह्म जो मोक्ष-दान में दक्ष है, उनका ज्ञान कराना हैं’ तथा ‘थ’ का अर्थ है – ‘ज्ञान के सामर्थ्य को स्थगित करने वाला’
श्री मोक्षदान दक्षत्वान् नाथ-ब्रह्मानुबोधनात् ।
स्थगिताज्ञान विभवात श्रीनाथ इति गीयते ।।

चूंकि नाथ के आश्रयण से इस नाथ ब्रह्म का साक्षात्कार होता है और अज्ञान की वृद्धि स्थगित होती है, इसी कारण नाथ शब्द व्यवहृत किया जाता है ।
संस्कृत टीकाकार मुनिदत्त ने ‘नाथ’ शब्द को ‘सतगुरु’ के अर्थ में ग्रहण किया है । ‘गोरखबाणी’ में सम्पादित रचनाओं में नाथ शब्द दो अर्थों में व्यवहृत हैं । (१) रचयिता के रुप में तथा (२) परम तत्त्व के रुप में । ‘गोरक्ष-सिद्धान्त-संग्रह’ ग्रन्थ के प्रथम श्लोक में सगुण और निर्गुण की एकता को ‘नाथ’ कहा गया है –
निर्गुणवामभागे च सव्यभागे उद्भुता निजा ।
मध्यभागे स्वयं पूर्णस्तस्मै नाथाय ते नमः ।।

नेपाल के योगीराज नरहरिनाथ शास्त्री के अनुसार ‘नाथ’ शब्द पद ईश्वर वाचक एवं ब्रह्म वाचक है । ईश्वर की विभूतियाँ जिस रुप में भी जगत में विद्यमान हैं, प्रायः सब नाथ के नाम से प्रसिद्ध हैं । जैसे – आदिनाथ, पशुपतिनाथ, गोरक्षनाथ, मत्स्येन्द्रनाथ, गणनाथ, सोमनाथ, नागनाथ, वैद्यनाथ, विश्वनाथ, जगन्नाथ, रामनाथ, द्वारकानाथ, केदारनाथ, बद्रीनाथ, अमरनाथ, एकलिंगनाथ, पण्डरीनाथ, जालंधरनाथ आदि असंख्य देवता हैं । उनकी पावन स्मृति लेकर नाथ समाज (नाथ सम्प्रदाय) ‘नाथान्त’ नाम रखता है ।
ईश्वर अंश जीव अविनाशी की भावना रखी जाती है । नाथ सम्प्रदाय के सदस्य उपनाम जो भी लगते हों, किन्तु मूल आदिनाथ, उदयनाथ, सत्यनाथ, संतोषनाथ, अचलनाथ, कंथड़िनाथ, मत्स्येन्द्रनाथ, गोरक्षनाथ, जलंधरनाथ आदि नवनाथ चौरासी सिद्ध तथा अनन्त कोटि सिद्धों को अपने आदर्श पूर्वजों के रुप में मानते हैं । मूल नवनाथों से चौरासी सिद्ध हुए हैं और चौरासी सिद्धों से अनन्त कोटि सिद्ध हुए । एक ही ‘अभय-पंथ’ के बारह पंथ तथा अठारह पंथ हुए । एक ही निरंजन गोत्र के अनेक गोत्र हुए । अन्त में सब एक ही नाथ ब्रह्म में लीन होते हैं । सारी सृष्टि नाथब्रह्म से उत्पन्न होती है । नाथ ब्रह्म में स्थित होती हैं तथा नाथ ब्रह्म में ही लीन होती है । इस तत्त्व को जानकर शान्त भाव से ब्रह्म की उपासना करनी चाहिए ।
नवनाथ
नाथ सम्प्रदाय के सबसे आदि में नौ मूल नाथ हुए हैं । वैसे नवनाथों के सम्बन्ध में काफी मतभेद है, किन्तु वर्तमान नाथ सम्प्रदाय के १८-२० पंथों में प्रसिद्ध नवनाथ क्रमशः इस प्रकार हैं –
१॰ आदिनाथ – ॐ-कार शिव, ज्योति-रुप
२॰ उदयनाथ – पार्वती, पृथ्वी रुप
३॰ सत्यनाथ – ब्रह्मा, जल रुप
४॰ संतोषनाथ – विष्णु, तेज रुप
५॰ अचलनाथ (अचम्भेनाथ) – शेषनाग, पृथ्वी भार-धारी
६॰ कंथडीनाथ – गणपति, आकाश रुप
७॰ चौरंगीनाथ – चन्द्रमा, वनस्पति रुप
८॰ मत्स्येन्द्रनाथ – माया रुप, करुणामय
९॰ गोरक्षनाथ – अयोनिशंकर त्रिनेत्र, अलक्ष्य रुप
चौरासी सिद्ध
जोधपुर, चीन इत्यादि के चौरासी सिद्धों में भिन्नता है । अस्तु, यहाँ यौगिक साहित्य में प्रसिद्ध नवनाथ के अतिरिक्त ८४ सिद्ध नाथ इस प्रकार हैं –
१॰ सिद्ध चर्पतनाथ, २॰ कपिलनाथ, ३॰ गंगानाथ, ४॰ विचारनाथ, ५॰ जालंधरनाथ, ६॰ श्रंगारिपाद, ७॰ लोहिपाद, ८॰ पुण्यपाद, ९॰ कनकाई, १०॰ तुषकाई, ११॰ कृष्णपाद, १२॰ गोविन्द नाथ, १३॰ बालगुंदाई, १४॰ वीरवंकनाथ, १५॰ सारंगनाथ, १६॰ बुद्धनाथ, १७॰ विभाण्डनाथ, १८॰ वनखंडिनाथ, १९॰ मण्डपनाथ, २०॰ भग्नभांडनाथ, २१॰ धूर्मनाथ ।
२२॰ गिरिवरनाथ, २३॰ सरस्वतीनाथ, २४॰ प्रभुनाथ, २५॰ पिप्पलनाथ, २६॰ रत्ननाथ, २७॰ संसारनाथ, २८॰ भगवन्त नाथ, २९॰ उपन्तनाथ, ३०॰ चन्दननाथ, ३१॰ तारानाथ, ३२॰ खार्पूनाथ, ३३॰ खोचरनाथ, ३४॰ छायानाथ, ३५॰ शरभनाथ, ३६॰ नागार्जुननाथ, ३७॰ सिद्ध गोरिया, ३८॰ मनोमहेशनाथ, ३९॰ श्रवणनाथ, ४०॰ बालकनाथ, ४१॰ शुद्धनाथ, ४२॰ कायानाथ ।
४३॰ भावनाथ, ४४॰ पाणिनाथ, ४५॰ वीरनाथ, ४६॰ सवाइनाथ, ४७॰ तुक नाथ, ४८॰ ब्रह्मनाथ, ४९॰ शील नाथ, ५०॰ शिव नाथ, ५१॰ ज्वालानाथ, ५२॰ नागनाथ, ५३॰ गम्भीरनाथ, ५४॰ सुन्दरनाथ, ५५॰ अमृतनाथ, ५६॰ चिड़ियानाथ, ५७॰ गेलारावल, ५८॰ जोगरावल, ५९॰ जगमरावल, ६०॰ पूर्णमल्लनाथ, ६१॰ विमलनाथ, ६२॰ मल्लिकानाथ, ६३॰ मल्लिनाथ ।
६४॰ रामनाथ, ६५॰ आम्रनाथ, ६६॰ गहिनीनाथ, ६७॰ ज्ञाननाथ, ६८॰ मुक्तानाथ, ६९॰ विरुपाक्षनाथ, ७०॰ रेवणनाथ, ७१॰ अडबंगनाथ, ७२॰ धीरजनाथ, ७३॰ घोड़ीचोली, ७४॰ पृथ्वीनाथ, ७५॰ हंसनाथ, ७६॰ गैबीनाथ, ७७॰ मंजुनाथ, ७८॰ सनकनाथ, ७९॰ सनन्दननाथ, ८०॰ सनातननाथ, ८१॰ सनत्कुमारनाथ, ८२॰ नारदनाथ, ८३॰ नचिकेता, ८४॰ कूर्मनाथ ।
बारह पंथ
नाथ सम्प्रदाय के अनुयायी मुख्यतः बारह शाखाओं में विभक्त हैं, जिसे बारह पंथ कहते हैं । इन बारह पंथों के कारण नाथ सम्प्रदाय को ‘बारह-पंथी’ योगी भी कहा जाता है । प्रत्येक पंथ का एक-एक विशेष स्थान है, जिसे नाथ लोग अपना पुण्य क्षेत्र मानते हैं । प्रत्येक पंथ एक पौराणिक देवता अथवा सिद्ध योगी को अपना आदि प्रवर्तक मानता है । नाथ सम्प्रदाय के बारह पंथों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है –
१॰ सत्यनाथ पंथ – इनकी संख्या 31 बतलायी गयी है । इसके मूल प्रवर्तक सत्यनाथ (भगवान् ब्रह्माजी) थे । इसीलिये सत्यनाथी पंथ के अनुयाययियों को “ब्रह्मा के योगी” भी कहते हैं । इस पंथ का प्रधान पीठ उड़ीसा प्रदेश का पाताल भुवनेश्वर स्थान है ।
२॰ धर्मनाथ पंथ – इनकी संख्या २५ है । इस पंथ के मूल प्रवर्तक धर्मराज युधिष्ठिर माने जाते हैं । धर्मनाथ पंथ का मुख्य पीठ नेपाल राष्ट्र का दुल्लुदेलक स्थान है । भारत में इसका पीठ कच्छ प्रदेश धिनोधर स्थान पर हैं ।
३॰ राम पंथ – इनकी संख्या ६१ है । इस पंथ के मूल प्रवर्तक भगवान् श्रीरामचन्द्र माने गये हैं । इनका प्रधान पीठ उत्तर-प्रदेश का गोरखपुर स्थान है ।
४॰ नाटेश्वरी पंथ अथवा लक्ष्मणनाथ पंथ – इनकी संख्या ४३ है । इस पंथ के मूल प्रवर्तक लक्ष्मणजी माने जाते हैं । इस पंथ का मुख्य पीठ पंजाब प्रांत का गोरखटिल्ला (झेलम) स्थान है । इस पंथ का सम्बन्ध दरियानाथ व तुलनाथ पंथ से भी बताया जाता है ।
५॰ कंथड़ पंथ – इनकी संख्या १० है । कंथड़ पंथ के मूल प्रवर्तक गणेशजी कहे गये हैं । इसका प्रधान पीठ कच्छ प्रदेश का मानफरा स्थान है ।
६॰ कपिलानी पंथ – इनकी संख्या २६ है । इस पंथ को गढ़वाल के राजा अजयपाल ने चलाया । इस पंथ के प्रधान प्रवर्तक कपिल मुनिजी बताये गये हैं । कपिलानी पंथ का प्रधान पीठ बंगाल प्रदेश का गंगासागर स्थान है । कलकत्ते (कोलकाता) के पास दमदम गोरखवंशी भी इनका एक मुख्य पीठ है ।
७॰ वैराग्य पंथ – इनकी संख्या १२४ है । इस पंथ के मूल प्रवर्तक भर्तृहरिजी हैं । वैराग्य पंथ का प्रधान पीठ राजस्थान प्रदेश के नागौर में राताढुंढा स्थान है । इस पंथ का सम्बन्ध भोतंगनाथी पंथ से बताया जाता है ।
८॰ माननाथ पंथ – इनकी संख्या १० है । इस पंथ के मूल प्रवर्तक राजा गोपीचन्द्रजी माने गये हैं । इस समय माननाथ पंथ का पीठ राजस्थान प्रदेश का जोधपुर महा-मन्दिर नामक स्थान बताया गया है ।
९॰ आई पंथ – इनकी संख्या १० है । इस पंथ की मूल प्रवर्तिका गुरु गोरखनाथ की शिष्या भगवती विमला देवी हैं । आई पंथ का मुख्य पीठ बंगाल प्रदेश के दिनाजपुर जिले में जोगी गुफा या गोरखकुई नामक स्थान हैं । इनका एक पीठ हरिद्वार में भी बताया जाता है । इस पंथ का सम्बन्ध घोड़ा चौली से भी समझा जाता है ।
१०॰ पागल पंथ – इनकी संख्या ४ है । इस पंथ के मूल प्रवर्तक श्री चौरंगीनाथ थे । जो पूरन भगत के नाम से भी प्रसिद्ध हैं । इसका मुख्य पीठ पंजाब-हरियाणा का अबोहर स्थान है ।
११॰ ध्वजनाथ पंथ – इनकी संख्या ३ है । इस पंथ के मूल प्रवर्तक हनुमानजी माने जाते हैं । वर्तमान में इसका मुख्य पीठ सम्भवतः अम्बाला में है ।
१२॰ गंगानाथ पंथ – इनकी संख्या ६ है । इस पंथ के मूल प्रवर्तक श्री भीष्म पितामह माने जाते हैं । इसका मुख्य पीठ पंजाब में गुरुदासपुर जिले का जखबार स्थान है ।
कालान्तर में नाथ सम्प्रदाय के इन बारह पंथों में छह पंथ और जुड़े – १॰ रावल (संख्या-७१), २॰ पंक (पंख), ३॰ वन, ४॰ कंठर पंथी, ५॰ गोपाल पंथ तथा ६॰ हेठ नाथी ।
इस प्रकार कुल बारह-अठारह पंथ कहलाते हैं । बाद में अनेक पंथ जुड़ते गये, ये सभी बारह-अठारह पंथों की उपशाखायें अथवा उप-पंथ है । कुछ के नाम इस प्रकार हैं – अर्द्धनारी, अमरनाथ, अमापंथी। उदयनाथी, कायिकनाथी, काममज, काषाय, गैनीनाथ, चर्पटनाथी, तारकनाथी, निरंजन नाथी, नायरी, पायलनाथी, पाव पंथ, फिल नाथी, भृंगनाथ आदि ।

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