ब्रह्मवैवर्तपुराण – ब्रह्मखण्ड – अध्याय 30
ॐ श्रीगणेशाय नमः
ॐ श्रीराधाकृष्णाभ्यां नमः
तीसवाँ अध्याय
नारायण के द्वारा परमपुरुष परमात्मा श्रीकृष्ण तथा प्रकृतिदेवी की महिमा का प्रतिपादन

श्रीनारायण बोले — गणेश, विष्णु, शिव, रुद्र, शेष, ब्रह्मा आदि देवता, मनु, मुनीन्द्रगण, सरस्वती, पार्वती, गङ्गा और लक्ष्मी आदि देवियाँ भी जिनका सेवन करती हैं, उन भगवान् गोविन्द के चरणारविन्द का चिन्तन करना चाहिये । जो अत्यन्त गम्भीर और भयंकर दावाग्निरूपी सर्प से आवेष्टित हो छटपटाते अङ्ग वाले संसार-सागर को लाँघकर उस पार जाना चाहता है और श्रीहरि के दास्य-सुख को पाने की इच्छा रखता है, वह भगवान् श्रीकृष्ण के चरणारविन्द का चिन्तन करे ।

गणेशब्रह्मेशसुरेशशेषाः सुराश्च सर्वे मनवो मुनीन्द्राः । सरस्वतीश्रीगिरिजादिकाश्च नमन्ति देव्यः प्रणमामि तं विभुम् ॥

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

जिन्होंने गोवर्धन पर्वत को हाथ पर उठाकर व्रजभूमि को इन्द्र के कोप से बचाने की कीर्ति प्राप्त की है, वाराहावतार के समय एकार्णव के जल में गली जाती हुई पृथ्वी को अपनी दाढ़ों के अग्रभाग से उठाकर जल के ऊपर स्थापित किया तथा जो अपने रोमकूपों में असंख्य विश्व-ब्रह्माण्ड को धारण करते हैं, उन आदिपुरुष भगवान् गोविन्द के चरणारविन्द का चिन्तन करना चाहिये । जो गोपाङ्गनाओं के मुखारविन्द के रसिक भ्रमर हैं और वृन्दावन में विहार करने वाले हैं, उन व्रजवेषधारी विष्णु रूप परमपुरुष रसिक-रमण रासेश्वर श्रीकृष्ण के चरणारविन्द का चिन्तन करना चाहिये ।

वत्स नारदमुने! जिनके नेत्रों की पलक गिरते ही जगत्स्रष्टा ब्रह्मा नष्ट हो जाते हैं, उनके कर्म का वर्णन करने में भूतल पर कौन समर्थ है ? तुम भी श्रीहरि के चरणारविन्द का अत्यन्त आदरपूर्वक चिन्तन करो। तुम और हम उन भगवान् की कला की कला के अंशमात्र हैं। मनु और मुनीन्द्र भी उनकी कला के कलांश ही हैं। महादेव और ब्रह्माजी भी कलाविशेष हैं और महान् विराट्-पुरुष भी उनकी विशिष्ट कलामात्र हैं । सहस्र सिरों वाले शेषनाग सम्पूर्ण विश्व को अपने मस्तक पर सरसों के एक दाने के समान धारण करते हैं, परंतु कूर्म के पृष्ठभाग में वे शेषनाग ऐसे जान पड़ते हैं, मानो हाथी के ऊपर मच्छर बैठा हो । वे भगवान् कूर्म (कच्छप) श्रीकृष्ण की कला के कलांशमात्र हैं ।

नारद! गोलोकनाथ भगवान् श्रीकृष्ण का निर्मल यश वेद और पुराण में किञ्चिन्मात्र भी प्रकट नहीं हुआ। ब्रह्मा आदि देवता भी उसका वर्णन करने में समर्थ नहीं हैं । ब्रह्मपुत्र नारद! तुम उन सर्वेश्वर श्रीकृष्ण का ही मुख्यरूप से भजन करो। जिन विश्वाधार परमेश्वर के सम्पूर्ण लोकों में सदा बहुत-से ब्रह्मा, विष्णु तथा रुद्र रहा ही करते हैं तथा श्रुतियाँ और देवता भी उनकी नियत संख्या को नहीं जानते हैं, उन्हीं परमेश्वर श्रीकृष्ण की तुम आराधना करो। वे विधाता के भी विधाता हैं । वे ही जगत्प्रसविनी नित्यरूपिणी प्रकृति को प्रकट करके संसार की सृष्टि करते हैं । ब्रह्मा आदि सब देवता प्रकृति-जन्य हैं । वे भक्तिदायिनी श्रीप्रकृति का भजन करते हैं ।

प्रकृति ब्रह्म-स्वरूपा है । वह ब्रह्म से भिन्न नहीं है । उसी के द्वारा सनातन पुरुष परमात्मा संसार की सृष्टि करते हैं, श्रीप्रकृति की कला से ही संसार की सारी स्त्रियाँ प्रकट हुई हैं। प्रकृति ही माया है, जिसने सबको मोह में डाल रखा है। वह सनातनी परमा प्रकृति नारायणी कही गयी है; क्योंकि वह परमपुरुष नारायण की शक्ति है। सर्वात्मा ईश्वर भी उसी के द्वारा शक्तिमान् होते हैं । उस शक्ति के बिना वे सृष्टि करने में सदा असमर्थ ही हैं ।

वत्स! तुम इस समय जाकर विवाह करो। मैं तुम्हें पिता के आदेश का पालन करने की आज्ञा देता हूँ। जो गुरु की आज्ञा का पालन करने वाला है, वह सदा सर्वत्र पूजनीय तथा विजयी होता है । जो पुरुष वस्त्र, अलंकार और चन्दन से अपनी पत्नी का सत्कार करता है, उस पर प्रकृतिदेवी संतुष्ट होती हैं। ठीक उसी तरह जैसे ब्राह्मण की पूजा-अर्चा करने पर भगवान् श्रीकृष्ण संतुष्ट होते हैं। प्रकृति ही सम्पूर्ण लोकों में अपनी माया से स्त्रियों के रूप में प्रकट हुई हैं। अतः महिलाओं के अपमान से वे प्रकृतिदेवी ही अपमानित होती हैं। जिसने पति-पुत्र से युक्त सती-साध्वी दिव्य नारी का पूजन किया है, उसके द्वारा सर्वमङ्गलदायिनी प्रकृतिदेवी का ही पूजन सम्पन्न हुआ है। मूल प्रकृति एक ही है । वह पूर्ण ब्रह्मस्वरूपिणी है । उसी को सनातनी विष्णुमाया कहा गया है। सृष्टिकाल में वह पाँच रूपों में प्रकट होती है ।

जो परमात्मा श्रीकृष्ण के प्राणों की अधिष्ठात्री देवी है तथा समस्त प्रकृतियों में उन्हें सबसे अधिक प्यारी है, उस मुख्या प्रकृति का नाम ‘राधा’ है। दूसरी प्रकृति नारायणप्रिया लक्ष्मी हैं, जो सर्वसम्पत्स्वरूपिणी हैं। तीसरी प्रकृति वाणी की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती हैं, जो सदा सबके द्वारा पूजनीया हैं। चौथी प्रकृति वेदमाता सावित्री हैं। वे ब्रह्माजी की प्यारी पत्नी और सबकी पूजनीया हैं। पाँचवीं प्रकृति का नाम दुर्गा है, जो भगवान् शंकर की प्यारी पत्नी हैं। उन्हीं के पुत्र गणेश हैं । (अध्याय ३०)

॥ इति श्रीब्रह्मवैवर्त्ते महापुराणे ब्रह्मखण्डे सौतिशौनकसंवादे भगवत्स्तुतितत्स्वरूपवर्णनं नाम त्रिंशत्तमोऽध्यायः ॥ ३० ॥
॥ इति श्रीब्रह्मवैवर्ते महापुराणे प्रथमं ब्रह्मखण्डं सम्पूर्णम् ॥
॥ हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥

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