January 13, 2019 | aspundir | Leave a comment भविष्यपुराण – उत्तरपर्व – अध्याय १६७ ॐ श्रीपरमात्मने नमः श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय भविष्यपुराण (उत्तरपर्व) अध्याय १६७ आपाक-दान के प्रसंग में राजा हव्यवाहन की कथा महाराज युधिष्ठिर ने पूछा — भगवन् ! कृपाकर आप ऐसा कोई दान बतायें, जिससे मनुष्य धन, पुत्र और सौभाग्य से सम्पन्न हो सके । भगवान् श्रीकृष्ण बोले — महाराज ! मैं इस सम्बन्ध में एक इतिहास कह रहा हूँ, आप श्रद्धापूर्वक सुनिये । किसी समय चन्द्रवंश में हव्यवाहन नाम का एक राजा हुआ था । उसके राज्य में न कोई उपद्रव होता था और न कोई उसका शत्रु ही था । सभी नीरोग रहते थे । यह बड़ा प्रतापी, स्वस्थ, बली और शत्रुओं पर विजय प्राप्त करनेवाला था । परंतु पूर्वजन्म के अशुभ कर्म के प्रभाव से उसके पास कोई ऐसा मन्त्री नहीं था जो राज्य को सुचारुरूप से चला सके तथा उसे कोई पुत्र, मित्र या सहायक बन्धुबान्धव भी न था । उसे कभी समय से भोजन आदि भी नहीं मिल पाता था । इस कारण वह राजा सदा चिन्तित रहता था । एक बार उसके यहाँ पिप्पलाद मुनि पधारे । राजा की पटरानी शुभावती ने मुनि की श्रद्धापूर्वक पाद्य, अर्घ्य आदि से पूजा की और आसन पर उन्हें बैठाकर निवेदन किया कि ‘मुनीश्वर ! यह निष्कण्टक राज्य तो हमें मिला है, परंतु मन्त्री, मित्र, पुत्र आदि हमें क्यों नहीं प्राप्त हुए । इसका कारण बताने की कृपा करें ।’ रानी का वचन सुनकर पिप्पलाद मुनि ने कहा कि — ‘देवि ! पूर्वजन्म में किये गये कर्मों के फल ही अगले जन्म में प्राप्त होते हैं, यह कर्मभूमि हैं, अतः तुम्हें शोक नहीं करना चाहिये । जिस पदार्थ का पूर्वजन्म में मनुष्य ने सम्पादन नहीं किया है, उसे शत्रु, मित्र, बान्धव, राजा आदि कोई भी नहीं दे सकते । पूर्वजन्म में तुमने राज्य का दान किया था, वह तुम्हें प्राप्त हो गया, परंतु तुमलोगों ने मित्र, भृत्य आदि से कोई सम्बन्ध नहीं रखा, अतः इस जन्म में ये सब कैसे प्राप्त होंगे ?’ इस पर रानी शुभावती बोली — महाराज ! पूर्वजन्म में जो हुआ वह तो बीत गया, अब इस समय आप ऐसा कोई व्रत, दान, उपवास, मन्त्र अथवा सिद्धयोग बताने की कृपा करें, जिससे मुझे पुत्र, धन, मित्र, भृत्य इत्यादि प्राप्त हो सकें । रानी का वचन सुनकर पिप्पलाद मुनि बोले — ‘भद्रे ! एक आपाक नाम का महादान है, जो सभी सम्पत्तियों का प्रदायक है । श्रद्धापूर्वक कोई भी आपाक का दान करता है तो उसे महान् लाभ होता है । इसलिये तुम श्रद्धा से आपाकदान करो ।’ मुनि के कथनानुसार रानी शुभावती ने आपाकदान किया । भगवान् श्रीकृष्ण ने पुनः कहा — महाराज ! अब मैं उस आपाक-दान की विधि बता रहा हूँ, आप श्रद्धापूर्वक सुनें । बुद्धिमान् व्यक्ति को चाहिये कि ग्रह और ताराबल का विचारकर शुभ मुहूर्त में अगर, चन्दन, धूप, पुष्प, वस्त्र, आभूषण, नैवेद्य आदि से भार्गव (कुम्हार) का ऐसा सम्मान करे, जिससे वह संतुष्ट हो और उससे निवेदन करे कि महाभाग ! आप विश्वकर्मास्वरूप हैं । आप मेरे लिये सुन्दर छोटे-बड़े मिट्टी के घड़े, स्थाली, कसोरे, कलश आदि पात्रों का निर्माण करें । भार्गव भी उन पात्रों को बनाये । तदनन्तर विधिपूर्वक एक आँवाँ-भट्ठी लगाये । अनन्तर उन एक हजार मिट्टी के पात्रों को आँवें में स्थापित कर सायंकाल के समय उसमें अग्नि प्रज्वलित करे और रात्रि को जागरणकर वाद्य, गीत, नृत्य आदि की व्यवस्था कर उत्सव मनाये । सुप्रभात होते ही यजमान आँवें की अग्नि को शान्तकर पात्रों को बाहर निकाल ले । अनन्तर स्नानकर श्वेत वस्त्र पहनकर उनमें से सोलह पात्रों को सामने स्थापित करे । रक्तवस्त्र से उन्हें आच्छादितकर पुष्पमालाओं से उसका अर्चन करे और ब्राह्मणों द्वारा स्वस्तिवाचन आदि कराकर भार्गव का भी पूजन करे । ये पात्र माणिक्य, सोने, चांदी अथवा मिट्टी तक के हो सकते हैं । सौभाग्यवती स्त्रियों की पूजाकर भाण्डों की प्रदक्षिणा करनी चाहिये और इन मन्त्रों को पढ़ते हुए उन पात्रों का दान करना चाहिये — “आपाक ब्रह्मरूपोऽसि भाण्डानीमानि जन्तवः । प्रदानात् ते प्रजापुष्टिः स्वर्गश्चास्तु ममाक्षयः ।। भाण्डरूपाणि यान्यत्र कल्पितानि मया किल । भूत्वा सत्पात्ररूपाणि उपत्तिष्ठन्तु ‘तानि मे ।।” (उतरपर्व १६७ । ३२-३३) ‘आपाक (आँधी) ! आप ब्रह्मरूप हैं और ये सभी भाण्ड प्राणीरूप हैं । आपके दान करने से मुझे प्रजाओं से पुष्टि प्राप्त हो, अक्षय स्वर्ग प्राप्त हो । मैंने जितने पात्र निर्माण कराये हैं, ये सभी सत्पात्र के रूप में मेरे समक्ष प्रस्तुत रहें । जिसकी इच्छा जिस पात्र को लेने की हो उसे वह स्वयं ही ले ले, रोके नहीं । इस विधि से जो पुरुष अथवा स्त्री भी इस आपाक दान को करते हैं, उससे तीन जन्म तक विश्वकर्मा संतुष्ट रहते हैं और पुत्र, मित्र, भृत्य, घर आदि सभी पदार्थ मिल जाते हैं । जो स्त्री इस दान को भक्तिपूर्वक करती है, वह सौभाग्यशाली पति के साथ पुत्र-पौत्रादि सभी पदार्थों को प्राप्त कर लेती है और अन्त में अपने पतिसहित स्वर्ग को जाती है । नरेश्वर ! यह आपाक-दान भूमिदान के समान ही है । (अध्याय १६७) Please follow and like us: Related Discover more from Vadicjagat Subscribe to get the latest posts sent to your email. Type your email… Subscribe