Print Friendly, PDF & Email

भविष्यपुराण – उत्तरपर्व – अध्याय १८६
ॐ श्रीपरमात्मने नमः
श्रीगणेशाय नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
भविष्यपुराण
(उत्तरपर्व)
अध्याय १८६
सुवर्णनिर्मित अश्वदान-विधि का वर्णन

श्रीकृष्ण बोले — मैं तुम्हें इस समय सुवर्ण निर्मित अश्व की प्रतिमाका दान विधान बता रहा हूँ । नरोत्तम ! किसी पुण्य दिवस में किसी गुणी सत्पात्र को यथाशक्ति तीन पल से लेकर सौ पल तक सुवर्ण की निर्मित वह प्रतिमा, जो उत्तम खजीन (लगाम) से भूषित, उन्नत स्कंध, दृढ जानु (घुटने) और वोलधि समेत हो, वेदी के मध्यभाग में कृष्णमृग और तिल के ऊपर रेशमी वस्त्र से आच्छन्न और कुंकुम से अनुलिप्त कर प्रतिष्ठित करे ।om, ॐ श्वेत पुष्प से पूजित कर (अश्व के) भक्षणार्थ चना अर्पित करे । अनन्तर ! उस पर्व के समय हाथ में पुष्पाञ्जलि लेकर संयम पूर्वक इस पुराण के मंत्र का उच्चारण करे —

“नमस्ते सर्वदेवेश वेदाहरणलम्पट ॥
वाजिरूपेण रामस्मात् पाहि संसारसागरात् ।
त्वमेव सप्तधा भूत्वा छन्दोरूपेण भास्करम् ॥
यस्नाद् धारयसे लोकानतः पाहि सनातन ।”
(उत्तरपर्व १८६ । ६-८)
सर्वदेवेश तथा अश्वरूप से वेद के अपहरण करने वाले लम्पट! इस संसारसागर से मेरी रक्षा करो । सनातन ! सातरूपों में विभक्त होकर छंदोरूप से भास्कर और लोकों को धारण करते हो, अतः मेरी रक्षा करो ।’

राजन्! ऐसा कहकर उसे ब्राह्मण को अर्पित करते हुए प्रदक्षिणा तथा नमस्कार करके विसर्जन करे। राजन्! इस विधान द्वारा अलंकृत हिरण्याश्व का दान करने वाला पाप विनाशपूर्वक सूर्य का अक्षय लोक प्राप्त करता है । पुनः उस दिन तेल नमक रहित भोजन कर पश्चात् पुराण श्रवण करे । नरेन्द्र ! किसी पुण्य अवसर पर इस हिरण्याश्व विधान सुसम्पन्न करने वाला मनुष्य पाप मुक्त होकर सिद्धों से पूजित कृष्ण लोक की प्राप्ति करता है । इस भाँति इस सुवर्णाश्व विधान को पढ़ने वाला भी पाप मुक्त होकर अश्व युक्त उस सुवर्ण मय विमान द्वारा स्वर्ग पहुंचकर देवाङ्गनाओं से सुसेवित होता है। उसी भाँति इस हिरण्याश्व आख्यान का श्रवण या स्मरण करने वाला पुरुष जो इस दान का सतत समर्थन करता है शुद्ध शरीरहोकर इन्द्र लोक की प्राप्ति करता है ।
(अध्याय १८६)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.