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भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय १९
ॐ श्रीपरमात्मने नमः
श्रीगणेशाय नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
भविष्यपुराण
(प्रतिसर्गपर्व — द्वितीय भाग)
अध्याय – १९
विप्रपुत्रकथा

चित्रकूट में रूपदत्त नामक राजा रहता था । वह मृगया (शिकार) के लिए एक वन से दूसरे वन में पहुँच गया । वहां मध्याह्न के समय सरोवर के तट पर कमल-पुष्प का संचय करने वाली किसी मुनि की पुत्री ने देखा । जो रूपलावण्य पूर्ण और यौवन के मदसे उन्मत्त सी रहती थी । वे दोनों आपस में एक दूसरे से आँख मिला रहे थे कि उसी समय वहाँ पहुँच कर महर्षि ने उन दोनों को देख लिया । om, ॐउनके देखते ही राजा को ज्ञान उत्पन्न हो गया । विनय विनम्र होकर राजा ने उनसे उत्तम धर्म की जिज्ञासा की । ज्ञान- निपुण मुनि ने दया और धर्म का अत्यन्त पोषक वर्णन आरम्भ किया । अभयदान के समान कोई दान न कहीं है और न होगा । इसीलिए अपराधी को दण्ड प्रदान करने से पूजनीय की पूजा का फल प्राप्त होता है । गौ और ब्राह्मण से नित्य मित्रता, दंडविधान में समता, देवों की अर्चना में सत्यता, गुरु की सेवा में (इन्द्रिय) दमन, दान के समय कोमलता और निदित कर्मों में संतोष करना चाहिए । इतना कहकर वे महर्षि उन्हें अपनी पुत्री प्रदान कर घर चले गये । उपरांत राजा उसके साथ किसी बरगद के मूल भाग पर शयन करने लगे । उस समय किसी राक्षस ने उनकी पत्नी को भक्षण करने के उद्देश्य से राजा को जगाकर कहा—मुझे बलि चाहिए । राजा ने कहा- आज के सातवें दिन दान रूप में सात वर्ष का एक ब्राह्मण पुत्र मैं आपको दूँगा । इस प्रकार सत्य प्रतिज्ञा करके राजा अपने घर चले गये । वहाँ पहुँचकर अपने मंत्री से परामर्श करके एक ब्राह्मण को एक लक्ष का सुवर्ण प्रदानकर उसके मध्यम पुत्र का क्रय किया और राक्षस को उसी की बलि दी गई। निधन के समय उस बालक ने पहले हँसा और पश्चात् रुदन किया। उसने पहले हँसकर पीछे रुदन क्यों किया ?

इसे सुनकर राजा ने वैताल से कहा-द्विज ! ज्येष्ठ पुत्र पिता के लिए और कनिष्ठ (छोटा) पुत्र माता को प्रिय होता है, ऐसा जानकर वह मध्यम (मझला) पुत्र राजा की शरण में गया किन्तु निर्दयी उस राजा रूपसेन को हाथ में खड्ग लिए हुए देखकर उस बालक ने अपने कल्याणार्थ हँसा और राक्षस की उदरपूर्ति के लिए मेरी शरीर की बलि दी जा रही है, ऐसा जानकर उसने रुदन किया ।
(अध्याय १९)

See Also :-

1.  भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २१६
2. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व प्रथम – अध्याय १९ से २१
3. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व द्वितीय – अध्याय १९ से २१

4. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व तृतीय – अध्याय २०
5. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व प्रथम – अध्याय ७
6. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय १
7. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय २
8. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ३
9. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ४
10. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ५
11. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ६
12. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ७
13. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ८
14. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ९
15. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय १०
16. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय ११
17. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय १२
18. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय १३
19. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय १४
20. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय १५
21. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय १६
22. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय १७
23. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व द्वितीय – अध्याय १८

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