December 25, 2018 | aspundir | Leave a comment भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व प्रथम – अध्याय ६ ॐ श्रीपरमात्मने नमः श्रीगणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय भविष्यपुराण (प्रतिसर्गपर्व — प्रथम भाग) अध्याय – ६ काश्यप के उपाध्याय, दीक्षित आदि दस पुत्रों का नामोल्लेख, मगध के राजवंश और बौद्ध राजाओं का तथा चौहान और परमार आदि राजवंशों का वर्णन शौनकजी ने कहा — महाराज ! ब्रह्मावर्त में ब्रह्मावर्त मुख्यरूपसे गढ़ाका उत्तरी भाग है, जो बिजनौरसे लेकर प्रयागतक और उत्तरमें नैमिषारण्यतक फैला है। म्लेच्छगण क्यों नहीं आ सके, इसका कारण बताये । सूतजी बोले — मुने ! सरस्वती के प्रभाव से वे सब वहाँ नहीं आ सके । वहाँ काश्यप नाम के एक ब्राह्मण रहते थे । वे कलि के हजार वर्ष बीतने पर देवताओं की आज्ञा से स्वर्गलोक से ब्रह्मावर्त में आये । उनकी धर्म-पत्नी का नाम था आर्यावती । उससे काश्यप के दस पुत्र उत्पन्न हुए, उनके नाम इस प्रकार है — उपाध्याय, दीक्षित, पाठक, शुक्ल, मिश्र, अग्निहोत्री, द्विवेदी, त्रिवेदी, पाण्ड्य तथा चतुर्वेदी । ये अपने नाम के अनुरूप गुणवाले थे । उनके पिता काश्यप, जो सभी ज्ञानों से समन्वित और सम्पूर्ण वेदों के ज्ञाता थे, उनके बीच रहकर उन्हें ज्ञान देते रहते थे । काश्यप ने काश्मीर में जाकर जगज्जननी सरस्वती को रक्तपुष्प, अक्षत, धुप, दीप, नैवेद्य तथा पुष्पाञ्जलि द्वारा संतुष्ट किया । देवी की स्तुति करते हुए काश्यप ने कहा — ‘मातः ! शंकरप्रिये ! मुझ पर आपकी करुणा क्यों नहीं होती ? देवि ! आप सारे संसार की माता हैं, फिर मुझे जगत् से बाहर क्यों मानती हैं ? देवि ! देवताओं के लिये धर्मद्रोहियों को आप क्यों नहीं मारती हैं ? म्लेच्छों को मोहित कीजिये और उत्तम संस्कृत भाषा का विस्तार कीजिये । अम्ब ! आप अनेक रूपों को धारण करनेवाली हैं, हुंकारस्वरूपा हैं, आपने धूम्रलोचन को मारा हैं । दुर्गारूप में आपने भयंकर दैत्यों को मारकर जगत् में सुख प्रदान किया है । मातः आप दम्भ, मोह तथा भयंकर गर्व का नाशकर सुख प्रदान करे और दुष्टों का नाश करें तथा संसार में ज्ञान प्रदान करे ।’इस स्तुति से प्रसन्न होकर सरस्वतीदेवी ने उन काश्यप मुनि के मन में निवासकर उन्हें ज्ञान प्रदान किया । वे मुनि मिश्र देश में चले गये और उन्होंने वहाँ म्लेच्छों को मोहित कर उन्हें द्विजन्मा बना लिया । सरस्वती के अनुग्रह से उन लोगों के साथ सदा मुनिवृत्ति में तत्पर मुनिश्रेष्ठ काश्यप ने आर्यदेश में निवास किया । उन आर्यों की देवी के वरदान से बहुत वृद्धि हुई । काश्यप मुनि का राज्यकाल एक सौ बीस वर्षतक रहा । राज्यपुत्र नामक देश में आठ हजार शुद्र हुए । उनके राजा आर्य पृथु हुए । उनसे ही मागध की उत्पत्ति हुई । मागध नाम के पुत्र का अभिषेक कर पृथु चले गये । यह सुनकर भृगु-श्रेष्ठ शौनक आदि ऋषि प्रसन्न हो गये । फिर वे पौराणिक सुत को नमस्कार कर विष्णु के ध्यान में तत्पर हो गये । चार वर्ष तक ध्यान में रहकर उठे और नित्य-नैमित्तिक क्रियाओं को सम्पन्न कर पुनः सूतजी के पास गये और बोले – ‘लोमहर्षणजी ! अब आप मागध राजाओं का वर्णन करें । किन मागधों ने कलियुग में राज्य किया, हे व्यासशिष्य ! आप हमें यह बतायें ।’सूतजी ने कहा — मगध-प्रदेश में काश्यप पुत्र मागध ने पिता से प्राप्त राज्य का भार वहन किया । उन्होंने आर्यदेश को अलग कर दिया । पाञ्चाल (पंजाब)— से पूर्व का देश मगध वहाँ से लेकर आगे उदयाश्वतक मगध के राजवंश का वर्णन है, जिनकी राजधानी राजगृह थी। देश कहा जाता है । मगध की आग्नेय दिशा में कलिंग (उड़ीसा), दक्षिण में अवन्तिदेश, नैर्ऋत्य में आनर्त (गुजरात), पश्चिम में सिन्धुदेश, वायव्य दिशा में कैकेय देश, उत्तर में मद्रदेश और ईशान में कुलिन्द देश है । इस प्रकार आर्यदेश का उन्होंने भेद किया । इस देश का नामकरण महात्मा मागध के पुत्र ने किया था । अनन्तर राजा ने यज्ञ के द्वारा बलरामजी को प्रसन्न किया, इसके फलस्वरूप बलभद्र के अंश से शिशुनाग का जन्म हुआ, उसने सौ वर्ष तक राज्य किया । उसे काकवर्मा नाम का पुत्र हुआ, उसने नब्बे वर्ष तक राज्य किया । उसे क्षेमधर्मा नाम का पुत्र हुआ, उसने अस्सी वर्ष राज्य किया । उसका पुत्र क्षेत्रौजा हुआ, उसने सत्तर वर्ष तक राज्य किया । उसके वेदमिश्र नामक पुत्र हुआ, उसने साठ वर्ष तक शासन किया । उसे अजातरिपु (अजातशत्रु) नामक पुत्र हुआ, उसने पचास वर्ष तक राज्य किया । उसका पुत्र दर्भक हुआ, उसने चालीस वर्ष तक राज्य किया । उसे उदयाश्व इसी ने राजगृह से हटाकर राजधानी गङ्गा के किनारे बसायी और उसका नाम पाटलिपुत्र या पटना पड़ा । इसके आगे के राजागण पटना से ही भारत का शासन करते थे। नाम का पुत्र हुआ, उसने तीस वर्ष तक शासन किया । उसका पुत्र नन्दवर्धन हुआ, उसने बीस वर्ष तक शासन किया । नन्दवर्धन का पुत्र नन्द हुआ, उसने पिता के तुल्य वर्षों तक राज्य किया । नन्द के प्रनन्द हुआ, जिसने दस वर्ष राज्य किया । उससे परानन्द हुआ, उसने अपने पिता के समान वर्षों तक ही राज्य किया । उससे समानन्द हुआ, उसने बीस वर्ष राज्य किया । उससे प्रियानन्द हुआ, उसने भी पिता के समान वर्षों तक राज्य किया । उसका पुत्र देवानन्द हुआ, उसने भी पिता के समान राज्य किया । देवानन्द का पुत्र यज्ञभंग हुआ, उसने अपने पिता के आधे वर्षों तक (दस वर्ष) राज्य किया । उसका पुत्र मौर्यानन्द और उसका पुत्र महानन्द हुआ । दोनों ने अपने-अपने पिता के समान वर्षों तक राज्य किया । इसी समय कलि ने हरि का स्मरण किया । अनन्तर प्रसिद्ध गौतम नामक देवता की काश्यप से उत्पत्ति हुई । उसने बौद्धधर्म को संस्कृतकर पट्टण नगर (कपिलवस्तु)— में प्रचार किया और दस वर्ष तक राज्य किया यहाँ से आगे अब लिच्छवि राज्यवंशका वर्णन है, जिसकी राजधानी कपिलवस्तु थी।। उससे शाक्यमुनि का जन्म हुआ, उसने भी बीस वर्ष तक राज्य किया । उससे सुद्धोदन नामक पुत्र हुआ, उसने तीस वर्ष तक शासन किया । उससे शक्यसिंह का जन्म हुआ । कलियुग के दो हजार वर्ष व्यतीत हो जाने के बाद शताद्री में उसने शासन किया । कलि के प्रथम चरण में वेदमार्ग को उसने विनष्ट कर दिया और साठ वर्ष तक उसने राज्य किया । उससमय प्रायः सभी बौद्ध हो गये । विष्णुस्वरूप उसके राजा होनेपर जैसा राजा था, वैसी ही प्रजा हो गयी, क्योंकि विष्णु की शक्ति के अनुसार ही जगत् में धर्म की प्रवृत्ति होती है । जो मनुष्य मायापति हरि की शरण में जाते हैं, वे उनकी कृपा के प्रभाव से मोक्ष के भागी हो जाते हैं । शक्यसिंह का पुत्र बुद्धसिंह हुआ, उसने तीस वर्ष राज्य किया । उसका पुत्र (शिष्य) चन्द्रगुप्त अब यहाँ फिर पाटलिपुत्र के राजवंश का वर्णन प्रारम्भ हुआ और यह चन्द्रगुप्त ही मौर्यवंश का पहला राजा था । जिसने भारत के साथ अन्य देशपर अधिकार किया था, जिन्हें बाद में अशोक ने बौद्ध देश बना डाला । उन दिनों वे सभी देश भारतके ही उपनिवेश थे । जिसका यहाँ आगे वर्णन है । चन्द्रगुप्त ने ही सेल्यूकस की पुत्री से शादी की थी। हुआ, जिसने पारसीदेश के राजा सुलूब (सेल्यूकस)— की पुत्री के साथ विवाह कर यवन-सम्बन्धी बौद्धधर्म का प्रचार किया । उसने साठ वर्ष तक शासन किया । चन्द्रगुप्त का पुत्र बिन्दुसार (बिम्बसार) हुआ । उसने भी पिता के समान राज्य किया । उसका पुत्र अशोक हुआ । उसी समय कान्यकुब्ज देश का ब्राह्मण आबू पर्वतपर चला गया और वहाँ उसने विधिपूर्वक ब्रह्महोत्र सम्पन्न किया । वेदमन्त्रों के प्रभाव से यज्ञकुण्ड से चार क्षत्रियों की उत्पत्ति हुई — प्रमर – परमार (सामवेदी), चपहानि – चौहान (कृष्णयजुर्वेदीय) त्रिवेदी – गहरवार (शुक्ल यजुर्वेद ) और परिहारक (अथर्ववेदी) क्षत्रिय थे । वे सब ऐरावत कुल में उत्पन्न राजों पर आरूढ़ होते थे । इन लोगोने अशोक के वंशजों को अपने अधीन कर भारतवर्ष के सभी बौद्धों को नष्ट कर दिया । अवन्त में प्रमर – परमार राजा हुआ । उसने चार योजन विस्तृत अम्बावती नामक पुरी में स्थित होकर सुखपूर्वक जीवन व्यतीत किया । (अध्याय ६) See Also :- 1. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २१६ 2. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व प्रथम – अध्याय १९ से २१ 3. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व द्वितीय – अध्याय १९ से २१ 4. भविष्यपुराण – मध्यमपर्व तृतीय – अध्याय २० 5. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व प्रथम – अध्याय १ 6. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व प्रथम – अध्याय २ 7. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व प्रथम – अध्याय ३ 8. भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व प्रथम – अध्याय ४ से ५ Related