भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३४
ॐ श्रीपरमात्मने नमः
श्रीगणेशाय नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
भविष्यपुराण
(ब्राह्मपर्व)
अध्याय – ३४
विभिन्न तिथियों एवं नक्षत्रों में कालसर्प से डँसे हुए पुरुष के लक्षण, नागों की उत्पत्ति की कथा

कश्यप मुनि बोले – गौतम ! अब मैं कालसर्प से काटे हुए पुरुष का लक्षण कहता हूँ, जिस पुरुष को कालसर्प काटता हैं, उसकी जिह्वा भंग हो जाती है, हृदय में दर्द होता हैं, नेत्रों से दिखायी नहीं देता, दाँत और शरीर पके हुए जामुन के फल के समान काले पड़ जाता हैं, अङ्गों में शिथिलता आ जाती हैं, विष्ठा का परित्याग होने लगता हैं, कंधे, कमर और ग्रीवा झुक जाते हैं, मुख नीचे के ओर लटक जाता हैं, आँखे चढ़ जाती हैं, शरीर में दाह और कम्प होने लगता हैं, बार-बार आँखे बंद हो जाती है, शस्त्र से शरीर में काटने पर खून नहीं निकलता । बेत से मारने पर भी शरीर में रेखा नहीं पड़ती, काटने का स्थान कटे हुए जामुन के समान नील रंग का, फुला हुआ, रक्त से परिपूर्ण और कौए के पैर के समान हो जाता हैं, हिचकी आने लगती हैं, कण्ठ अवरुद्ध हो जाता हैं, श्वास की गति बढ़ जाती हैं, शरीर का रंग पीला पड़ जाता है । ऐसी अवस्था को कालसर्प से काटा हुआ समझना चाहिये । उसकी मृत्यु आसन्न समझनी चाहिये ।om, ॐ

घाव फूल जाय, नीले रंग का हो जाय, अधिक पसीना आने लगे, नाक से बोलने लगे, ओठ लटक जाय, हृदय में कम्पन होने लगे तो कालसर्प से काटा हुआ समझना चाहिये । दाँत पीसने लगे, नेत्र उलट जायँ, लम्बी श्वास आने लगे, ग्रीवा लटक जाय, नाभि फड़कने लगे तो कालसर्प से काटा हुआ जानना चाहिये । दर्पण या जल में अपनी छाया न दीखे, सूर्य तेजहीन दिखायी पड़े, नेत्र लाल हो जायँ, सम्पूर्ण शरीर कष्ट के कारण काँपने लगे तो उसे कालसर्प से काटा हुआ समझना चाहिये, उसकी शीघ्र ही मृत्यु सम्भाव्य है ।

अष्टमी, नवमी, कृष्णा चतुर्दशी और नागपञ्चमी के दिन जिसको साँप काटता हैं, उसके प्रायः प्राण नहीं बचते । आर्द्रा, आश्लेषा, मघा, भरणी, कृत्तिका, विशाखा, तीनों पूर्वा, मूल, स्वाती और शतभिषा नक्षत्र में जिसको साँप काटता हैं वह भी नही जीता । इन नक्षत्रों में विष पीने वाला व्यक्ति भी तत्काल मर जाता हैं । पूर्वोक्त तिथि और नक्षत्र दोनों मिल जायँ तथा खण्डहर में, श्मशान में और सूखे वृक्ष के नीचे जिसे साँप काटता हैं वह नहीं जीता ।

मनुष्य के शरीर में एक सौ आठ मर्म-स्थान हैं, उनमे भी शंख अर्थात् ललाट की हड्डी, आँख, भ्रू-मध्य, वस्ति, अण्डकोश का ऊपरी भाग, कक्ष, कंधे, हृदय, वक्षःस्थल, तालु, ठोढी और गुदा – ये बारह मुख्य मर्म-स्थान हैं । इनमें सर्प काटने से अथवा शस्त्राघात होनेपर मनुष्य जीवित नहीं रहता ।

अब सर्प काटने के बाद जो वैद्य को बुलाने जाता हैं उस दुत का लक्षण कहता हूँ । उत्तम जाति का हीन वर्ण दूत और हीन जाति का उत्तम वर्ण दूत भी अच्छा नहीं होता । वह दूत हाथ में दंड लिये हुए हों, दो दूत हों, कृष्ण अथवा रक्त-वस्त्र पहने हों, मुख ढके हों, सिर पर एक वस्त्र लपेटे हो, शरीर में तेल लगाये हो, केश खोले हो, जोरसे बोलता हुआ आये, हाथ-पैर पीटे तो ऐसा दूत अत्यन्त अशुभ है । जिस रोगी का दूत इन लक्षणों से युक्त वैद्य के समीप जाता हैं, वह रोगी अवश्य ही मर जाता हैं ।

कश्यपजी बोले – गौतम ! अब मैं भगवान् शिव के द्वारा कथित नागों की उत्पत्ति के विषय में कहता हूँ । पूर्वकाल में ब्रह्माजीने अनेक नागों एवं ग्रहों की सृष्टि की । अनन्त नाग सूर्य, वासुकि चन्द्रमा, तक्षक भौम, कर्कोटक बुध, पद्म बृहस्पति, महापद्म शुक्र, कुलिक और शंखपाल शनैश्वर ग्रह के रूप है । रविवार के दिन दसवाँ और चौदहवाँ यामार्ध सूर्योदय से अगले सूर्योदय तक ८ याम (प्रहर) या १६ यामार्द्ध होते हैं। एक यामार्द्ध डेढ़ घंटा अर्थात् ३ घटी ४५ पल का समय होता है ।, सोमवार को आठवाँ और बारहवाँ, भौमवार को छठा और दसवाँ, बुधवार को नवाँ , बृहस्पति को दूसरा और छठा, शुक्र को चौथा, आठवाँ और दसवाँ, शनिवार को पहिला, सोलहवाँ, दूसरा और बारहवाँ प्रहरार्ध अशुभ हैं । इन समयों में सर्प के काटने से व्यक्ति जीवित नहीं रहता ।
(अध्याय ३४)

See Also :-

1. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १-२

2. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय 3

3. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ४

4. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ५

5. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ६

6. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ७

7. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ८-९

8. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १०-१५

9. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १६

10. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १७

11. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १८

12. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १९

13. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २०

14. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २१

15. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २२

16. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २३

17. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २४ से २६

18. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २७

19. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २८

20. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय २९ से ३०

21. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३१

22. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३२

23. भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय ३३

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