भविष्यपुराण – ब्राह्म पर्व – अध्याय १४३
ॐ श्रीपरमात्मने नमः
श्रीगणेशाय नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
भविष्यपुराण
(ब्राह्मपर्व)
अध्याय – १४३
साम्बोपाख्यानमें भगवान् सूर्यको अर्घ्य प्रदान करने और धूप दिखानेकी महिमा

सुमन्तु मुनि बोले — राजन् ! इस प्रकार व्यासजी के द्वारा अव्यङ्ग के विषय में जानकारी प्राप्त कर साम्ब नारदजी के पास वापस लौट आये और उन्होंने उनसे सब वृत्तान्त बताकर पूछा — देवर्षे ! भोजको को भगवान् सूर्य को स्नान, अर्घ्य, आचमन, धूप आदि किस प्रकार समर्पित करना चाहिये ?’ इसका आप कृपाकर वर्णन करें । om, ॐनारदजी बोले — साम्ब ! संक्षेप में मैं वह विधि बता रहा हूँ, सावधान होकर सुनो । सर्वप्रथम शौचादिसे निवृत्त होकर आचमन-पूर्वक नदी में या जलाशय आदि में स्नान करना चाहिये । अनन्तर स्वर्णदान कर तीन बार आचमन करे । शुद्ध वस्त्र पहनकर पवित्री धारणकर पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख हो आचमन करना चाहिये । तदनन्तर दो बार मार्जन और तीन बार अभ्युक्षण (तरल पदार्थ को छिड़कने की क्रिया, सिंचन) करे । आचमन के बिना की गयी क्रिया निष्फल होती है एवं इसके बिना पुरुष शुद्ध भी नहीं होता । वेद में कहा गया हैं कि देवता पवित्रता को ही चाहते हैं । आचमन करने के बाद मौन होकर देवालय में जाना चाहिये । आसन पर बैठकर प्राणायाम कर सिर को कपड़े से आच्छादित करे तथा विविध पुष्पों से सूर्यभगवान् की पूजा करे । व्याहृति-पूर्वक गायत्री-मन्त्र से गुग्गुल का धूप दे । फिर भगवान् सूर्य के मस्तक पर पुष्पाञ्जलि अर्पित करे ।रक्तचन्दन, पद्म, करवीर, कुंकुम आदि को जल में मिलाकर ताम्र के पात्र से भगवान् सूर्य को अर्घ्य देना चाहिये । अर्घ्य पात्र को हाथ में उठाकर भगवान् सूर्य आवाहन करे तथा दोनों जानुओं पर बैठकर भगवान् सूर्य को अपने हृदय में ध्यान करते हुए नीचे लिखे मन्त्र से अर्घ्य प्रदान करे —

“एहि सूर्य सहस्रांशो तेजोराशे जगत्पते ।
अनुकम्पय मां देव गृहाणार्घ्यं दिवाकर ॥”

तदनन्तर इस प्रकार प्रार्थना करे —

“अर्चितस्त्वं यथाशक्त्या मया भक्त्या विभावसो ।
ऐहिकामुष्मिकीं नाथ कार्यसिद्धिं ददस्व मे ॥”
(ब्राह्मपर्व १४३।४७)

तीनों काल स्नानकर इस प्रकार जो भगवान् सूर्य की आराधना करता है और धूप देता है, वह अश्वमेध-यज्ञ का फल प्राप्त करता है और उसे धन, पुत्र तथा आरोग्य की भी प्राप्ति हो जाती है एवं अन्त में यह भगवान् सूर्य में लीन हो जाता है । उत्तम पुष्पों के न मिलने पर पत्रों से ही पूजन करे । धूप ही दे या भक्तिपूर्वक जल ही सूर्य को समर्पित करे । यदि यह भी न हो सके तो प्रणाम ही करे । प्रणाम करने में असमर्थ हो तो मानसी पूजा करे । यह विधि द्रव्य अभाव में करनी चाहिये, द्रव्य रहने पर विधिपूर्वक सभी सामग्रियों से पूजन करे । भक्तिपूर्वक सूर्यभगवान् की पूजा देखनेवाले को भी अश्वमेधयज्ञ का फल मिलता है और सूर्यलोक की प्राप्ति होती है । धूप-दान के समय सूर्य का दर्शन करने पर उत्तम गति प्राप्त होती है ।
(अध्याय १४३)
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