January 16, 2016 | aspundir | Leave a comment शत्रु-स्तम्भन मन्त्र मन्त्रः- “जल बाँधु, जल-वायु बाँधु । बाँधु जल के तीर । पाँचो काला कलवा बाँधों । बाँधु हनुमन्त वीर ! सहदेव तेरी लाकड़ी, अर्जुन तेरो बाण । ‘अमुक’ की गति थाम दे, यति हनुमत की आन । शब्द साँचा-पिण्ड काँचा, मेरे गुरू का इल्म साँचा । फुरो मन्त्र, ईश्वरो वाचा । दुहाई गोरख- नाथ की ।” विधि – एक मुट्ठी समूचे काले उड़दों पर उक्त मन्त्र को सात बार पढकर फूँक मारें । फिर उन्हें शत्रु के घर में या घर की दिशा में फेंक दें । शत्रु की गति-मति का स्तम्भन होगा । यदि इसे खोलना हो, तो प्रत्येक ‘बाँधु’ और ‘थाम दे’ के स्थान पर ‘खोल दे’ पढ़ें । इसी मन्त्र से गिरते गर्भ को भी रोका जाता है, केवल ‘अमुक की गति थाम दे’ की जगह ‘रावन रक्त तर थाम दे’ पढ़ना चाहिए और काले डोरे पर सात बार यही मन्त्र पढ़कर गांठ लगाकर स्त्री की कमर में बाँध देना चाहिए । Related